Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 241
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकतल २३१ एकदंडिन् एकतल (अव्य०) एकमात्र, अकेला, एकाकी। 'मित्र: एकत्र चैकत्वमनेकताऽऽपि, पवित्रकतले ऽभिलाष्यम्' (जयो० २७/१७) किमङ्गभर्तुर्न धियाऽभ्यवापि।। (वीरो० १९/२३) एकतमा (म्बी) एक विपत्ति, एक संकट। 'परिणता विपदेकता 'सेना' यह एक नाम है, उसमें अनेक हाथी, घोड़े, पयादे यदि' (जयो० ९/२) आदि होते हैं। जिसे 'वन' कहते हैं, वह एक है, उसमें एकतान (वि०) एक करवट, नितान्त ध्यानमग्न, एकाग्र चित्त, नाना जाति के वृक्ष पाए जाते हैं। एक स्त्री को 'दारा' एक और केन्द्रित। 'किलैकपाश्र्वेन चिदेकतानः' (जयो० बहुवचन से और जल को 'अप्' बहुवचन से कहा जाता २७/४९) एकतानो-अनन्यवृत्ति:-एकवर। (जयो० वृ० है। इस प्रकार एक ही वस्तु में एकत्व और अनेकत्व की २७/४९) 'पूज्यो महात्माऽत-पदेकतानः' (सुद० ११८) प्रतीति होती है। एकतत्त्वं (नपुं०) एक मात्र तत्त्व। स्यूति पराभूतिरिव ध्रुवत्वं एकत्वविक्रिया (स्त्री० ) अभिन्नविक्रिया। पर्यायस्तस्य यदेकतत्त्वम्' नोत्पद्यते नश्यति नापि वस्तु एकत्ववितर्कः (पुं०) क्षीण गुणस्थानवर्ती का ध्यान। शुक्लाग्निसत्त्वं सदैतद्विदधत्समस्तु।। (वीरो० १९/१६) जैसे पर्याय । नैकत्ववितर्कनाम्ना ध्यानेन सम्परितधन्यधाम्ना। (भक्ति० की अपेक्षा वस्तु में 'स्तृति' (उत्पत्ति) और 'पराभूति' पृ० ३२) (विपत्ति/विनाश) पाया जाता है, उसी प्रकार द्रव्य की | एकत्ववितर्कावीचारः (पुं०) शुक्लध्यान युक्त चिन्तन। 'एकस्य अपेक्षा ध्रवपना भी उसका एक तत्त्व है, जो कि उत्पत्ति भाव: एकत्वम्, वितर्को द्वादशाङ्गम्, असङ्क्रान्तिरवीचारः और विनाश में बराबर अनुस्यूत रहता है। इस प्रकार एकत्वेन वितर्कस्य अर्थ व्यञ्जन-योगानामवीचारः। उत्पाद, व्यय और ध्रुव इन तीनों रूपों को धारण करने असंक्रातिर्यस्मिन् ध्याने तदेकत्व वितर्कावीचारं ध्यानम्।' वाली वस्तु को भी यथार्थ मानना चाहिए। (वीरो० (धव० १३/७९) हि०१९/१६) एकत्वानुप्रेक्षा (स्त्री०) एकत्वभावना, बारह भावनाओं/अनुप्रेक्षाओं एकता (स्त्री०) एक निष्ठता, एक रूपता। (जयो० २६/२५१) में चतुर्थ भावना, इसमें यह चिन्तन करना कि जीव तन्मयता (भक्ति० २१) 'या बिभर्ति परमेकताकिणम्' अकेला उत्पन्न होता है, अकेला ही कर्म उपार्जित करता (जया० २/१५५) है और अकेला ही उनका उपभोग करता है। एकतालः (पुं०) संगीत, स्वर, नृत्य, वाद्य आदि। एकत्र (अव्य०) [एक+त्रल्] एक स्थान पर, सामूहिक, एक एकतिलकर (वि०) अद्वितीय तिलक। (वीरो० ४/४०) साथ, इकट्ठे। 'एकत्र गत्वा भवेत्' (मुनि० वृ० २८) एकतीर्थिन् (वि०) एक ही धर्म परम्परा वाले। दार्शनिक दृष्टि से-एक ही वस्तु में 'सत्' और 'असत्' की एकत्व (वि०) एक रूपता, सामञ्जस्य, समत्वभाव। (जयो० । प्रतिष्ठा, एकत्र तस्मात्सदसत्प्रतिष्ठामङ्कीकरोत्येव जनस्य २६/८६) निष्ठा। (वीरो० १९/४) एकत्वप्रत्यभिज्ञानं (नपुं०) प्रत्यक्ष और स्मृति से युक्त ज्ञान, | एकत्रिंशत् (स्त्री०) इकतीस। एकत्व को विषय करने वाला ज्ञान। 'पूर्वोत्तर-दशाद्वय- | एकत्राडित (ति०/) एक ही अंकन पत्र वाला। 'एकत्र-एकस्थानेव्यापकमेकत्वं प्रत्यभिज्ञानस्य विषयः। तदिदमेक एकस्मिनेवाङ्कनपत्रे' (जयो० वृ० १५/८१) प्रत्यभिज्ञानम्' (न्यायदीपिका-३/५६) एकदा (अव्य०) एक बार, एक समय। (वीरो० २/१४०) एकत्वभावना (स्त्री०) अकेला ही विचार, एकाकी विचार। (सुद० ४/१७) एकदा स्तवक-गुच्छ नगरादवहिरास्थितः। बारह भावना या अनुप्रेक्षा में चतुर्थ भावना-मैं ही मेरा हूं (समु० २/३१) इस प्रकार का विचार करना (तत्त्वार्थ० पृ० १४४) एकदासी (स्त्री०) सेवा करने वाली गृहिणी, एकमात्र गृहिणी। 'एकाक्येव जीव उत्पद्यते, कर्माणि उपार्जयति, भुङक्ते त्वमेकदा विन्ध्यागिरेनिवासी भिल्लस्त्वदीयांघ्रियुगेकदासी। चेत्यादि चिन्तनमेकत्वभावना।' (जैन०ल० २९२) (सुद० ४/१७) एकत्वमनेकता (वि०) एकत्व और अनेकत्व की प्रतीति। एकदंतः (पुं०) एक दांत वाला, गणेश। सेना वनादीन् गदतो निरापद्, एकदंष्ट्रः (पुं०) एक दांत वाला गणपति। दारान् स्त्रियां किञ्च जलं कि लापः। एकदंडिन् (वि०) एक दण्डधारी। For Private and Personal Use Only

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