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एकाग्रचिन्तानिरोधः
२३४
एकैक
एकाग्रचिन्तानिरोधः (पुं०) अनेक चिन्ताओं से रहित, ध्यान- एकान्तसात (वि०) एकमात्र दाता को प्राप्त।
शील। 'एकाग्रे चिन्तानिरोधः एकाग्रचिन्तानिरोधः' (त० एकान्त स्थान (नपुं०) निर्जन स्थान, शून्य आवास। वा० ९/२७)
एकान्तस्थिति (स्त्री०) निर्जनस्थान में वास। 'एकान्ते-निर्जने एकाग्रमनं (नपुं०) कर्म रहित मन, ध्यानशील मन।
देशे स्थितिमभ्यगाद्' (जयो० वृ० २८/१२) एकाक्षः (फं) एकेन्द्रिय। 'एकाक्षिवह्नयब्धिहणीकभाजा' (भक्ति०३९) | एकायित (वि०) एकता युक्त, समन्वय युक्त, साहचर्य पूर्ण। एकाक्षर (वि०) ग्यारवां।
(जयो० २८०४०) 'स्वात्मनैकायितोऽप्यभूत्' एकादश-अंग (पु०) ग्यारह अंग ग्रन्थ विशेष।
एकावग्रहः (पुं०) एक ही वस्तु में जानने का भाव। 'एकस्सेव एकादश-द्वारं (नपुं०) शरीर के ग्यारह द्वार/छिद्र।
वस्थुवलंभी एयावग्गहो' (धव० ६/१९) एकादशप्रतिमा (स्त्री०) ग्यारह प्रतिमा।
एकाशनं-देखो नीचे। एकादशसर्गः (पुं०) ग्यारह सर्ग।
एकासनं (नपुं०) ऊनोदरव्रत, तप का द्वितीय भेद। एक बार एकादशाङ्गवेत्ता (वि०) ग्यारह अंग सूत्रों का ज्ञाता। (जयो० भोजन ग्रहण, नियमपूर्वक एक बार आहार ग्रहण। वृ० १२३/८७)
'नैकासनकासनिताप्यसुप्ता' (जयो० १७/१८) एकादशी (वि०) ग्यारस। (दयो० १११)
एकाशनत्वमभ्यस्येद् द्वयशनोऽह्नि सदा भवन। (सुद० १३१) एकादशीप्रतिमा (स्त्री०) ग्यारहवीं प्रतिमा।
एकाशनक (वि०) एक अशन वाला। (जयो० ६/१००) एकादशोपासक संश्रय (वि०) श्रावक की ग्यारह प्रतिमा का | एकिका (वि०) एकीभाव, एकात्मकता। रेखैकिका नैव लघुर्न
आश्रय। (भक्ति० ४२) एकादशोपासकसंश्रयेषु, भिक्षोरथ गुर्वी लब्ध्याः परस्यां भवति स्विदुर्वी।: (वीरो० १५५) द्वादशसु स्थलेषु' (भक्ति० ४२)
अपेक्षा विशेष से वस्तु में छोटा एवं बड़ापन होता है। न एकाधृत (वि०) एक आधार वाला। (समु०८/४८) 'एकाधृता
कोई रेखा छोटी होती है और न कोई बड़ा होती है। नीतिरभक्ष्यवृत्तिः' (समु०८/४८)
एकीभावः (पुं०) १. साहचर्य, संहति। २. सामान्य स्वभाव, एकानेकात्मक (वि.) एकात्म और अनेकात्म रूप। एकत्व सामान्य गुण। और अनेकत्व रूप। (वीरो० १९/२३)
एकीभावस्तोत्रं (नपुं०) स्तोत्र नाम, आचार्य वादिराज द्वारा एकान्त (वि०) एकान्त दृष्टि, (सुद० ९१) उपस्थिते वस्तुनि रचित स्तोत्र (ई०१०१०-१०६५) २६ संस्कृत श्लोक में
वित्तिरस्तु नैकान्ततो वाक्यमिदं सुवस्तु। (वीरो० २०/१५) भक्तिपूर्ण आध्यात्मिक वर्णन है। १. अंत की संभवत:। जं तं एयाणंतं तं लोगमज्झादो एकीभू (अक०) एक होना, साहचर्य होना, समन्वय होना। एगसेढि पेक्खमाणे अंताभावादो एयाणंतं (धव० ३/१६) (भक्ति० ३०) 'एकीभवन्त्यत्र सदात्मवत्ता'। २. एकाग्र-त्यक्त्वा देहगतस्नेह मात्मन्येकान्ततो रतः। (सुद० | एकीय (वि०) १. साहचर्य युक्त, सहकारी। २. एक या एक से। १३५) ३. निश्चित रूप, नियमा श्यामं मुखं मे विरहैकवस्तु एकेन्द्रियः (पुं०) एक स्पर्शनेन्द्रिय। एदेण एक्कण इंदिएण जो ह्येकान्ततो रक्तमहो मनस्तु। (जयो० १६/१२)
जाणदि पस्सदि सेवदि जीवो सो एंददिओ णाम। (धव० एकान्त-असात (वि०) असाता रूप मात्र ही।
७/६२) एकान्ततः नियम से, निश्चित रूप से। (सम्य० ८/४२) | एकेन्द्रियजाति (स्त्री०) एकेन्द्रिय में जन्म। 'यदुदयादात्मा 'एकान्ततोऽसावुपभोगकाल:' (सुद० १२०)
एकेन्द्रिय इति शब्द्यते तदेकेन्द्रियजातिनाम।' (स० सि० एकान्ततयानुरागः (पुं०) एक मात्र अनुराग। (वीरो० २१/१९) ८/११) एकान्तनिष्ठ (वि०) एकान्त युक्त। (जयो० १०/१००) एकेन्द्रियजीवः (पुं०) पृथ्वी आदि एक इन्द्रिय वाले जीव। एकान्तप्रचण्ड (वि०) एक मात्र तेजस्विता। (जयो० वृ० २६/२३) | जिसकी एक ही इन्द्रिय हो। (वीरो० १९/८) एकान्त-मिथ्यात्वं (नपुं०) एक ही धर्म का अभिनिवेश/आग्रह। | एकेन्द्रियभेदः (पुं०) एकेन्द्रियों के भेद। एकान्तवादः (पुं०) एक ही है ऐसा पक्ष। (जयो० १८/४५) एकेन्द्रियलब्धि: (स्त्री०) एकेन्द्रिय की शक्ति प्राप्त जीव/लब्धि एकान्तवासः (पुं०) एकाकी निवास, एकाग्रता में स्थित। प्राप्त जीव। (जयो० वृ० १८/४५)
एकैक (वि०) वीप्सात्मक प्रयोग, एक से एक, एक एक।
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