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कष्टसाध्य
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काकु
१३/९) अकण्टकं सत्पथमातनोतु न कोऽपि कष्टानुभवं काकछदः (पुं०) खंजनपक्षी। करोतु। (सम्य० ९४)
काकछदिः (पुं०) खंजनपक्षी। कष्टसाध्य (वि०) कठिनतम, कठिनाई से पूर्ण किया जाने वाला। काकजातः (पुं०) कोयल। कष्टस्थानं (नपुं०) दुपथ, खोटा स्थान, निम्न स्थान। काक-तालीय (वि०) जो बात अकस्मात् अप्रत्याशित रूप से कष्मल: (पुं०) पाप, अशुभ। (जयो० ४/६१)
घटित। न्याय/तर्क उपस्थित करने पर कभी क्रिया विशेषण कस् (सक०) १. जाना, पहुंचना, प्राप्त होना। २. निकालना, के रूप में प्रयुक्त हो जाता है। खींचना, बाहर करना।
काकतालुकिन् (वि०) घृणित, निन्दनीय। कस्तूरिका (स्त्री०) [कसति गन्धोऽस्याः कस्+ अर्+ ङीष्] काकदन्तः (पुं०) १. कौवे का दांत। २. असंभव वस्तु की
मृगमल, मुश्क, एक सुगन्धित मृगनाभि मल, एणमद। खोज। (जयो० वृ० ५/६१)
काकध्वजः (पुं०) वडवानल। कस्तूरी देखो ऊपर।
काकनिन्द्रा (स्त्री०) शीघ्र खुलने वाली नींद, स्वल्प निद्रा। कस्तूरीमृगः (पुं०) मृग। हिरण विशेष, जिसकी नाभि में काकपक्षः (पुं०) लम्बायमान बाल। __ कस्तूरी का स्थान होता है।
काकपदम् (नपुं०) हस्तलिखित ग्रन्थ का चिह्न। (), पद कस्यान्न (अव्य०) किससे नहीं। (जयो० ३/६८)
या अक्षर, छूटने का स्थान सूचक। कस्याचित् (अव्य०) किसी से भी। (जयो० ३/७३)
काकपदः (पुं०) संभोग की रीति। कस्यापि (अव्य०) किसी का भी। (मुनि०८)
काकपुच्छः (पुं०) कोयल। कलारं (नपुं०) [के जले हादते-क+हाद् अच्] श्वेत कमल। काकपुष्टः (पुं०) कोयल। का (सर्व०स्त्री०) कौन, क्या। का कोमलाङ्गी। (जयो० ५/८६) काकपेय (वि०) छिछला।
संजतानां का क्षतिः का नाम पंचमी वि रूप। (मुनि० काकभीसः (पुं०) उल्लू, उलूक। १८) (जयो० ११/९७)
काकमद्गुः (पुं०) जलकुक्कुट। कांसीयम् (नपुं०) [कंसाय पानपात्राय हितम्-कंस+छ+अण] काकप्रहारः (पुं०) कायरता युक्त बात। परस्य शोपाय कृतप्रयत्न जस्ता, धातु विशेष।
काकप्रहाराय यथैव रत्नम्। (वीरो० १४/) कांस्य (वि०) कांस्य से निर्मित। कंसाय पानपात्राय हितं कंसीयं काकरुक (वि०) १. कायर, भीरु, भय भी, २. निर्धन, गरीब। तस्य विकारः।
काकयवः (पुं०) धान्यकण रहित बाल। कांस्य (नपुं०) कास्यपात्र, कांसे का बर्तन, कटोरा।
काकल: (पुं०) पर्वतीय वायस, पहाड़ी कौवा। कांस्यकार: (नपुं०) कसेरा, ठठेरा, कांसे के बर्तन बनाने काकलि (पुं०) [कल्+इन्] मधुर स्वर, मन्द मंद मीठी वाला।
आवाज। कांस्यताल: (पुं०) झांझ, करताल।
काकलेश्या (स्त्री०) कौवे की तरह वर्णवाली लेश्या, तनुवातवल कांस्यभाजनं (नपुं०) कांसे का पात्र, पीतल का बर्तन।
का स्थान। (धव० ११/१९) कांस्यमलं (नपुं०) ताम्रमल, तांबे का अंश। (जयो० वृ० काकादिपिण्डहरणं (नपुं०) काकादि के द्वारा पिण्ड/आहार
हरण, आहार पद्धाति का एक दोष/अन्तराय। काकः (पुं०) १. कौवा, वायस। (दयो० वृ०१०१) २. घृणित, | काकारिलोकः (पुं०) उलूकसमूह, उलूक समु दाय। निन्दित, नीच।
दोषानुरक्तस्य खलस्य चेश काकारिलोकस्य च को विशेष: काक-क (वि०) कौवों का समूह।
(वीरो० १/२०) काक-चक्षुस् (नपुं०) वायस नेत्र, काक नयन। (जयो० काकिणी (स्त्री०) कौडी, एक माप अंश। २/१०)
काकिणिका (स्त्री०) कौड़ी। काकचिंता (स्त्री०) गुंजा, घुघची, जिससे स्वर्ण को तौला काकिनी (स्त्री०) [कक्+णिनि ङोप] कौड़ी। जाता था। रत्ती भर की एक घुघची होती है।
काकु (स्त्री०) [काउण्] भय, शोक, क्रोध, संवेगात्मक स्वर।
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