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वर्ण्यम्
आचार्य भिक्षु का विहार क्षेत्र धीरे-धीरे बढ़ने लगा । नाना प्रकार के लोग विविध जिज्ञासाएं लेकर आचार्य भिक्षु के पास आते और अनेक प्रश्न पूछते । आचार्य भिक्षु उन्हें अनेक दृष्टांतों, घटनाओं के माध्यम से तत्त्व की अवगति देते । ये दृष्टांत तत्त्व की सुदृढ़ पृष्ठभूमि प्रदान करते थे। इन दृष्टांतों में तात्कालिक सभ्यता-संस्कृति के तत्त्व भी संश्लिष्ट हैं ।
' भिक्खु दृष्टान्त' नामक पुस्तक में स्वामीजी के ३१२ जीवनप्रसंगों का संकलन हैं । मुनिश्री हेमराजजी स्वामी आचार्य भिक्षु के अत्यन्त प्रिय और मेधावी, चर्चावादी शिष्य थे । उन्होंने ये सारे प्रसंग श्रीमज्जाचार्य को लिपिबद्ध करवाए। इसका प्रथम संस्करण सन् १९६० में तथा तृतीय संस्करण सन् १९९४ में प्रकाशित हुआ । आचार्य महाप्रज्ञजी ने लिखा- 'भिक्खु दृष्टांत' राजस्थानी भाषा का उत्कृष्ट ग्रन्थ है । डेढ़ शताब्दी पूर्व संस्मरण साहित्य की परम्परा बहुत क्षीण रही है । उस अवधि में लिखा गया यह संस्मरण ग्रन्थ भारतीय साहित्य में ही नहीं, अपितु विश्व साहित्य में भी बेजोड़ है । श्रीमज्जाचार्य ने प्रस्तुत ग्रन्थ का संकलन कर भाषा, दर्शन और आचारवाद की दृष्टि से एक अनुपम अवदान दिया है ।'
इसी ग्रन्थ से कुछेक दृष्टांतों को इस सर्ग में प्रस्तुत किया है | आचार्य भिक्षु को प्रतिपादन शैली इतनी सहज-सरल होती थी कि प्रश्नकर्त्ता उस वक्तव्य को सही ढंग से समझ लेता था । आचार्य भिक्षु trafant बुद्धि के धनी थे, यह तथ्य इन प्रस्तुत दृष्टांतों के माध्यम से समझा जा सकता है ।
काव्यकार ने १९७ श्लोकों में अनेक दृष्टान्त सन्दून्ध किये हैं । श्लोकों की अपनी मर्यादा है। उनमें पूरे दृष्टांतों का समावेश संभव नहीं होता । अतः हमने श्लोक के हार्द की पूर्णरूपेण अवगति देने के लिए यत्र-तत्र पूरा कथानक उद्धृत किया है ।