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कायस्वभावः
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कारा
कायस्वभावः (पुं०) शरीर परिणति, देह के अपवित्रतागत
परिणाम, दु:खहेतु। कायापरीतः (पुं०) अनन्त कायिक जीव। कायिक (वि०) शारीरिक, देहगत, शरीर सम्बन्धी। कायिक-अशुभ-योगः (पुं०) शारीरिक कुशील प्रवृत्ति आदि | __ का सम्बन्ध। कायिक-असमीक्ष्णाधिकरणं (नपुं०) प्रयोजन बिना छेदन
भेदन के कार्यों का करना। कायिकत्यागः (पुं०) शरीर सम्बन्धी त्याग (दयो० १२२)
तत्रापि कायिकत्यागः सुशक्तो भुवि वर्तते। (दयो० १२२) कायिक-विनयः (पुं०) शारीरिक विनम्रता, भक्तिपूर्वक
कायोत्सर्ग आदि करना, उपकरणों का प्रतिलेखन। कायिकी (स्त्री०) शारीरिक हलन-चलन। कायिकीक्रिया (स्त्री०) दुष्टतापूर्वक उद्यम करना। 'दुष्टस्य
सत: कायेन वा चलनक्रिया कायिकी। (भ०आ०टी०८०७) 'प्रदुष्टस्य सतोऽभ्युद्यमः कायिकी क्रिया। (स०सि०६/५) कायोत्सर्गः (पुं०) शरीर के प्रति ममत्व त्याग। (मुनि० १८)
(सुद० १३३) वाचाङ्गेन यथोज्झितानि भवता बाह्यानि वित्तादिकन्यन्तस्तोऽपि संस्मेरदिहतकान्येतादृशी ह्याशिका किं तेभ्यो वपुषापि नाम्नि भवतः सम्बन्ध एषा स्थितिर्वस्तुतृवेन ततोऽनुरागकरणं तत्रापिशर्माज्झिति (मुनि० १७) साधुओं के आवश्यक कर्मों में एक आवश्यक कर्म कायोत्सर्ग भी है। कायादिपरदव्वे थिरभावं परिहरत्तु अप्पाणं तस्स हवे तणुसग्गं जो झायदि णिव्विअप्पेण 'कायः शरीरं तस्योत्सर्गः कायोत्सर्गः' कायं शरीरं उत्सृजति ममत्वादिपरिणामेन त्यजतीति कायोत्सर्गः तपो भवेत् व्युत्सर्गाभिधानं तपोविधानं
स्यात्। (कार्तिके०४५८) कायोत्सर्ग-भक्तिः (स्त्री०) शरीर के प्रति ममत्व त्याग
सम्बंधी भक्ति। (भक्ति०४९) किन्तु प्रणाशायिजवंजवेषु महेन्द्रजालोपमसम्भवेषु। जिनेशवाचः समु दादरेण कायोऽपि
नायं मम किं परेण।। (भक्ति०४९) कार (वि०) यत्न, प्रयत्न, प्रयास, कर्ता, रचयिता, सम्पादन
करने वाला, बनाने वाला। 'कारश्च यतियत्नो' इति वि०
(जयो० २१/५१) कारः (पुं०) १. कृत्य, कार्य, चेष्टा। २. पति, स्वामी, मालिक। कारकर (वि०) कार्य करने वाला। कारक (वि०) [कृ+ण्वुल] कर्ता, करने वाला, सम्पादन
करने वाला।
कारकं (नपुं०) संज्ञा और क्रिया के मध्य रहने वाला सम्बन्ध।
२. क्रिया से युक्त द्रव्य। 'कुर्वत एव कारकत्वं. यदा न करोति तदा कर्तृत्वस्यायोगात्' (लघीय०६३८) 'कारकाणां
कादीनाम्' (न्यायकु० ५/४४) कारकहेतुः (पुं०) क्रियात्मक कारण। कारणं (नपुं०) हेतु, निमित्त, तर्क, जिसके सद्भाव में कार्य
होता है। आधार, उद्देश्य, प्रयोजन, उपकरण, साधन। 'यस्मिन् सत्येव च यद्भावः तत्कार्यमितरत् कारणम्' (सिद्धिविनश्चय० १९३) जिसके होने पर जो होता है,
वह कार्य और इतर-जिसके सद्भाव में कार्य होता है। कारणगुणः (पुं०) कारण का गुण। कारणदोषः (पुं०) वेदनादि भाव, आहार में दोष। कारणपरमाणु (स्त्री०) पृथिवी, जल आदि के कारणभूत
परमाणु। 'घाउ-चउक्कस्स पुणो ज हेऊ ति तं णेयो' (निय०२५) पृथिष्यप्तेजोवायवो धातवश्चत्वारः तेषां यो
हेतु स कारणपरमाणुः। (निय०वृ०२५) कारण-परमात्मन् (पुं०) ज्ञान-दर्शन युक्त आत्मा, निवारण
आत्मा। कारणभूत (वि०) जो कारण बना हो। (जयो० वृ० १७/५३) कारणमाला (स्त्री०) एक पुष्प माला, अलंकृत माला। कारणवन्दनक (वि०) अभिलाषा युक्त वन्दना करने वाला। कारणवादिन् (पुं०) वादी, प्रतिपक्षी, अभियोक्ता। कारणविहीनः (वि०) कारण रहित। कारणशरीर (नपुं०) कारणों कर मूल रूप। कारणा (स्त्री०) [कृ०+णिच्+युच्+टाप्] वेदना, कष्ट, व्याधि,
पीड़ा। कारणाभावः (पुं०) कारणों का अभाव। कारणाभावदोषः (पुं०) संयम का परिपालन न करना,
आशंका युक्त होना। कारणिक (वि०) [कारण+ठक] १. नैमित्तिक, २. निर्णायक,
परीक्षक। कारण्डवः (पुं०) एक पक्षी विशेष। कारन्धमिन् (पुं०) [कर एव कारः, तं धमति, कार+ध्मा इनि]
कसेरा, ठठेरा, खनिज विद्या का ज्ञाता। कारवः (पुं०) कौवा, वायस्। कारस्करः (पुं०) [कारं करोति-कार+कृ+ट] किंपाकवृक्ष। कारा (स्त्री०) १. बन्दीगृह, कारावास, बन्दीकरण। (जयो०
वृ० ८/६) २. कारिका, गुणयुक्त शिक्षा, सूत्र शिक्षा।
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