________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्पादः
१९४
उत्सङ्गवर्ती
.
उत्पादः (पुं०) १. प्रादुर्भाव, जन्म, उत्पत्ति, संजात. उदित। उत्प्रेक्षा (स्त्री०) [उद्+प्राई+अ] एक अलंकार विशेष, उत्पाद् (सक०) ०उत्पन्न करना, बनाना। बचाना। (जयो० जिसमें उपमान एवं उपमेय को समान रखने का प्रयत्न वृ०३/६८)
किया जाता है। प्रस्तुत अर्थ के औचित्य में किसी अन्य उत्पाद (वि०) उठे हुए. ऊपर पैरों वाला।
अर्थ की कल्पना की जाती है। 'इव' अव्यय का प्रयोग उत्पादः (पुं०) उत्पत्ति वर्णन, दार्शनिक दृष्टि से वस्तु की इसकी पहचान है। शीतरश्मिरिह तां रुचिमाप यां पुरा नहि
भवान्तर प्राप्ति। वस्तु का आविर्भाव होना। 'आविब्भावो कदाचिदपावष्यतरतां च भुवि साक्। (जयो० ४/६० ३/७४, उप्पादो' (धव० १५/पृ० १९) 'अभूत्वा भाव उत्पाद:' २६/४७, २६/२९, २६/१७, ३/८, ५/९, १४/९४, १८/२७, (म०पु०२४/११०) 'स्वजात्यपरित्यागेन भवान्तरावाप्तिरुत्पादः' वीरो० १२/२८) जयोदय के अप्ठमाध्याय में इस अलंकार (त०श्लो ५/३०) अवस्थान्तर प्राप्त होना।
का अधिक प्रयोग हुआ। (८/३०, ३७, ४०) उत्पादक (वि०) [उद्+पद्। णिच्+ण्वुल्] उपजाऊ, पैदा करने उत्प्रेक्षित (भू० क० कृ०) कथित, प्रतिपादित, निरूपित। वाला, जनक।
(जयो० वृ० १/१९) उत्पादनं (नपुं०) [उद्+पद्+णिच् ल्युट्] जन्म देना, प्रादुर्भाव उत्प्रेक्ष्यते-कथन किया जाता है। (जयो० १/१९) करना।
उत्प्लवः (पुं०)[उद्+प्लु+अप] ऊँची कूद, उछलना, कूदना, उत्पाद-पूर्वं (नपुं०) प्रथम पूर्व ग्रन्थ का नाम, जिसमें जीव, ऊपर से कूदना।
पुद्गलादि की उत्पत्ति का वर्णन होता है। वस्तुओं के उत्प्लावनं (नपुं०) [उद्+प्लु+ल्युट्] १. अतितरामुल्लास, अधिक
उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्य स्वभाव का प्रामाणिक वर्णन। हर्ष, (जयो० वृ० १३/९७) २. कूदना, उछलना। उत्पादानुच्छेदः (पुं०) उत्पत्ति-विनाश। 'उत्पादः सत्त्वम्, अनुच्छेदो उत्फलं (नपुं०) ० श्रेष्ठफल, उचित भाव, सम्यक् परिणाम
विनाशः अभावः नीरूपिता इति यावत्।' उत्पाद् एव उत्तम भाव।
अनुच्छेदः उत्पादानुच्छेद::' (धव० ८/पृ० ५) । उत्फालः (पुं०) [उद्+फल+घञ्] छलांग, कूद, द्रुतगति, उत्पादिका (स्त्री०) [उद्+पद+ णिच्+ण्वुल+टाप्] १. उत्पन्न अति तीव्रता से गिरना।
करने वाली माता। २. एक कृमि विशेष, कीड़ा। उत्फुल्ल (भू० क० कृ०) [उद्+फुल+ क्त ] प्रफुल्लित, उत्पादित (वि०) प्रसूत, उत्पन्न हुआ. जनित, समुच्चारित। ०खुला हुआ, ०प्रसारित। (जयो० १४/४४) विस्फारित, (जयो० १७/२१) (जयो० वृ० ३/८६)
फैला हुआ। उत्पाली (स्त्री०) [उद्: पल्+घञ्+ङीप्] निरोग।
उत्फुल्लित (वि०) विकसित। (जयो० १४/८८) पुष्पित, हर्ष उत्पीडः (पुं०) [उद्-पीड्+घञ्] उत्पीड़न, पीड़न, दबाव।
युक्त। उत्पीडनं (नपुं०) [उद्+पीड्+णिच्+ल्युट्] आघात, दबाव। उत्सः (पुं०) [उन्द्+स-उनत्ति जलेन] झरना, फुव्वारा, जल उत्पुच्छ (वि०) ऊपर उठी हुई पूंछ वाला।
प्रवाह, जल के गिरने का स्थान। 'यत्रागत्य जलं तिष्ठति उत्पुलक (वि०) हर्षित, रोमांचित, प्रसन्न।
तत्स्थानमुत्सः' (जयो० २६/१) उत्प्रभ (वि०) प्रभावान्, कान्तियुक्त।
उत्सङ्गः (पुं०) [उद्+स+घञ्] १. गोद/अंकगत, आलिंगन उत्प्रभः (पुं०) अग्नि, आग।
गत। (जयो० वृ०६/४५) वीरो०८/८। २. संयोग, सम्पर्क। उत्प्रभावः (पुं०) अप्रभावशील।
३. शिखर, कूट, उच्चभाग। ४. भीतर, आभ्यन्तर, अंदर। उत्प्रसवः (पुं०) [उद्+प्र+सू+अच्] गर्भपात, गर्भ गिरना। उत्सङ्ग-गत (वि०) अङ्क को प्राप्त, गोद लिया गया। उत्प्रासनं (नपुं०) [उद्+ प्र+अस्+ ल्युट] फेंकना, पटकना, गिराना, 'शिशुनोत्सङ्गगतेन सा विशाम्' (सुद० ३/३) उपहास करना।
उत्सङ्गज (वि०) अङ्क को प्राप्त हुई 'उत्सङ्गजं सूचयतीन्दुदेवं' उत्प्रेक्षणं (नपुं०) [उद्+प्राईक्ष् ल्युट्] १. नेत्र विक्षेपण, दृष्टिपाता (जयो० १५/४६) 'उत्सङ्गमङ्कारोपितं सूचयति' (जयो० २. अनुमान करना।
वृ० १५/४६) उत्प्रेक्षु (अक०) [उद्+प्र ईक्ष] उत्प्रेक्षा करना। (जयो० वृ० - उत्सङ्गवर्ती (वि०) अङ्कशायी, गोद में लेटी हुई। (जयो० ७०
१२/७८)
१/८)
For Private and Personal Use Only