Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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कुष्ठ
२९७
कुत्सा
कुष्ठ (वि०) [कण्ठ + + अच्] ढूंठा, सुस्त, आलसी, उदासीन, कुतः (अव्य०) यह अनिश्चयार्थ की दिशा में प्रयुक्त होने मंद, मूर्ख, लंठ, दुर्बल।
वाला अव्यय है, जिससे कई अर्थ व्यञ्जित होते हैं। कुण्ठकः (पुं) [कुण्ठ्+ण्वुल] लंठ, मूर्ख, मूढ!
कहां से-'अवलोक्य कुतः किमागतः। (समु० २/२१) कुण्ठक्रमः (वि०) कुण्ठितक्रम वाला। 'सिंहो हस्तिनमाक्रमेदपि "श्रियो निवासोऽयमहो कुतोऽन्यथा कुतश्च लोकैः कर एप पुरः प्राप्तं न कुण्डक्रमः। (वीरो० ९/४५)
गीयते (जयो० ५/७६) कुण्ठात्मक (वि०) सुद ढात्मक। (जयो० १७/४८)
कैसे-'कुतोऽर्तिरर्हच्छरणं गताय' (भक्ति०२४) (सुद० कुण (सक०) सहारा देना, आश्रय देना, सहायता करना।
२/४४) (जयो० ११/२७) कुणकः (पुं०) [कुण+क+कन] शावक, पशु शावक।
किस(समु० २/२१) कारण से-'कुतः कारणतो जाता कुणप (वि०) दुर्गन्ध युक्त।
भवतामुन्मनस्कता' (सुद० ३/३६) कुणपः (पुं०) शव, मुर्दा।
कुतर्कः (पुं०) भ्रान्तिजन्य प्रमाण। कुणपीप्राया (वि०) दुर्गन्ध दुराकारवती। (जयो० २४/१४२) कुतपः (पुं०) [कु+तप्+अच्] द्विज, ब्राह्मण, सूर्य, अग्नि, कुणिः (स्त्री०) [कुण इनि] खजा, लुंजा, हस्त से अपंग, । अतिथि, वृषभ, सांड, दोहता, भानजा। शुष्क हस्त युक्त।
कुतलं (नपुं०) कुत्सित भाग। (जयो० ३/३३) । कुण्डगिरिः (पु०) कुण्डलगिरि। महावीर स्वामी का जन्मस्थान। कुतश्च (अव्य०) कहां से, किस कारण से। 'न सन्तु (भक्ति०३७)
कुतश्चापायाः' (सुद०७१) 'कुतश्चैष पतितोऽपि सहसैव' कुण्डनं (नपु०) कुण्डलपुर। (वीरो० ७/७)
(दयो०८) कुण्ठित (भू०क०कृ०) [कुठ्+क्त) मूर्खतायुक्त, आलस्य कुत: (अव्य०) कहां से। (सम्य० ४५)
सहित, विकलांग मोथले। (जयो० १५/९२) कुतोऽन्यथा (अव्य०) अन्यथा किसी भी। कालिकं चाक्षमतिश्च 'जगताडनकुण्ठितानाम्' (जयो० १५/५२)
वेत्ति कुतोऽन्यथा वार्थ इतः क्रियेति। (वीरो० २०/७) कुण्डः (पुं०) कटोरा, कंडा, चारों ओर से घिरा हुआ पानी कुतस्यात् (अव्य०) कैसे है? 'कुतः स्यात्पारणा तस्या' (सुद० का कुंडा १. अग्निकुण्ड। २. कुण्डग्राम, कुण्डलपुर।
३५) कुण्डपुरः (पुं०) कुण्डग्राम-'कुण्डिनमित्येतत्पदं पूर्व विधते | कुतुकं (नपुं०) [कुत्-उक] उत्सुकता, उत्साह, उमंग,
यस्य तन्नाम पुरं कुण्डिनपुर मित्याहु। (वीरो० २/२१) । रुचि, आमोद, प्रमोद, हर्ष। कुण्डलः (पुं०) [कुण्ड् मत्वर्थ ल] कर्णाभूषण (जयो० कुतुकोत्क (वि०) विनोद युक्त, आनंद युक्त। सहितः कुसुमश्रिया
३/१०१) (जयो० १७/२९) कान की बाली। २. गोलाकार मधुः कुतुकोत्कैभ्रमरैरिवाध्वनिः। (जयो० २१/७२) कड़ा।
कुतुपः (पुं०) [कु+तन्क) कुप्पी, तेल डालने का साधन। कुण्डलकः (पुं०) कर्णाभूषण।
कुतूहल (वि०) आश्चर्यजनक, आनन्द, उत्साह, उमंग, कुण्डलकान्तशोचि (वि०) कुण्डल कान्ति युक्त। (वीरो० आकाक्षा प्राप्त, प्रशंसा युक्त, श्रेष्ठ, सर्वोत्तम। ४/३३)
कुतोऽपि (अव्य०) कहीं पर भी, किसी प्रकार का भी, कहीं कुण्डलना (स्त्री०) [कुण्डल्+णिच्+ युच्+टाप्] घेरा डालना। से भी। 'विपिनेऽस्यकुतोऽपि कौतुकान्मिलिता' (समु० कुण्डलितप्रदेशः (पु०) कुण्डलाभार प्रदेश। (१३/१५)
२।८) 'दृशो न वेषम्यगात्कुतोऽपि' (सुद० २/३) कुण्डलिन् (वि०) [ कुण्डल इनि] १. कुण्डलों में युक्त। २. कुत्र (अव्य०) [किम्वल] कहां, किस बात में, किस विषय में।
गोलाकार, घुमावदार, कुण्डली युक्त। ३. मोर वरुण। कुत्रचित् (अव्य०) एक स्थान पर, कहीं पर। कुण्डिन् (वि०) घेरा। (वीरो० २/४)
कुत्रत्य (वि०) [कुत्र+त्यप्] कहां का रहने वाला। कुण्डिनं (नपुं०) [कुण्डु इनच्] कुण्डली।
कुत्रापि (अव्य०) कहीं पर भी। (मुनि० ९) वीरो० १४/४३। कुण्डिनपुरः (पुं०) कुण्डग्राम। (वीरो० २/२१) महावीर स्वामी कुत्स् (अक०) गाली देना, निन्दा करना, कलंक लगाना। का जन्मस्थान।
कुत्सनं (नपुं०) [कुत्स्+ ल्युट्] दुर्वचन, घृणा, गर्हा, निन्दा। कुण्डीर (वि०) शक्तिमान्, बलिष्ट।
कुत्सा (स्त्री०) विघ्न डालना, दोष लगाना।
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