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आर्तभाव:
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आर्यावर्त
जन्य।
आर्तभावः (पुं०) चिन्तातुर, कष्टयुक्त। (समु० ४/५)
अध्यापक, आदि सभी हो सकता है, क्योंकि इस आर्तव (वि०) [ऋतुरस्य प्राप्त-अण्] ऋतु सम्बंधी, ऋतुकाल विशेषण में सम्पूर्ण संस्कृति का समावेश है। गुणैर्गुणवद्भिर्वा
अर्यन्त-इत्यार्यः (त० वा० ३/३६, स० सि० ३/३६) आर्तिः (स्त्री०) [आ+ऋ+क्तिन्] १. पीड़ा, व्यथा, दु:ख, सद्गुणैरर्यमाणत्वाद गुणवद्भिश्च मानवैः। (त०श्लोक ३/३७)
कष्ट, बाधा। (मुनि० २१) २. मानसिक कष्ट, अत्यधिक आर्यकार्यः (पुं०) श्रेष्ठ कार्य, पुनीत कार्य. उत्तम कर्म। वेदना।
'आर्यकार्यमपवर्गवर्त्मनः। (जयो० २/१३६) आर्थ (वि०) अर्थाधीन, अर्थ सम्बन्धी, धन का प्रयोजन। - आर्यखण्डं (नपुं०) आर्यावर्त, आर्यक्षेत्र, सभ्यजनों का क्षेत्र। (जयो० १०/४७)
(सुद० १/१४) (वीरो० २/९) आर्थसार्थक (वि०) याचक समूह। (जयो० १०/४७) आर्यगृह्य (वि०) आर्यों से पूजित। आर्थिक (वि०) [अर्थ ठक्] १. सार्थक, २. धनयुक्त, ३.. आर्यजनः (पुं०) आर्यलोग, उत्तम लोग। (सुद० १/१४) प्रयोजन भूत, आधारभूत। तथ्यपूर्ण, वास्तविक।
आर्यदेशः (पुं०) आर्यदेश, सभ्य संस्कृति का प्रदेश। आर्द्र (वि०) [अर्दु रक्] १. गीला, नमीयुक्त, अशुष्क। २. | आर्यता (वि०) महापुरुषता! (जयो० वृ० २६/३६) मृदु, कोमल, रस युक्त।
उच्चकुलीनता-(वीरो०९/५) आर्द्रकं (नपुं०) [आर्द्रा+वुन] अदरक।
आर्यपुत्रः (पुं०) सभ्य संस्कृति का सुत। आर्द्रता (वि०) कोमल, सुकुमार। (जयो०२/९९)
आर्य-प्रकृतिः (स्त्री०) सभ्य स्वभाव, उत्तम प्रकृति। तुङ्ग पुनः आर्दचेतस् (पुं०) करुणाशीला (जयो० २४/१२०)
सा परिधाय कायमहार्यमार्यप्रकृतेः समायम्। (११/६) आर्द्रता (वि०) उत्कण्ठता, द्रवीभूतता। (समु० ७/१६)
'अहार्यः पर्वते पुंनि' इति विश्वलोचनः। आर्दभावः (पु०) करुणभाव। (वीरो०४/३)
आर्यप्राय (वि०) आर्यों की बहुलता। आद्रिय (वि०) उत्कण्ठित।
आर्यमन् (वि०) सज्जन, श्रेष्ठ पुरुष। (समु० ४/२०) आद्रीकरणं (नपुं०) परिषेचन, द्रवीभूतीकरण। (जयो० २/९३) आर्यमिश्र (वि०) आदरणीय पुरुष, मुक्त, सभ्य जन युक्त। आर्द्रय (सक०) गीला करना, अशुष्क बनाना। आद्रियते (सुद० आर्यलिंगिन् (पुं०) पाखंडी। २/१४)
आर्यवर्तः (पुं०) आर्यखण्ड, आर्यक्षेत्र। आर्ध (वि०) [अर्ध+अण्] आधा, अर्धभाग।
आर्यवृत्ताविन (वि०) भद्र. सदाचारी, योग्य, श्रेष्ठ। आर्धिक (वि०) अधिक से सम्बन्ध रखने वाला।
आर्यव्यक्त (वि०) आर्य द्वारा कथित। (वीरो० १४/५) आर्य (वि०) [ऋ ण्यत्] १. श्रेष्ठ, ०उत्तम, ०समादरणीय, आर्यसत्यं (नपुं०) उत्कृष्ट सत्य, अलौकिक सत्य, दिव्य सत्य।
सम्मानीय, पूज्य, कुलीन। 'गुणप्रसक्त्याऽतिथये विभज्य आर्यशस्ति (वि.) आर्य खण्ड। (वीरो० २।८) सदन्नमातृप्ति तथोपभुज्य। हितं हृदा स्वेतरयोर्विचार्य, आर्यशिरोमणि (वि०) महापुरुषों की मुखिया, अग्रणीजन। तिष्ठेस्सदाचार पर: सदाऽऽर्यः। (सुद० १३०) 'वृथा साऽऽर्य (दयो० १०९) सुधासुधारा' (जयो० १/३) उक्त पंक्ति में 'आर्य' शब्द आर्या (वि०) १. सम्मानीय, पूजनीया, प्रशंसनीया। (वीरो० सज्जन पुरुष का वाचक है। 'आर्य' सम्य जाति विशेष के १/२७) मनोरमाऽभूदधुनेयमार्या न नग्नभावोऽयमवाचि नार्याः। लिए भी प्रयोग किया जाता है। व्यशेषयन् वा द्रुतमीर्षयार्य (सुद० ११५) २. आर्या-आर्यिका, दिगम्बर सम्प्रदाय में तकाञ्छतत्त्वेन किलारिनार्यः।' (जयो० १/२६) चतुर्थ सर्ग व्रत अङ्गीकार करके जो सर्व परिग्रह त्यागी बन जाती है में भी 'आर्य' शब्द को सभ्य व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया वह आर्यिका कहलाती है। आर्यिका व्रत अंगीकार करके गया। (जयो० ४/४८)० 'आर्य' का श्रेष्ठ अर्थ (२२/८३) समस्त परिग्रह का त्याग करती है तथा श्वेत वस्त्र को ०'आर्य' का सेठ-क्षेमप्रश्नानन्तरं ब्रूहि कार्यमित्यादिष्टः धारण करती है। आर्यिका उपचरितमहाव्रतधराः स्त्रियः। प्रोक्तवान् सागरायः। (सुद० ३/४९) सुदर्शनोदय (४/२२, (सा०ध० २/७३) ९/१४) में यही अर्थ है। 'बाल्येऽपि लब्धस्त्वकया वदाऽऽर्य'। आर्यात्व (वि०) आर्यिकापद वाली। (सुद० (सुद० ९/१४) 'आर्य' का अर्थ स्वामी, नायक, गुरु आर्यावर्त (पुं०) आर्यक्षेत्र, आर्य खण्ड। (दयो०३)
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