________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
औपम्यं
२४३
औपम्यं (नपुं०) [उपमा+ष्य+उपलब्धि:] उपमा के बल से
ज्ञात। पूर्व में कभी नहीं जाना गया कोई पदार्थ उपमा के बल से जो जाना जाता है, उसे औपम्योपलब्धि कहा जाता है। जैसे 'गवय गौ के समान होता है, इस उपमान के आश्रय से पूर्व में अज्ञात गवरू का 'यह गवय है' इस प्रकार तो अक्षरज्ञान हुआ करता है, इसी का नाम
औपम्योपलब्धि है। (जैन०ल० ३१०) औपयिक (वि०) [उपाय+ ठक्] १. प्रयत्नपूर्वक, प्राप्त। २.
योग्य, उचित। औपरिष्ट (वि०) [उपरिष्ट अण] ऊपर से होने वाला, ऊपरी। औपरोधिक (वि०) [उपरोध ठक्] अनुग्रह स्वरूप, कृपात्मक। औपल (वि०) [ उपल+अण] पाषाण तुल्य, प्रस्तरमय। औपवस्तं (नपुं०) (उपवस्त+अण्] उपवास, अनशन। औपवस्त्रं (नपुं०) [उपवस्त्र+अण] उपवास, अनशन। औपवास्यं (नपुं०) [उपवासष्यञ्] उपवास रखना, उपवास
करना। औपवाह्य (वि०) [उपवाह्य अण्] वाहन से सम्बन्धित। औपवाह्यः (पुं०) राज्य-वाहन, राजा की सवारी। औपवेशिक (वि.) [उपवेश+ठ] आजीविका में तत्पर रहने
वाला। औपसर्गिक (वि०) [उपसर्ग-ठञ् ] उपद्रव/आपदा/सकंट का
सहने वाला। औपस्थिक (वि०) [उपस्थ+ठक्] व्यभिचार जन्य जीविका। औपशमिकः (पुं०) [उपशम+ठक्] उपशम से उत्पन्न भाव।
"उपशमः प्रयोजनमस्येत्यौपशमिकः' (स० सि० २/१) 'कम्माणमुवसमेण उप्पण्णो भावो ओवसमिओ' (धव०
५/२०५) औपशमिकभावः (पुं०) उपशम से उत्पन्न भाव। औपशमिक सम्यक्त्व (नपुं०) प्रकृतियों के उपशम से उत्पन्न
होने वाला सम्यक्त्व। 'सत्तण्ह उषसमदो उवसमसम्मो'
(गो० जी०२६) 'तत्त्वार्थ- श्रद्धानमौपशमिकम्' (भ०आ०१/३१) औपाधिक (वि०) [उपाधि+ठञ्] उपाधि जनित। औपाध्यायक (वि०) [उपाध्याय+वुञ्] उपाध्याय/अध्यापक
से प्राप्त। औपसन (वि०) [उपासन+अण्] उपासन जन्य। औरभ्र (वि०) मेष से सम्बन्धित। औरसः (पुं०) [उरसा निमित्ता अण्] उदर से उत्पन्न पुत्र, |
विवाहित स्त्री से उत्पन्न पुत्र, निज सुत। (दयो० ५४) ।
औरसी (स्त्री०) निज पुत्री, आत्मसुता। और्ण (वि०) [ऊर्णा+अञ्] ऊन से निर्मित। (जयो० २।८९) और्णवस्त्रं (नपुं०) ऊनी वस्त्र। 'चौर्णवस्त्रमथवा सुकर्मणे'
(जयो० २।८९) औवंदेहं (नपुं०) प्रेतकर्म, अन्त्येष्टि संस्कार। और्व (वि०) [ऊरु अण] पृथ्वी सम्बंधित। औलूकं (नपुं०) [उलूकानां समूहः ऊञ्] उल्लुओं का झुण्ड। औलुक्यः (पुं०) कणाद मुनि। औशीरं (नपुं०) आसन, तकिया। औषणं (नपुं०) [उषण+अण्] १. तेजस्विता, तीक्ष्णता। २.
काली मिर्च। औषध (नपुं०) दवा, जड़ी-बूटी, खनिज। (जयो० २/४)
जयोदय में औषध को भेषज भी कहा है। (जयो० २/१७) __ 'सर्वमेव सकलस्य नौषधम्' औषधिः (स्त्री०) दवा, वनस्पति, जड़ी-बूटी। (वीरो० ४/४) औषधीय (वि०) रोग नाशक औषध। औषरं (नपुं०) सेंधा नमक। औषस (वि०) प्रभात सम्बंधी। औष्ट्र (वि०) उष्ट्र सम्बंधी। औष्ट्रकं (वि०) ऊँटों का समुदाय। औष्ठः (पुं०) रदनच्छद, रदनवास। (जयो० ५/४८) औष्ठ्य (वि०) ओंठ से सम्बन्धित।
कः (पुं०) कवर्ग का प्रथम व्यञ्जन, इसका उच्चारण स्थान __ कंठ है। यह स्पर्शवर्ण भी कहलाता है। कः (पुं०) इसके कई अर्थ है-ब्रह्मा, विष्णु, कामदेव, वायु,
अग्नि, यम, सूर्य, राजा, गांठ, मोर, पक्षी, मेघ, शब्द,
हर्ष, ध्वनि आदि क-कल्याण-(जयो० वृ० १९/३६) क-मुख (जयो० ६/४२)
आत्मा-कस्यात्मन आशी (जयो० ३/३०, जयो० १४/६६) पृथ्वी -(सुद ०२/२१) सूर्य-(जयो० १५/३८,३९) को ब्रह्मानिलसूर्याग्नियममात्मदयोति बहिर्षु इति विवश्लोचनः। (जयो० १४/६६, १७/३) जल-जलं कमन्ते पावें तस्य तस्य कान्तस्य' कमिति जलं तदेव सुख चेति' कान्तकर-कमिति च कान्तकर (जयो० १४/७५)
For Private and Personal Use Only