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इष्टोपदेश:
इष्टोपदेशः (पुं०) आचार्य समंतभद्र द्वारा रचित रचना । इष्टोपयोगः (पुं०) इष्ट उपयोग शुभ उपयोग 'इष्टोपयोगाय
वियुक्तयेऽतोनिष्टस्य पीडासु निदानहेतोः । ' (समु० ८/३५) आर्तध्यान के चार भेदों में इसका प्रथम स्थान है (समु० ८/३५)
इष्म (पुं०) १. कामदेव, मदन २ वसन्त ऋतु। इष्यः (पुं०) वसन्त ऋतु ।
इष्वाकारः (पुं०) पर्वत का नाम (जयो० वृ० २४ / १४ ) इस् (अव्य० ) [इं कामं स्यति सो क्विप्] क्रोध, कोप, पीड़ा, शोक।
इह (अव्य०) [इदम्-ह इशादेश) यहां इधर, इस ओर इस दिशा में (जयो० वृ० १/४) इस स्थान पर, अब, अभी। (जयो० १ / १४) इह पश्याङ्ग सिद्धशिला भाति' (सुद० १२२) 'केशान्धकारीह शिर:' ( सुद०२/२५) 'करपल्लवयोः प्रसूनता- समधारीह सता वपुष्मता' (सुद० ३/२१ ) उक्त पंक्ति में 'इह' का अर्थ मानो कि है भवन्ति तस्मादिह तीव्रमन्द - (समु० ८ /१५) 'विघ्नश्च निघ्न इह भाति पुनर्विमोह:' (जयो० १० / ९५) इह भाति- इस पृथ्वी पर या इस स्थान पर सुशोभित होता है। इहापि ( अव्य० ) यहां भी इस समय भी इस स्थान पर भी । (सुद० १२०, जयो० १६ / ६९ )
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ई
ई: (पुं०) यह वर्णमाला का चतुर्थ स्वर है, इसका उच्चारण स्थान 'तालु' माना गया है तथा इसको दीर्घ स्वर के अन्तर्गत रखा जाता है।
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ई (अव्य०) यह दुःख को प्रकट करने वाला अव्यय है। इससे विषाद, शोक, दुःख, पीड़ा, खिन्नता, अनुकम्पा आदि का भाव स्पष्ट होता है।
ई (पुं०) (ई. क्विप्] कामदेव, मदन
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ई (सक० ) ०जाना, ०गति करना, ०चलना, ०चाहना, ०इच्छा करना, ०प्रार्थना करना, ० मानना ।
ईक्ष (सक० ) ० अवलोकन करना ०देखना ० निरीक्षण करना,
०ताकना ० विचारना। 'अमानवचरित्रस्य महादर्श किलेक्षि-
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१८.२
तुम्' (जयो० ३/१०१) 'प्रायमुदीक्ष्यतेऽतः' (सुद० २ / १९ ) ईक्षक : (पुं०) दर्शक, देखने वाला। ईक्षणं (नपुं० [ईश्+ ल्युट्] १. अवलोकन, परिदर्शन, दृश्य।
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ईदृक्
२. दृष्टि, चक्षु, नेत्र। (जयो० १ / ५३) एतयोः खलु परस्परेक्षणं सम्भवेत्' (जयो० २ / ६ )
ह्न ।
ईक्षण-क्षणं (नपुं० ) निरीक्षण मात्र, अवलोकन मात्र। (दयो० ६७) ईक्षण लक्षणं (नपुं०) चक्षु जन्य कारण, चक्षुचि ईक्षणयानेत्रयोः लक्षणं चिह्नम्' (जयो० १/५३) ईक्षणिक : (पुं०) ज्योतिषी, (निमित्त ज्ञानी)। ईक्षति (स्त्री०) दृष्टि, अक्षि, आंख, नयन, नेत्र चक्षु ईक्षमाण ( वर्त - कृ० ) देखता हुआ, अवलोकन करता हुआ । 'मृत्युं पुनर्जीवन मीक्षमाण:' (सुद० ११७)
ईक्षमाणकः (पुं०) गृही, गृहस्थ । 'अन्यदप्युचितमीक्षमाणकः ' (जयो० २/६२)
ईक्षा (स्त्री०) अक्षि, दृश्य, दृष्टि विशेष।
ईक्षिका (स्त्री०) [ईक्षा+कन्+टाप्] अक्षि, नेत्र, आंख, नयन, दृश्य झलक ।
ईक्षित (वि०) अवलोकित, देखा गया।
ईक्षित (भू० क० कृ० ) अवलोकन किया गया, देखा गया, परिदृश्यजन्य ।
ईक्षितवती (वि० ) ० पश्यंती, ०देखती हुई, ० निरीक्षण करती हुई अवलोकन करती हुई। 'मुहुर्वक्त्रं पत्युः शिथिलसकलाङ्गीक्षिवती' (जयो० १७ / १३० )
ईक्ष्यताम् (वि०) दृश्यता, अवलोकिता। प्रमुदितो रुदितं पुनरीक्ष्यताम्' (जयो० २५ / ६ )
ईख् (अक० ) झूलना, घूमना, हिलना ।
ईख् (अक० ) जाना, पहुंचना ।
ईज् (अक० ) १. जाना, २. कलंक लगाना, निंदा करना । ईड् (अक० ) स्तुति करना, अर्चना करना। ईडा (स्त्री०) पूजा, अर्चना, स्तुति ।
ईड्य (सं०कृ० ) [ईड् + ण्यत् ] प्रशंसनीय, समादरणीय, पूजनीय, स्तुति योग्य
ईति (स्त्री० ) [ ई+क्तिच्] व्याधि, कष्ट, पीड़ा, महामारी। (जयो० १/१) दुःख, व्यथा। (जयो० १/२१ ) ईतिमुक्तिः (स्त्री०) व्याधि मुक्ति, दुःखनिर्वृत्ति, 'अखिलमीशानमपीतिमुक्त्या' (जयो० १ / १ )
ईतिरहित (वि०) व्याधिमुक्त, पीड़ा रहित, दुःख रहित (जयो०
वृ० १/११ )
ईतिहृत्कथा ( स्त्री०) उपद्रवहर कथा (जयो० २ / ११८ ) ईद्रक (वि०) ऐसा, इस तरह का (सुद०२/२७) नश्येदितीदृड्
न परोऽस्त्युपाय (भक्ति० २५)
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