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अमृतायमान
अम्बुज-कोष
अमृतायमान (वि०) अमृत वाला, अमृत युक्त, अमृत की | अम्बरं (नपुं०) [अम्बः शब्दः तं राति धत्ते इति] मेघ, बादल,
तरह आचरण करने वाले। "जगत्यमृतायमानेभ्यः।" (सुद० १२४) आकाश, अन्तरिक्षा रणे सम्भाषणे संबित तथा अम्बरं रसे अमृताशी (वि०) अमृत भोजी, सुधापानक, पीयूष पान करने कार्पासे 'इति-विश्व' (जयो० ६/१२) वाले।
अम्बरं (नपुं०) १. वस्त्र, कपड़ा, परिधान। (जयो० १३/७१) तस्मादनल्पाप्सरसङ्गत्वाद्भुत्वाऽमृताशी सुख-संहितत्त्वात्। २. केसर, अवरक। (जयो० १/३७) (वीरो० ११/२४)
अम्बरचारी (वि०) विद्याधर। (जयो० ६/१२) अमृतेशः (पुं०) चन्द्र।
अम्बरीष (नपुं०) [अम्ब+अरिष्] १. सूर्य, रवि, शिव, विष्णु, अमृतेशयः (वि०) क्षीर सागर में शयन करने वाले विष्णु। २. कडाही, ३. खेद, दुःख, ४. युद्ध, संग्राम। अमृतोक्तिः (स्त्री०) अमृतवचन (वीरो० १८/२४)
अम्बष्ठः (पुं०) [अम्ब+स्था+क] महावत। अमृतोर्मि (स्त्री०) अमृत लहर (जयो० ७/६३) मृदुता रहित अम्बा (स्त्री०) [अम्ब+घञ्+टाप्] १. जननी, माँ, माता। (वीरो० २०/२२)
(जयो० ५/१००) २. सरस्वती-वचोऽभिदेवतेऽम्बा। (दयो० अमृषा (स्त्री०) सत्य।
वृ० ३७) (जयो० १२/२) अमृषा (अव्य०) सचमुच, वास्तव में।
अम्बिका (स्त्री०) [अम्बा+कन्+टाप्] सरस्वती, जननी, माँ, अमृष्ट (वि०) अक्षुण्ण, अखण्ड, मद्रित नहीं, विदीर्णता रहित। माता। (वीरो० १५/४०) (जयो० ६/१९) अमेचक (वि०) ज्ञायक स्वभावी।
अम्बु (नपुं०) नीर, जल, वारि, उदक। तत्त्व-धर्माम्बुवाह अमेदस्क (वि०) चर्बी रहित, निर्बल।
(सुद० ४/२२) (समु० २/१२) अमेधस् (वि०) मतिविहीन, ज्ञान हीन, बुद्धि रहित।
अम्बुक् (पुं०) मेघ, बादल, जलद। (जयो० १२/९१) अमेध्य (वि०) अपवित्र, अयोग्य, अस्वच्छ, पवित्रता रहित। अम्बुकणः (पुं०) जल बिन्दु, नीरकण। अमेध्ययुक्त (वि०) अपवित्रता सहित, मल युक्त।
अम्बुकष्टकः (पुं०) घडियाल। अमेय (वि०) १. अप्रमेय, एक दार्शनिक दृष्टि जो ज्ञान का अम्बुकिरातः (पुं०) घडियाल। विषय न हो। यन्मीयते वस्त्वखिलप्रमाता, भवेदमेयस्य तु अम्बुकूर्मः (पुं०) कच्छप, कछुआ। को विधाता। (जयो० २६/९८) जो वस्तु प्रमेय है-प्रमेयत्व अम्बुचर (वि०) जलचर जीव, जल में विचरण करने वाले का गुण का आधार है, वह अवश्य ही किसी के ज्ञान का जीव। विषय होता है, अमेय/अप्रमेय का ज्ञाता कौन हो सकता अम्बुजः (पुं०) १. चन्द्र, चन्द्रमा, २. कपूर। ३. सारसपक्षी, शंख।
है? अर्थात् कोई नहीं? २. अज्ञेय, सीमा रहित, अपरिमित। अम्बुजं (नपुं०) कमल, इन्दीवर, अरविन्द। (सुद० ३/४५) अमेरिका (स्त्री०) अमेरिका देश। साऽमेरिकस्य तु मलिना (जयो० १/४९) "त्वदीय पादाम्बुजाले: सहचारिणीयम्। रुचिः सुमनसामस्ति यथा। (सुद० ५/३)
(सुद० २/३४) अमोघ (वि०) अचूक, सफल, व्यर्थता रहित। "भो भो जना अम्बुज-कलिका (स्त्री०) कमल की कली, कमल पांखुरी,
वीरविभोर्गुणौघानसौऽनुकूलं स्मरताममोघाः। (सुद० १/४) कमल-पत्र। जिनयज्ञमहिमा ख्यातः। जिनपूजा प्रसिद्ध है। अमोघ-बाणः (पुं०) सफलशर, लक्ष्यवेध करने में सफल। मनोवचकायैर्जिन पूजां प्रकुरु ज्ञानि भ्रातः। मन, वचन (जयो० ११/६१) 'जित्वा त्रिलोकी स्विदमोघबाणः।'
और काय से जिनपूजा करें। (श्रेणिक राजा हाथी पर अम्ब् (सक०) जाना, शब्द करना।
सवार होकर जिनपूजा के लिए जा रहा था) मुदाऽऽदाय अम्बः (पुं०) [अम्ब्+घञ्] पिता, जनक।
मेकोऽम्बुज-कलिकां पूजनार्थमायातः। प्रमोद से मेंढक अम्बं (नपुं०) १. नेत्र, नयन, २० जल, नीर।
कमल की कली मुख में दबाकर पूजन के लिए चला, अम्ब (अव्य०) हाँ! स्वीकृत करने के योग में।
किन्तु मार्ग में हाथी के पैर के नीचे दबकर मर गया और अम्बकं (नपुं०) [अम्ब्+ण्वुल्] नेत्र, नयन।
स्वर्ग को प्राप्त हुआ। अम्बधात्रीदोषः (पुं०) साधु का एक दोष, दाता बच्चे के | अम्बुज-कोष (वि०) जलजात कमल। (जयो० ११/४३) सुलाने का दोष।
'भुजो रुजोऽङ्कोऽम्बुजकोषकाय।'
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