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इक्कीस
१५४ गुणशून्य प्रभु की अर्चा-पूजा । १५५-१५७ अर्चा और पूजा किसकी ? १५८,१५९ निन्दक के दोष । १६०-१६३ निन्दा का स्वरूप । १६४-१७१ तपस्या और संथारे का विवेक प्रतिपादन । १७२-१७९ पौषध में उपकरणों के विनिमय, प्रतिलेखन आदि का विवेक । १८०,१८१ धन का त्याग और आदान-प्रदान ।
१८२ ममत्व विसर्जन ही धन का सच्चा त्याग । १८३,१८४ साध्य-साधन का विवेक । १८५,१८६ निरवद्य कार्यों की श्रृंखला ।
१८७ गृहस्थ को आओ, जाओ कहने का निषेध ।
१८८ उदयभाव न सावध और न निरवद्य ।। १८९-१९२ धन के सदुपयोग और दुरुपयोग की भांति ही शरीर के भी दो
कार्य-सावध और निरवद्य । १९३ आज्ञा में ही धर्म । १९४,१९५ भाषा का विवेक । १९६-१९८ धर्म और अधर्म का विवेक ।
१९९ पाप-कार्य और पापमय भाव ।
२०० द्रव्य हिंसा और भावहिंसा। २०१-२०४ सही पौषध कौनसा ? पोषध का परिणाम । २०५-२०८ गृहस्थ मुनियों के माता-पिता के समान कैसे ?
२०९ भिक्षु के दो वचन। २१०-२१६ मार्ग कब तक चलेगा ? स्वामीजी का उत्तर । सतरहवां सर्ग
१-३ सिरियारी नगर का वर्णन। ४-६ श्रावक हुकमीचन्दजी आछा की प्रार्थना को स्वीकृति ।
७,८ अंतिम चातुर्मास और साथ वाले संतों का नामोल्लेख । ९-१३ स्वामीजी की सिरियारी में पादार्पण और धर्म देशना का
प्रभाव । १४ स्वामीजी द्वारा शिष्यों को पढ़ाना ।
१५ श्रावणी पूर्णिमा का दिन । १६-२१ अतिसार रोग का आक्रमण और उसका प्रतिकार । २२,२३ संवत्सरी पर्व। २४,२५ रोग की उग्रता।