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अपरपुरुषः
अपराधिन्
अपरपुरुषः (पुं०) अन्य पुरुष, दूसरा आदमी। अपरपुरुषस्य
साहाय्येन। (जयो० वृ० २/१३) अपर-पार्थिवः (पुं०) इतर राजा, अन्य नरेश। सदञ्जनं
चारपरपार्थिवानाम्। (जयो० ६/३१) अपरप्रणीति (वि०) अन्य ज्ञान (वीरो० २०/१९१) अपरम (वि०) विपत्ति, हानि। (सुद० १०४) किमु यावकलां
कलामये परमस्यापरमस्य हानये। अपरत्व (वि०) ०अतिरिक्त, ०अन्य, दूसरा। प्रशस्त गुणों से विपरीतता, अधर्मजन्य तत्त्व। सिद्धान्त में परत्व और
अपरत्व ये दो निमित्त भी हैं। अपरविदेहः (पुं०) विदेह क्षेत्र का आधा भाग, मेरु पर्वत से
पश्चिम दिशा की ओर स्थित विदेह क्षेत्र का आधा भाग। अपरसंग्रहः (पुं०) भेदों की उपेक्षा रूप नय। अपरस्पर (वि०) [अपरंच परं च] एक के बाद अन्य, अनवरत। अपरस्मिन् (वि०) कस्मिञ्चित्, किसी से भी। (जयो० ६/२०)
गिरमपरस्मिन्निष्टे महाशये।। अपरागः (वि०) १. रागाभाव, अरुचि, राग रहित, २. अनुराग
रहित, असंतोष युक्त। अपराध-विहीन (वि०) दोष रहित, पाप रहित। मा स्म
कच्चिदपराधविहीनः। (समु० ५/१३) रागाभावस्यात्साऽपरागस्य हृदीह शुद्धया, कुतोऽपरागः परमात्मबुद्धया। (वीरो० ५/२९) इह संसारे सा मोहक्षतिरपरागस्य विरक्तस्य पुरुषस्य हृदि चिते विशुद्धया चित्तशुद्धया स्यादित्युत्तरम्। अपरागो रागाभावः इति प्रश्न? उक्त पंक्ति में प्रथम 'अपराग' का अर्थ विरक्त और द्वितीय का 'रागाभाव' है। दोनों का अभिप्राय एक है, परन्तु एक से परमात्मविशुद्धि अर्थ का प्रतिबोध होता है और दूसरे से विरक्तपरिणाम। १. जयोदय (वृ० ६/८९) में अपराग का एक अर्थ 'अरुचि' भी है। परमापरागवतोऽपि जयंत। (जयो० २२/४३) ०अपराग-विराग या रागरहित भी अर्थ है। प्रोद्भिद्यमङ्क्षु कमलं स्फुरतापराग-भावेन भूरि-भरिताखिलभूमि भागः। (जयो०
१८/५४) उक्त पंक्ति में 'अपराग' का अर्थ वीतराग भी है। अपरागभावः (पुं०) वीतराग परिणाम। (जयो० वृ० १८/५४) अपराञ्च (वि०) [अपर+अञ्च+क्विप्] दूर किया गया, विमुख
हुआ। अपराञ्च (अव्य०) सामने, संमुख। अपराजित (वि०) अजेय, अखण्ड। जल्पान्तीमपराजित हृदि
मुदा मन्त्रं मृधान्तार्थतः। (जयो० ८५८६) युद्ध से हुए
पाप से दूर हटाने के लिए अर्हत् मन्त्र की आराधना।
०अभिलषित ०अपराजित मन्त्र, ०इष्टसिद्धि मन्त्र। अपराजितः (पुं०) अपराजित नाम का राजा, भरतक्षेत्र के
चक्रपुर नगर का शासक। कदाचिदासीदपराजिताख्यः, पराजिताशेष नरेशवर्ग:। (समु० ६/९) एक विमान का
नाम भी 'अपराजित' है। अपराजिता (स्त्री०) पार्वती, गौरी, महेश भार्या। (वीरो० वृ०
३/३४) अपराजितेशः (पुं०) शिव, शंकर, महादेव। (वीरो० ३/५) स
चापराजितेशोऽपराजितायाः पार्वत्याः स्वामी महादेवः। (वीरो०
वृ० ३/५) अपराजितेश्वरः (पुं०) महादेव, शिव। (वीरो० ३/५) अपराध (पुं०) [अप+राध्+घञ्] ०पाप, दोषोऽन्वित, ०दुष्कर्म।
(सुद० ११०) 'मन्तु स्यादपराधेऽपि मानवे परमेष्ठिनि' इति विश्वलोचन। (जयो० वृ० १/३९) मन्तुमन्ति अपराधकारीणि अक्षराणीन्द्रियाणि लान्तीति। (जयो० वृ० १/३९) कोऽपराध इह मङ्गलेऽन्वितः। (जयो० ७/५८) o'अपराध' शब्द 'दोषोऽन्वित' दोष युक्त इस अभिप्राय को व्यक्त कर रहा है। चित्तेऽपराध-क्षमणादिवेदं' (भक्ति सं०९) इस पंक्ति में 'अपराध' शब्द प्रायश्चित्त वाचक है। अपगतो राधो यस्य भावस्य सोऽपराधः। (सम्य० ३३२) जो राध से रहित है, वह अपराध है। सुदर्शनोदय (वृ० १२४) में अपराध का अर्थ दोष भी है। कृतापराधाविव बद्धहस्तौ। (सुद० २/२६) आत्मापराधस्य नराः स्मरन्तु। (जयो० १५/९) अपराधस्य दुष्कर्मणः।
(जयो० वृ० १५/९) अपराद्ध (वि०) ०अपराध, ०दोष, पाप करने वाला, दुष्टकर्म
करने वाला। स्वामि स्त्वय्यपराद्धमेवमिह। (सुद० १२४)
(जयो० वृ० १५/९) अपराद्धिः (स्त्री०) [अप+राध्+क्तिन्] पाप, दोष, दुष्टकर्म। अपराधकारी (वि०) दोषपूर्ण कार्य करने वाला, दोषी, दुष्टकर्मी।
(जयो० १८/२४) निर्यातु जातु न तम्पेऽप्यपराधकारि।
(जयो० १८/२४) यहां 'वियोगकारी' अर्थ भी है। अपराधिन् (वि०) [अप+राध्+णिनि] दोषी, अपराधी, दुष्ट।
दण्डं चेदपराधिने न नृपतिः। (सुद० ११०) यद्वा राज्ञाऽपराधिन एवैते किलेति प्रतिज्ञायते। (दयो० ४९) संयोगतश्चासमिहापराधी। (भक्ति सं० २९)
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