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उपनीतरागत्व
२११
उपबन्धः
करणा
उपनीतरागत्व (वि०) आदरभाव से उत्पन्न रागता. श्रोताजनों ४. जन्म, जन्मान्तर प्राप्ति। 'उपपतनमुपपातो देवनारकाणाम्' में रागता।
(आ०वृ० १/१३) उपनृत्यं (नपुं०) ०नृत्यशाला, नृत्यभवन, नाट्यगृह, ०नर्तन उपपातकं (नपुं०) पाप जन्य, घृणित, निन्दित, तुच्छ। स्थान।
उपपादः (पुं०) [उप- पद्+णिच्+घञ्] १. जन्मान्तर, जन्म से उपनेतृ (वि०) [उपानी+तृच्] ले जाने वाला, नेतृत्व प्रदान दूसरे जन्म को प्राप्त होना, जन्मस्थान। उपेत्य पद्यतेऽस्मिन्निति करने वाला।
उपपाद:' (स० सि० २/३१, त० श्लोक २/३१) उपनेत्रं (नपुं०) उपनयन, चश्मा। 'अवलोक्यते भव्युपनेत्र 'परित्यक्तपूर्वभवस्य उत्तरभवप्रथमसमये प्रवर्तनमुपपाद:'
युक्त्या' (जयो० २६/९८) 'किलाशक्त्या नयनयो: (गो०जी०गा०५४३) शक्त्यभावे सत्युपनयन युक्त्याऽवलोस्यते' जिसके नेत्रों में | उपपादनं (नपुं०) [उप+ पद्+णिच् ल्युट्] १. सम्पन्न करना,
स्वयं देखने की शक्ति नहीं है, वही उपनेत्र/उपनयन है। निष्पादन, २. कार्यान्वित करना, ३. देना, सौंपना। ४. उपन्यासः (पुं०) [उप नि+अस्+घञ्] १. शिक्षा, अध्ययन, प्रमाणित करना, ५. तर्क स्थापना। ६. परीक्षा, प्रमाणीकरण,
विधि, नियम। २. धरोहर, न्यास, अमानत। ३. प्रस्तावना, निश्चयीकरण। ४. भूमिका. ५. विचार, पुरोवाक। ६. वक्तव्य, कथन, उपपादस्थानं (नपुं०) उत्पत्तिस्थान। (जयो०६६) प्रस्ताव।
उपपापं (नपुं०) अशुभ को ओर, पाप के समीप। उपपतिः (स्त्री०) यार, प्रेमी। (जयो० १६/७३) 'पति' और उपपावः (पुं०) स्कन्ध, कंधा. पार्श्वभाग।
'उपपति' दो शब्द हैं, इनमें 'उपपति' शब्द की 'घु' संज्ञा उपपीडनं (नपुं०) [उप- पीड्+णिच्+ ल्युट्] १. पेलना, निचोड़ना, होती है। उपपति शब्द में ङित् विभक्ति पड़े रहते गुण उखाड़ना, उत्पीड़न। आलिंगन-सजोषमालिंगत-(जयो० होकर 'उपपतये' रूप बनता है तथा 'उपपति' शब्द की १२/१२७) २. पीड़ित करना, दु:खित करना, प्रताड़ित तृतीया एकवचन में ना आदेश होकर 'उपपतिना' रूप करना। ३. दु:ख, व्याधि, कष्ट, वेदना। बनता है। ऐसे उपपति शब्द के चिन्तन में मेरा मल लग उपपुरं (नपुं०) पुर का समीप भाग, नगर का सन्निकटस्थान। रहा है, पति शब्द के चिन्तन में नहीं। 'पतिरपि (जयो० ३/७१) तेनैवोपुरे सुरेण रचितं' (जयो० ३/७१) प्राणवल्लभोऽपि शस्त: प्रशंसनीयोऽस्ति उपपतिर्जार: सोऽपि उपपुराणं (नपुं०) लघु पुराण, लघु इतिवृत्त, पुरातन चरित्र अतिसखिवत्' (जयो० वृ० १६/७४)
का संक्षिप्त विवेचन।। उपपत्तिः (स्त्री०) [उप पद्+क्तिन्] १. आविर्भाव, उत्पन्न, उपपुष्पिका (स्त्री०) हांकना, श्वांस लेना।
जन्म, प्रसूति। २. सम्पन्न, प्राप्त करना, उपाय। उपप्रदर्शनं (नपुं०) निदर्शन, संकेत, इंतिगीकरण। 'पृथाजनामामुपपत्तिवीर्यः' (सम्य० ९२) ४. कारण, हेतु, उपप्रदानं (नपुं०) १. उपहार. भेंट, उपायन। २. अभीष्ट दान, आधार। ५. योग्यता, औचित्य, प्रदर्शन, उपसंहार।
इष्टदान। 'उपप्रदानं अभिमतार्थदानम्' (जैन०ल० २७२) उपपत्तिवीर्यः (पुं०) लब्धवीर्य, परिपक्व बोध शक्ति। उपप्रलोभनं (नपुं०) उपहार, भेंट, रिश्वत, घूस, लालच, उपपदं (नपुं०) १. शब्द से पूर्व लगाया गया पद या शब्द से प्रलोभन।
पूर्व बोला गया पद। २. उपाधि, अलंकरण, सम्मानसूचक उपप्रेक्षणं (नपुं०) उपेक्षा करना, अवहेलना करना। शब्द। ३. हर्षजन्य (सुद०३/८७ मुनि० २९) 'वृषभोपपदो उपप्रैषः (पुं०) आमन्त्रण, निमंत्रण, आह्वान। दासो'
उपप्लवः (पुं०) [उप+प्लु+अप्] विपत्ति, दुष्कृत्य, आपदा, उपपन्न (भू० क० कृ०) [उप+पद+क्त] १. प्राप्त, समागत, ३. दुर्घटना, उत्पीड़न। ४. भय, डर, ५. अपशकुन,
आगत, युक्त, सहित। २. योग्य, उचित, उपयुक्त, समीचीन। उपद्रव, ६. उपनय। उपपरीक्षणं (नपुं०) [उप+परि+ईक्ष+अङ्ग ल्युट्] अनुसंधान, उपप्लुतस्थानं (नपुं०) अशान्त स्थान। खोज, शोध।
उपप्लविन् (वि०) [उपप्लव-इनि] उपद्रवी, दु:खित, पीडित, उपपात: (पुं०) [उप+ पत्+घज] १. उपद्रव, घटना, दुर्घटना, दुर्घटना युक्त, विपत्ति वाला,
२. संकट, कष्ट, विपत्ति, प्रादुर्भाव। ३. उपपतन, उत्पत्ति, | उपबन्धः (पुं०) [उप+बन्ध्+घञ्] सम्बन्ध, आसक्ति, उपसर्ग।
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