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एतावन्मात्र
२३६
एषणाशुद्धिः
एतावन्मात्र (वि०) इतना ही, ऐसा ही। एतु-प्राप्त हो। (जयो० 'समञ्चतोत्येव हि सम्यगस्ति' (सम्य० वृ० ४) २७/४२) (जयो० वृ० २२/४)
सम्यक्त्वमेवानुवदामि' (सम्य० पृ० ४) एव-जहां, जिस एत्थं (अल्य०) इस प्रकार, ऐसा। (सम्य० ४३)
जगह 'मुक्तामया एव जनाश्च' (सुद० १/२८) एव-तो, एत्य (सं०कृ०) प्राप्त होकर. जाकर। 'येन कर्णपथतो हृदुदारमेत्य' तु, फिर, ही। (जयो० वृ० १४३) श्रोणी महती सैव मोदको (जयो० ४/५३) एत्य गत्वा। (जयो० वृ० ४/५३)
संकुच रूपौ। (जयो० ३/६०) एदृगमयि (अव्य०) ऐसा भी, इस तरह का भी। (सुद० १०५) एव तु (अव्य०) फिर भी, जहां पर। (सुद० १/३३) एधु (अक०) १. उगना, बढ़ना, फलना-फूलना। एधयन् एवमेव च (अव्य०, और इस तरह की। (जयो० १/५१)
वर्धयन् (जयो० वृ० १०/८२) २. नमन करना, आदर एवमैवेति (अव्य०) इसी तरह का ही। (जयो० वृ० १/९०) देना, सम्मान करना।
एवयत्र (अव्य०) जहां पर तो। पलाशित किंशुक एवं यत्र एध: (पुं०) ईंधन, अग्नि में जलाने की लकडी।
द्विरेफबर्गे मधुपत्त्वमत्र। (सुद० १/३३) एधतुः (पुं०) [ एध्+ चतु] १. बह्नि, अग्नि। २. नर, मानव। एवं (अव्य०) (इ+वम्] अतः, इसलिए, इस रीति से इस एधस् (नपुं०) ईंधना
प्रकार से। (जयो० १० १/२) एवं सुमंत्र वचसा भुवि एधा (स्त्री०) [एध् + अ टाप्] आनन्द, प्रसन्नता।
भोगवत्या (सुद० पृ०८०) एधित (भू० क० कृ०) आन्नदित, प्रफुल्लित, हर्षित, विकसित। | एवं च (अव्य०) ऐसा भी, इस तरह का भी. और इसी रीति एनस् (नपुं०) [इ+असुन्] पाप, अशुभ प्रवृत्ति, दोष, अपराध, से। (सुद० ४८)
कलुष। स्वयं प्रवर्तन्त इतः किमेन: (भक्ति० २७) एवमस्तु (अव्य०) ऐसा ही हो. इस प्रकार का हो। एनोऽपराधे कलुषे इति विश्वलोकनः गणिकाऽऽपणिका एवं आदि (अव्य०) इस प्रकार का ही। किलैनसा' (जयो० २/१३३) एनां (जयो० १/२१), एना: एवं गुण (वि.) इस तरह (सुद० २/३६) 'एवं प्रकारेण (जयोल १३)
समुज्जगर्ज' (सुद० २/३६) एनपरिहर्ता (वि०) पापहर्ता, पापपरिवर्जक (जयो० २३/४५) एवंभूत (वि.) इस प्रकार के गुणों का। एनस्वत् (वि०) पापी, अपराधी, दुष्ट प्रवृत्ति वाला।
एवंभूतः (पुं०) एवं भूतनय, जो दव्य जिस प्रकार की क्रिया एनस्विन् (वि०) पापी, अपराधी।
में परिणत हो, उसी प्रकार का निश्चय कराने वाला नय। एन्द्री (वि०) प्रकाशवान्। (सुद० ३/१)
'येनात्मना भूतस्तेनैवाध्यवसाययतीति एवं भूतः' (स० सि० एरः (पुं०) राम के गुरु, विद्या गुरु। (प०पु०२५/५५)
१/३३, ता वा० १/३३) 'पदगतवर्णभेदाद वाच्यभेदस्याध्यवएरण्डः (पु०) [आ+ईर्+अण्डच्] अरंडी का पौधा।
सायकोऽप्येवम्भूतः' (धव० १/९०) उसी रूप परिणत हुए एरित (वि०) प्रेरित, प्रेरणा प्राप्त। (जयो० वृ०६/१)
पदार्थ को उस शब्द द्वारा ग्रहण। (तत्त्व०२७. १/३३) एलकः (पुं०) भेड़, मेष!
एवकार (वि०) ऐसा ही है, निपात, व्यतिर चक/निवर्तक या एलमूकः (पुं०) जड़, भाषाजड़, अव्यक्तशब्दभाषी।
नियामका एवकार तीन अर्थों में प्रयुक्त होता है। एला (स्त्री०) इलायची।
अयोगव्यच्छेदक, अन्ययोगव्यत्छेदक और अत्यन्ता योग एलाचार्यः (पुं०) कुन्दकुन्द का अपर नाम, कुरलकाव्य के व्यच्छेदका रचनाकार।
एवावृति (स्त्री०) इस प्रकार की आवृत्ति। (समु० ९/२१) एलीका (स्त्री०) छोटी इलायची।
एशित (वि०) विजयी। (मुनि० ११, सुद० २/४१) एपि खेमें। एलेयः (पुं०) राजा दक्षका पुत्र।
एष् (सक०) जाना, गमन करना, पहुंचना। एव (अव्य०) [इ. वन्] किसी द्वारा कथित वचन को बल देने एषणं (नपुं०) [एष्+ ल्युट्] लोह बाण।
के लिए इस अव्यय का प्रयोग होता है। जिसका अर्थ-ही, एषणं (नपु०) खोजना, अन्वेषण करना। ऐसा. ठीक है, उचित है, वही, इतना ही, ऐसा ही। एषणा (स्त्री०) १. आहारादि अन्वेषण। २. अन्वेपिणी। (जयो० 'दापमा । दुर्जन एव भाति' (समु०१/२४) दुर्जन दोष ही १३/४३) ग्रहण करता है। स्वयं पुना रौरवमेव याति' (समु० १/३४) | एषणाशुद्धिः (स्त्री०) आहारादि शुद्धि।
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