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अविधेय
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अविलम्ब
रथस्थिति-मात्मवानविधुरां वधूमिति। (जयो० २१/२०) । अविभा (स्त्री०) प्रभा का अभाव, रात्रि का अन्त, प्रातः, दिन। 'अविधुरां धुराया दोषेण रहितां पक्षे सौभाग्यवतीति। (जयो० | अविभागः (वि०) १. अविभक्त, अविनाशी, अक्षय, अखण्ड, वृ० २१/२०)
अन्तिम अंश। २. अनुभाग की बुद्धि। अविधेय (वि०) विपरीत, उलटा, आधीनता रहित।
अविभाज्य (वि०) अविभक्त, अविनाशी, जो बांटा न जा सके। अविनत (वि०) नम्रता रहित, अहंकारी।
अविभाजित (वि०) विभाग रहित, अविनाशी। अविनय (वि०) १. अविनीत, आज्ञा निर्देश को नहीं पालने अविरत (वि०) १. इन्द्रियों से विरत नहीं, जीव रक्षण नहीं वाला, ०अशिष्ट। २. अनादर, अपमान, अपराध।
करने वाला। २. निरन्तर, सदैव, विरामरहित, गतिवान्। अविनाभावः (पुं०) १. सम्बन्ध विशेष, वियुक्त न होने जैनदर्शन में 'अविरत' चतुर्थगुणस्थावर्ती को भी माना गया योग्य सम्बन्ध। २. वियोगाभाव।।
है, उसे अविरतसम्यग्दृष्टि कहा गया। जिनवाणी पर श्रद्धा अविनाभावीसम्बंध: (पुं०) कार्य-कारण के अविनाश की रखने वाला भी ‘अविरत' कहलाता है।
सम्बंध के स्मरणपूर्वक ही तो अनुमान ज्ञान उत्पन्न होता | अविरतिः (स्त्री०) १. हिंसादि पापों से विरति न हो, असंयम, है। (वीरो० २०/६६)
लोभ परिणाम, तल्लीनता, आसक्ति, आतुरता। 'विरमणं अविनाभूस्मृतिः (स्त्री०) अविनाभाव सम्बंधी स्मृति। (वीरो० २०/१७) विरति, न विद्यते विरतिरस्येत्यविरतिः।' (धव०वृ० ७७७) अविनाशी (वि०) नाशरहित, क्षय रहित, अक्षत, अखण्ड। | अविरल (वि०) १. सघन, घना, प्रगाढ़, अत्यधिक। २.
वस्तुतो यदि चिन्त्येत चिन्तेतः कीदृशी पुनः। अविनाशी निरन्तर, लगातार, निर्बाध। 'दधुरविरलवारीत्येवमााणि।' ममात्मायं दृश्यमेतद्विनश्वरम्।। (वीरो० १०/३०)
(जयो० १४/३४) अविनीत (वि०) ०अशिष्टता, ०अभद्रता, विनय रहित, अविराधना (स्त्री०) अपराध सेवन, अपराध नहीं करना।
दुःशील, प्रतिकूल ०अनाज्ञाशील. धृष्ट। 'अविनीता सा अविरामः (पुं०) विश्रान्ति शून्य, विश्राम नहीं, श्रमशील, कुतः कदापि।' (जयो० २२/३१) अविनीता विनयवर्जिता। प्रयत्नजन्य। (जयो० २३/६१) निद्रापि क्षुद्राऽभवद् भुवि (जयो० २२/३१)
नक्तदिवमविराम। (जयो० २३/६१) अविनेय (वि०) विनीतता रहित, अनम्रता, अशिष्टता, सद्गुण अविराम कृ (सक०) प्रकट करना, कहना, प्रतिपादन करना।
असम्पन्न। "तत्त्वार्थ-श्रवण-ग्रहणाभ्यामसम्पादित गुणा त्रपयेव सम्भवन्ती द्रागाशयमाविराञ्चके। अविनेया।" (स०सि०७/११) न विनेतुं शिक्षयितुं शक्यन्ते अविरुद्ध (वि०) १. विचार रहित, विरोध को नहीं प्राप्त। ये ते अविनेया:। (त०वृ० ७/११)
(सुद० २/२) २. शान्त, सरल, मृदु, प्रसन्न। रागद्वेषरहिता अविपन्नः (पुं०) अविपत्ति, सुख, अच्छा, इष्ट, मनोरम, सती सा छविरविरुद्धा यस्य। (सुद० पृ० ७०) विपत्तिशून्य। 'छन्नमित्यविपन्नसमया।' (सुद९०)
अविरोधः (पुं०) विरोध का अभाव, अनुकूलता, संगत, अविपाक (नपुं०) कच्चा, बिना पका। अन्नेन नाधुर्द्विदलेन शान्त, सरला (वीरो० ५/३३) 'न विरोधोऽविरोध:' (वीरो०
साकमामं पयोऽध्यापि चाविपाकम्।' (सुद० पृ० १३०) वृ० ५/३३) अविपाकः (पुं०) निर्जरा का एक भेद। जिस कर्म का अविरोधक (वि०) विरोध नहीं करने वाला। उदयकाल अभी प्राप्त न हुआ हो।
अविरोधकर्ता (वि०) १. विरोध नहीं करने वाला। पक्षियों को अविपाकज (वि०) तपश्चरणादि से विपाक को प्राप्त कराने रोध का कर्ता नहीं, पक्षियों के संचार को करने वाला।
वाली क्रिया। 'कारणवशात् कर्मविनाशंः' (अमितगति 'एवं विरुद्धभवनोऽप्यविरोधकर्ता।' (जयो० १८/७६) श्रावकाचार ३/६५) "उपक्रमेण दत्तफलानां कर्मणां अविरोधभावः (पुं०) संगतभाव, उचित परिणाम, शान्त परिणाम। गलनमविपाकजा। (भ०आ०टी०१८४७)
'उक्ते तदीये न विरोधभावः। (जयो० ५/३२) 'किं तत्र अविप्लुतः (पुं०) अन्य जातिक, सज्जातिक अभाव, विलक्षण। जीयादविरोधभावः विज्ञानतः सन्तुलितः प्रभावः। (वीरो० ५/३३) (हित संपाक १७)
अविलम्ब (वि०) शीघ्रता, तत्कालिक, आशुकारिता। अविभक्त (वि०) अविभागी, खण्ड रहित, अक्षय, अविनाशी, निष्कासयताऽविलम्बमेनमिदमस्माकं चित्तमनेन। (सुद० पृ० संयुक्त।
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