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अशठतावान
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अशुद्ध-ऋजुसूत्रनयः
अशठतावान (वि०) स्खलता रहित, ज्ञान युक्त (जयो० वृ० अशस्त (वि०) असुन्दर, कुरूप। 'न वपुषि अशस्ताः ' (सुद० १/५६)
१/२९) अर्थात् शरीर में भद्दी और असुन्दर नहीं थी। २. अशनं (नपु०) [अश्+ ल्युट्] खाना, भोजन, स्वाद लेना, रस अप्रशस्त। (वीरो० १८/४८)
लेना, आहार। 'राक्षसाशनमुपात्ततामसं।' (जयो० २/१०९) अशास्त्र (वि०) कुशास्त्र, आत्मज्ञान को नहीं देने वाले शास्त्र। सुरसनमशनं लब्ध्वा । (सुद० पृ० ७४) अशनं कस्य न अशास्त्रीय (वि०) आगम विरुद्ध, श्रुत के विपरीत, शास्त्र के धनतृष्णा वा। (सुद०७४) एतावती स्यादुदरेऽभिवृद्धिम॑ष्टेऽशने प्रतिकूल। सत्यशनेऽतिगृद्धिः । (जयो० २७/४५)
अशित (भू०क०कृ०) भुक्त, खाया हुआ। आममन्नमतिमात्रअशनक (वि०) १. भोजी, भोजन करने वाला। २. रात्रि का याऽशितं चास्तु भस्मकरुजे परं हितम्। (जयो० २/६३)
नाश। सवृत्तिरश्चति निशाशनकैः प्रहाणि। (जयो० १८/३७) अशितः (पुं०) गौरवर्ण। (जयो० १०/२८) अशनस्थानम् (नपुं०) आहारस्थान। (हित ४३)
अशितड़वीन (वि०) चरगाह स्थान। अशना (स्त्री०) (अशनमिच्छति) [अशन क्यच स्त्रियां भावे] अशिता (स्त्री०) गौरवर्णा। (जयो० १०/२८) क्षुधा, भूख।
अशित्रः (पुं०) १. चोर, २. चावल की आहूति। १. वज्र-'सो जयज्जयनृपः कृपाशनेः।' (जयो० ३/१९) अशिरः (पुं०) [अश्+इरच्] आग, सूर्य, वायु, राक्षस। २. विद्युत, विद्युतप्रभा-'अशनिशनिपितृप्रमुखान्।' (जयो० अशिरं (नपुं०) वज्र, हीरक। ६/३६)
अशिरस् (पुं०) धड़, तना। अशनिघोषः (पुं०) अशनिघोष नामक हस्ति। (समु० ४/३३) अशिव (वि०) अमङ्गल, अकल्याणकारी, अशुभ, भाग्यहीन।
'महीमहेन्द्रोऽशनिघोष सद् द्वीप:। (समु० ४/१५) अशिष्ट (वि०) असंस्कृत, संस्कारविहीन, गंवार, ०उजड्ड, अशबलः (पुं०) स्नातक मुनि, निरतिचार रहित मुनि।
० उपद्रवी, ० असभ्य, ०अयोग्य, ० अप्रामाणिक, अशबलाचारः (पुं०) चारित्र युक्त साधु, अभ्याहत दोषों का ०अशास्त्रीयज्ञ। परिहारक श्रमण।
अशिष्य (वि०) अयोग्य, असंस्कृत, संस्कारहीन। 'शिक्षा योग्यो अशब्द (वि०) शब्द विहीन, शब्द से रहित।
न भवति।' (जयो० ११/८७) अशब्दलिंगज (वि०) अन्यथानुपपत्ति रूप लिंग से होने वाला अशीत (वि०) उष्ण, गर्म। ज्ञान। (धव०पु०१३/२४५)
अशीतकरः (पुं०) सूर्य, रवि, सूर्यरश्मि। अशमनं (नपुं०) जिसका शमन नहीं, रोष, ०क्रोध। न अशीतिः (स्त्री०) अस्सी, संख्या विशेष। शमनमशमनं रोषः (जयो० वृ० १०/१५)
अशीना (वि०) कर्त्तव्यविचारशीला, 'कलैः कृतातिथ्यकअशरण (वि०) १. शरण रहित, आधार विहीन, आश्रयमुक्त, थाप्यशीना।' (जयो०१५/६)
असहाय। २. 'अशरण' अनुप्रेक्षा या भावना का नाम है, अशीर्षक (वि०) अशिरस्, धड़, तना, मस्तिष्क रहित। इसमें यह भावना की जाती है कि संसार में कोई भी विद्या अशुचिः (स्त्री०) १. अपवित्र, मल। २. अशुचि-अनुप्रेक्षा या मरण के समय सहायक नहीं हो सकती। 'नान्यत् भावना। इसे अशुचित्व भी कहा है। (त०सू०९/७) किञ्चिच्छरणमिति' (त०वा०९/७) आपत्तियों के घिराव में "अशुभ-कारणत्वादिभिरशुचित्वम्।" (त०वा०९/७) भटकने वाले इस प्राणी को धर्म के सिवा और दूसरा कोई | अशुचि (वि०) अपवित्रता, अशुचिकरण, मलिनता, मल, विष्ठा। भी सहारा नहीं। (ता०सू०९/७)
अशुद्ध (वि०) १. अपवित्र, शुद्धता रहित, धरां समारब्धुमथ अशरीर (वि०) १. शरीर रहित, देहमुक्त।
प्रबुद्धस्तदीयसंपर्क इतोऽस्त्वशुद्धः। (जयो० १९/१) अशरीरः (पुं०) सिद्ध, मुक्तजीव, परमात्मा। 'जेसिं शरीरं 'सोऽशुद्धः परस्त्रियाः परपुरुषकरेण स्पर्शो वर्जनीय इति
णत्थि ते असरीरा।' 'अट्ठ-कम्म-कवचादो णिग्गया' हेतोः।' (जयो० वृ० १९/१) २. पर द्रव्य के संयोग के (धव०१४/२३९)
कारण भूत। अशरीरी (वि०) १. शरीर रहित, अपार्थिव/ २. सिद्धपुरुष, अशुद्ध-उपयोगः (पुं०) अशुद्ध उपयोग। सिद्धि के प्राप्त जीव, अष्टकर्म विमुक्त जीव।
अशुद्ध-ऋजुसूत्रनयः (पुं०) व्यञ्जन पर्याय रूप।
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