Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 163
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आनद्धः www.kobatirth.org आनद्धः (पुं०) वाद्य विशेष, ढोल, नगाड़ा। (जयो० १०/१६) आननं (नपुं०) मुख, बदन। [ आ+अन् + ल्युट् ] 'फुल्लदानन इतोऽभिजगाम ।' (जयो० ४/४७) रामामानने सपदि कामुकनामा।' (जयो० ४/५६ ) आननदेशः (पुं०) मुखभाग, मुखमण्डल। 'पीतिमानमिममाननदेर्श' (जयो० ५/८) आनन्तर्य (नपुं० ) [ अनन्तरः ष्यञ् ] उत्तराधिकारी, व्यधान रहित आसन्नता । आनन्त्य ( नपुं०) शाश्वत, नित्य, अनश्वर । ( भक्ति० २० ) आनन्दः (पुं० ) [ आ+नन्द्+घञ्] हर्ष, प्रसन्नता, आत्मिक सुख। आनन्ददशा (स्त्री०) सुख की अवस्था । आनपानं (नपुं०) उच्छवास शक्ति । आनपान पर्याप्तिः (स्त्री०) श्वासोच्छवास से निकलने वाली शक्ति। आनपानप्राण: (पुं०) उच्छवास, निःश्वास की कारणभूत शक्ति (० दुव्य संग्रह ३) आनप्राण: (पुं०) उच्छवास, निःश्वास, इसका काल असंख्यात आवलियों का होता है। आनमंती (वि०) नमन करती हुई (सुद०२ / २६ ) आनय (५०) लाना, भिजवाना (जयो० २/११३) बन्धामि भुजपाशेन उपाशनमिहानय (सुद० पृ० ७६ ) आनयनं (नपुं०) मंगवाना, मर्यादित क्षेत्र से वस्तु का मंगवाना । 'प्रयोजनवशाद्यत्कि दानयेत्याज्ञापनमानयनम् (स०] सिं० ७/३, त० वा० ७/३१) 'अन्यमानयेत्याज्ञापनमानयनम्' (त०व० ७/३) आनयनप्रयोग (पुं०) क्षेत्र से वस्तु मंगवाने का प्रयोग। ( भक्ति श्लोक ३) आनन्दक (वि०) सुखदाता। (वीरो० १०/२१ ) आनन्दकर (वि०) सुख प्रदान करने वाला विमानमानन्दकरं च देव। (सुद० २/१८) । आनन्दगिरा ( स्त्री०) प्रसन्नवाचा, सुख प्रदान करने वाली वाणी 'अस्मदानन्दगिरामस्माकं प्रसन्नवाचाम् (जयो० (१/४३) नाभेयमानन्दगिराऽजितं च' (भक्ति पृ० ७) आनंददायिनी (वि०) आनन्ददायक। आनन्ददायी (वि०) प्रसन्नता प्रदायी (दयो० ५८) (जयो० कृ० ३/११५ ) आनन्ददृ ( नपुं०) आनन्दृष्टि, सुख का विशेषता, प्रसन्नता भाव। 'तमानन्ददृगेकदृश्यम् ।' (जयो० १ / ७७) १५३ आनुकूल्यं आनन्दनिबन्धन: ( नपुं०) आनन्द की धारणा, प्रसन्नता का कारण। किन्त्वानन्दनिबन्धनस्तवदपर को मे कुलीनस्थितेः । (मुद० ११३) आनन्दप्रदः (५०) प्रसन्नचित्त (जयो० ८/६३) आनन्दप्रदकला ( स्त्री०) नन्दक-कला, सुख प्रदान करने वाली कला। (जयो० ८ /६३) आनन्दमय (वि०) सुखमय, प्रसन्नता युक्त श्रेयांसमानन्दमयं च वासु।' (भक्ति पृ० १९ ) आनन्दवती (वि०) आह्वलाद उत्पन्न करने वाली, सुखदायिनी, प्रसन्न्ताप्रदायिनी । (सुद० १/४१) आनन्दवारिधिः (पुं०) सुख सागर, प्रसन्नोदधि । (जयो० १ / १०२) आनन्दसंधानं (नपुं०) आत्मिक सुख, आभ्यन्तर आनन्द । ( मुनि० २६) आनन्दिः (स्त्री० ) [ आ+नन्द्+इन् ] हर्ष, प्रसन्नता, सुख। आनन्दित (भू० क० कृ०) [आनन्द+क्त] आनन्द करने वाला, हर्षित, प्रफुल्लित। आनन्दिन् (वि०) [आनन्द णिनि] प्रसन्न, खुशी, हर्ष, प्रफुल्लता। | आनर्त (पुं०) [आ+नृत् घञ्] नाट्यशाला, नृत्यगृह, रंगमंच आनर्थक्यं (नपुं० ) [ अनर्थस्य भावः ष्यञ् ] निरर्थकता, अनुपयुक्तता, अयोग्यता । आनाय: (पुं० ) [आ+नी+घञ्] जाल। आनायिन् (पुं० ) [ आनाय इनि] धीवर, मछुवारा। आनाय्य (वि०) [आ+नी+ण्यत् ] सन्निकटता के योग्य । आनाहः (पुं०) [आ+न+घञ्] १. बन्धन, मलावरोध, कब्ज आनिप् (सक०) दबाना, पीड़ित करना। (जयो० ८/४८) आनिल (वि०) [ अनिल अणू] वायु से उत्पन्न आनीय (सक०) प्राप्त होना, उपस्थित होना। आनीयते प्राप्यते माक्षिकं माक्षिकाव्रातपातोत्थितं तत्कुल-क्लेद सम्भार धारान्वितम्। पीडयित्वाऽप्यकारुण्यमानीयते साशिभिर्वशिभिः किन्नु तत्पीयते। (जयो० २ / १३० ) आनील (वि०) नीलापन । + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir + आनुकूलिक (वि०) [ अनुकूल ठक्] हितकारी, अनुकूलता युक्त, उपयुक्त आनुकूल्यं (वि०) [ अनुकूल प्यञ्] उपयोगी, + ० उपयुक्त, ० हितकर, आश्वासन कारक, ०समीचीन, व्यथेष्ठ । (जयो० पृ० १/५१) कारुण्यमौदार्यमिद् दा चानुकूल्यसम्वादविधिश्च वाचा। (समु० ८ / २९ ) For Private and Personal Use Only

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