________________
सप्तदशः सर्गः
१. श्रियाभिरामं सिरियारिनाम, पुरं विशैलोत्तममध्यत्ति । विदेहवर्ष निसधाद्रिनीलादयोरन्तरे रम्यतरं यथाऽमात् ॥
निषधाचल और नीलगिरि के बीच में अति सुन्दर महाविदेह क्षेत्र की तरह ही दो उत्तुंग शैलराजों के बीच समस्तश्री से मनोहर सिरियारी नाम का नगर सुशोभित था। २. गङ्गव गौरी विलसच्चकोरी, कल्लोलिनी कीरति यत्र बाह्ये । धरातुराबाट सबलस्तुराषाडिव प्रियो दोलतसिंहसञः॥
उस नगर के बाह्यभाग में गंगा की तरह पवित्र स्रोतस्विनी प्रवाहित हो रही थी। उसके तटों पर चकोरियां क्रीडारत थीं। वहां का शक्तिशाली, नीतिज्ञ अधिनायक इन्द्र की तरह सर्वप्रिय था। उसका नाम था दोलतसिंह।
३. पद्माभूतान्येकसहस्रसमान्यासंस्तदोत्केशकवंशजानाम् । आर्यस्य तत्राधिकषणवत्या, समान्यमुः सप्तशतानि तेषु ॥
वहा ओसवाल जाति के हजार घर थे। वे सब धनाढ्य थे। उनमें से सात सौ छिन्नवें घर आचार्य भिक्षु के अनुयायी थे।
४. आच्छास्ति जात्या खलु तेषु हुक्मचन्द्राभिधः श्राद्धवरः प्रमाण्यः । ___स सोजताख्ये नगरे मुनीन्द्र, व्यजिज्ञपद् विज्ञपनेकविज्ञः ॥ . उनमें हुक्मीचन्दजो आछा नाम के एक जाने-माने श्रेष्ठ श्रावक भी थे। वे प्रार्थना करने में अति निपुण थे। उन्होंने सोजत नगर में जाकर मुनिपति से सिरियारी के लिए महती प्रार्थना की।
५. पुरेऽस्मदीये सिरियारिसञ, ह्येषोम्बुदर्तुः कृपया समयः ।
वयं मयूरा वरचातका वा, त्वत्तर्ककाः' स्मः परितर्पयन्तु ।
१. तर्कक:-याचक (मार्गणोऽर्थी याचनकस्तर्कको अभि० ३३५२)