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असङ्गतिः
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असत्यस्मरणं
असङ्गतिः (स्त्री०) असयुक्त, अमेलित, असम्बद्ध, अनौचित्य। 'असत्' का अर्थ अधिकता भी है। 'दुःखमुच्चलति जायते असङ्गतिनामालंकारः (पुं०) असङ्गति नामक अलंकार - सुखं दर्पणे सदसदीयते मुखम्।' (जयो० २/४६) उक्त
अन्वाननं पानकपात्रमाशा समन्विताया वितरन्विलासात्। पंक्ति में 'असत्' का अर्थ मलिनता, कुरूपता एवं हस्तेन शस्तस्तनमण्डलान्त मालिङ्गय सम्यङ्गमदमाप कान्तः। असुन्दरता भी है। (जयो० १६/२९) कोई स्त्री मदिरा पीना चाहती थी, पर असत्कर्त्तव्यः (पुं०) असत् कार्य। (वीरो० ६/२०) पीने में असमर्थ थी. उसका पति कौतुकपूर्वक मदिरा का असत्कर्मन् (वि०) अनिष्टकर्म, अहितकारी कर्म। पात्र उसके मुख के पास ले जा रहा था और हाथ से असक्रिया (स्त्री०) अनर्थोत्पादक क्रिया, व्यर्थ की क्रिया। स्तनमण्डल का स्पर्शकर रहा था. इस तरह वह मदिरा असत्यग्रहः (पुं०) अहितकर ग्रह, अनिष्टकारी दशा। पान के बिना ही महहर्षरूप नशा को प्राप्त हो रहा था। असत्चेष्टा (स्त्री०) अधार्मिक भाव, धर्मविहीन चेष्टा। संगति न होने पर सङ्ग का आभास।
असत्सङ्गम (वि०) असत् योग। (जयो० वृ०६/२५) आर्तध्यान असङ्गमः (पुं०) वियोग, विछोह, अमिलन।
और रौद्रध्यान का संयोग। असङ्गम (वि०) नहीं मिला हुआ, असमबद्ध।
असत्त्वेष्टित (वि०) मलिन चेष्टा वाला, अपवित्र चेष्टा युक्त। असङ्गिन् (वि०) असम्बद्ध, अमेलित।
असत्ता (वि०) १. अनस्तित्व, अस्तित्व का अभाव, सत्ता का असड़कीर्णः (पुं०) १. विशद, स्पष्ट, २. अक्षत, अखण्ड, ३. | लोप। संकीर्णता रहित। (वीरो० २/२६)
असन्तप्त (वि०) संताप रहित, शान्त, प्रशान्त। (जयो० २८/३८) असङ्ककीर्णपदः (पुं०) विशदपद, स्पष्टपद। श्रीमान सङ्कीर्ण असत्पथः (पुं०) दुष्टमार्ग, कुमार्ग, निम्नगति, अधर्ममार्ग, पदप्रणीतिः। (वीरो० ७/२६)
अनिष्टपथ। असंज्ञ (वि०) संज्ञा रहित, चैतन्य विहीन।
असत्परिग्रहः (पुं०) अनिष्टकारक संग्रह। असंज्ञा (स्त्री०) संज्ञा का अभाव, चैतन्यता का अभाव। असत्भावः (पुं०) इष्ट परिणाम का अभाव। असंज्ञित्व (वि०) मन बिना, शिक्षा उपदेशादि न ग्रहण करने असत्य (वि०) मिथ्या, झूठा, काल्पनिक, अप्रमाणिक।
वाला। 'मनोऽनपेक्ष्य ज्ञानोत्पत्तिमात्रमाश्रित्यासंज्ञित्वस्य (वीरो० २०/१६) अवास्तविक, झूठ बोलने वाला। निबन्धनमिति।' (धव०१/४०९)
असत्यवक्तुर्नरके निपातश्चासत्यवक्तुः स्वयमेव घातः। असंज्ञि-श्रुत (वि०) असंजियों का श्रुत।
व्यलीकिनोऽप्रत्यय- सम्बिघाऽतः प्रोत्पादयेस्तं न कदापि असंज्ञी (वि०) अनमस्क, मन रहित जीव। (सम्य० ४१) मातः।। (समु० १/९)
सम्यक् जानातीति संज्ञं मनं, तदस्यातीति संज्ञी, असत्यः (पुं०) अलीक, झूठ, ०व्यतीक, अनृत, गर्हित। सद्विपरीतोऽसंजी। (धव०१/१५२) जो जीव मन के न होने (वीरो० १४/३८) मृषा, मिथ्या।
से शिक्षा, उपदेश आदि को ग्रहण न कर सके। असत्यपक्ष (वि०) मिथ्यामार्ग, मृषा कथन, मिथ्यात्व का असती (वि०) दु:शीला. उद्दण्ड। (जयो० १४२०, २/११९) पोषक पक्ष। असत् (वि०) १. अविद्यमान्, अस्तित्व हीन। २. सत्ताहीन, असत्यमनोयोगः (पुं०) असत्य जनित के प्रति मन का भाव।
अवास्तविक। २. अनुचित, प्रतिकूल, अव्यवहारिक। ४. असत्यवचनं (नपुं०) असत्य/मिथ्यापोषक वचन। एक दार्शनिक दृष्टिकोण-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप असत्यवक्ता (वि०) असत्य बोलने वाला, असत्य प्रतिपादक। सत् से विपरीत। साध्य के अभाव का निश्चय करने वाला। 'असत्यवक्ताऽनवधानतोऽपि' (समु०३/२२) तत्त्वं त्वदुक्तं सदसत्स्वरूपं तथापि धत्ते परमेव रूपम्। असत्यवक्तु (वि०) असत्य भाषक, मिथ्या बोलने वाला, युक्ताप्यहो जम्भरसेन हि द्रागुपैति सा कुकुमतां हरिद्रा।। अनृतभाषी। 'असत्यवक्तुः परिहारपूर्वम्।' (समु०१/१०) (जयो० २६/८०) ५. दुर्जन, दुष्ट, पापी, ०अशुभ- 'असत्यवक्तुः स्वयमेव घात:।' (समु० १/९) परिणामी, अनिष्ट। 'यस्यासतां निग्रहणे च निष्ठा मता असत्यवादिन् (वि०) असत्य भाषक, मिथ्या कथन करने वाला। सता संग्रहणे धनिष्ठा।'' (जयो० १/१६) 'इक्षो असत्यस्मरणं (नपुं०) ०असत्य कथन, ०असत्य भाषण, सदीक्षाऽस्यसतः सतेति।' (सुद० १/१६) उक्त पंक्ति में ०अलीक स्मरण, मिथ्याजन्य स्मरण।
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