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कर्णवंश:
२६१
कर्दम
कर्णवंशः (पुं०) मचान, बांसों का बना मंच।
कर्तरी (स्त्री०) कैंची। (वीरो० १७/४) कर्णवर्जित (वि०) श्रवण विहीन।
कर्त्तव्य (सं०कृ०) [कृ+तव्यत्] १. कार्य का सम्पादन, उचित कर्णवर्जितः (पुं०) सर्प विशेष।
____ होना। (जयो० १/१०९) २. कतरने योग्य। कर्णविवरं (नपुं०) कर्णप्रान्त, कर्णछिद्र, श्रवण मार्ग। कर्त्तव्य (सं०कृ०) [कृ+तव्यत्] आवश्यक करणीय कार्य, कर्णविष (स्त्री०) कान का मैल।
किन्नु परोपरोधकरणेन कर्त्तव्याध्वनि किमु न सरामि।' कर्णवेधः (पुं०) कर्णछेदन।
___ (सुद० ९२) 'कर्तव्यता भव्यताकामी' (सुद० ७३) कर्णवेष्टः (पुं०) कर्णाभूषण, कर्ण के वृत्ताकार भूषण। कर्तव्यकार्यः (पुं०) करणीय कार्य। (जयो० १६/४) कर्णवेष्टनं (नपुं०) कर्णाभूषण।
कर्तव्यपथं (नपुं०) कार्य योग्य मार्ग (दयो० १८) 'तथापि कर्णशष्कुली (स्त्री०) कान का बहिर भाग, सम्पूर्ण कर्ण कर्तव्यपथाधिरोह' (समु० ३७) परिधि।
कर्तव्यपूर्तिः (स्त्री०) पूर्णता, कर्त्तव्यसंहति। (दयो० १/१६) कर्णशूलः (पुं०) श्रवण रोग, कर्ण पीड़ा, कर्ण कष्ट। कर्त्तव्यविमूढ (पुं०) कार्य में आसक्त होना। (सुद० ९३) कर्णश्रव (वि०) उच्च स्वर।
कर्त्तव्यशास्त्र (नपुं०) हित संहिता शास्त्र (जयो० २/१) कर्णश्रावः (पुं०) कानों का बहना, कानों से मवाद निकलना। कर्त्तव्यशीलता (वि०) कर्मवर भाव, किंकरता। (जयो० वृ० कर्णहीन (वि.) कर्णरहित, श्रवणरहित, चतुरिन्द्रिय जन्तु। २०/७४) कर्णहीनः (पुं०) सर्प।
| कर्त्तव्यसंहति (स्त्री०) कर्तव्यपूर्ति, कार्य की सम्पूर्णता। (दयो० कर्णाकर्णि (वि०) कानों कान, एक कर्ण से दूसरे कर्ण तक। १०६) 'कर्णे कर्णे गृहीत्वा प्रवृत्तं कथनम्' ।
कर्त्तव्यहानि (स्त्री०) कर्तव्यनाश (वीरो० १६/१५) कर्णाटः (पुं०) १. कर्णाट राजा 'कर्णावटन्ति गच्छन्ति कर्णाटा कर्तृ (वि०) [कृ+तृच्] कर्ता, निर्माता, करने वाला, सम्पादक,
भवन्ति' (जयो० ६/८५) ३. कर्णाटक देश (जयो० वृ० रचनाकार, तत्कर्ता स्यात्किमु नातः। (जयो० सुद० ११४) ६/८५)
कर्ता (वि०) करने वाला, जगत् का कोई ईश्वरादि कर्ता धर्ता कर्णाटी (स्त्री०) कर्णाटकी स्त्री।
होता तो फिर जौ के लिए जौ बौना व्यर्थ हो जाता, कर्णान्दूकः (पुं०) कर्णाभूषण। (जयो० १८/१०७)
क्योंकि वही ईश्वर के बिना ही बीज के जिस किसी भी कर्णालङ्करणं (नपुं०) १. कर्णाभूषण। २. श्रवण रुचिपूर्वक। प्रकार से जौ को उत्पन्न कर देता। फिर कार्य को उत्पन्न कर्णिक (वि०) [कर्ण+इकन्] १. कानों वाला, २. पतवार धारक। करने के लिए उसके कारण-कलापों के अन्वेषण की कर्णिकः (पुं०) केवट।
क्या आवश्यकता रहती? (वीरो० १९/४२) कर्णिकारः (पुं०) [कर्णि+कृ+अण] कनेरवृक्ष, कनियार वृक्ष। यथार्थ में इस संसार का कोई कर्ता या नियन्ता ईश्वर नहीं कर्णिकारं (नपुं०) अमलतास वृक्ष, कनेर वृक्ष।
है। एक मात्र समय की ही ऐसी जाति है कि जिसकी कर्णिन् (वि०) [कर्ण+इनि] कानों वाला, कर्ण युक्त।
सहायता से प्रत्येक वस्तु में प्रतिक्षण नवीन नवीन पर्याय कर्णी (स्त्री०) [कर्ण+ङीप्] पंख युक्त बाण।
उत्पन्न होती रहती हैं और पूर्व पर्याय विनष्ट होती रहती कर्णीरथः (पुं०) डोली, स्त्रियों को ले जाने वाला वाहन। है। इसके सिवाय संसार में कोई कार्यदूत अर्थात् कार्य कर्णेजपः (पुं०) पिशुन, चुगलखोर। (वीरो० १/१८) 'कर्णेजपं कराने वाला नहीं है। न कोऽपि लोके बलवान् विभाति यत्कृतवानभूस्त्वम्' (वीरो० १/१८)
समस्ति चैका समस्य जातिः। यतः सहायाद्भवतादभूतः कर्णोत्पलः (पुं०) कर्णफूल। (वीरो० ९/३७)
परो न कश्चिद्भुवि कार्यदूतः।। (वीरो० १८/२) कर्तनं (नपुं०) [कृत्+ल्युट्] काटना, कतरना, व्यत्ययन (जयो० की (स्त्री०) [कर्तृङीप्] चाकू, कैंची, कर्तुं-तुमन्-करने २१/१३)
के लिए (सम्य० ४१) कर्तनी (स्त्री०) [कर्तन ङीप्] कैंची।
कर्दः [क अच्] कीचड़, मिलान, पङ्क। कर्तरिका (स्त्री०) १. कैंची, २. चाकू, ३. कटार, छोटी | कर्दम (पुं०) [क अम्] पङ्क, कीचड़, मलिन, मल, पाप। तलवार। (मुनि० ८)
'कर्दमे हि गृहिणोऽखिलाञ्चलाः' (जयो० २/१९)
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