Book Title: Bhikshu Mahakavyam Part 02
Author(s): Nathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 260
________________ २३४ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी के दिन उन्होंने अपने शरीर की शिथिलता को वैसे ही जान लिया जैसे चतुर्थी के चान्द को देखकर मर्त्यलोक में चांद के प्रमाण के ज्ञाता लोग अपने पुण्य-पुञ्ज को जान लेते हैं। २६. ततो बभाषे सितकान्तिकान्तः, शान्तः प्रशान्तः शमिखेतसीजीम् । स्थिरं जगद्वन्न ममापि भावि, गात्रं चरित्रकपवित्रपात्रम् ।। तब चन्द्रमा की भांति शीतल, प्रशान्त, धवल यश से यशस्वी स्वामीजी मुनि खेतसीजी से कहने लगे-'वत्स ! चरित्र का एक प्रात्र पवित्र पात्र यह मेरा शरीर अब जगत् की भांति स्थिर नहीं है । २७. त्वं टोकराख्यश्च मुमुक्षुभारीमालस्त्रयः सान्द्रविनीतशिष्याः । योगोऽमिलद् वो मम सत्पवित्रो, यथा त्रिरत्नस्य मुनेर्मुमुक्षोः ।। खेतसी, टोकरजी और मुमुक्षु भारीमाल-तुम तीनों बहुत विनीत हो । जैसे मोक्षार्थी मुनि को देव, गुरु और धर्म-इन तीन रत्नों की प्राप्ति होती है वैसे ही मुझे तुम तीनों का बहुत ही उत्तम संयोग मिला है। २८. सहायतो वः सुमुनित्वमेतन्, मयाऽप्यपालि प्रसमाधिभाजा। ___ धातुत्रिकादङ्गभूतेव गात्रं, शक्तित्रयाद्राज्यमिवाधिपेन ।। जैसे मनुष्य धातु-त्रिक (वात, पित्त और कफ) से अपने शरीर को पुष्ट करता है, और एक शासक शक्तित्रय (प्रभुशक्ति, उत्साहशक्ति और मंत्रशक्ति) से अपने शासन को शासित करता है, उसी प्रकार मैंने भी तुम तीनों के सहयोग से समाधिपूर्वक संयम की आराधना की है । २९. प्रशस्य तान् सर्वविशां समक्षं, श्रीभारिमालादिकशिष्यवर्यान् । मुदा समुद्दिश्य विशिष्य भावान्, ददौ महामार्मिकतोपदेशम् ॥ समस्त जन समूह के बीच उन तीनों की प्रशंसा कर, भारीमालजी आदि शिष्यों को पूर्ण प्रसन्नता से सम्बोधित कर आचार्य भिक्षु ने बहुत ही मार्मिक उपदेश देते हुए कहा३०. यथा सदाज्ञा स्वशिरोवहा मे, जिनेश्वराज्ञेव धृताऽतिभक्तया । तथैव धार्याऽस्य नयेन भारीमालस्य कल्याणकृते कृतार्थैः ।। ___ 'जिनेश्वर देव की आज्ञा की भांति अत्यन्त भक्ति के साथ तम सबने जैसे मेरी आज्ञा शिरोधार्य की, वैसे ही कल्याण के लिए इस भारीमाल की आज्ञा को भी तुम सब कृतार्थ बनकर शुद्ध नीति से स्वीकार करना।' ३१. योग्यः समीक्ष्यष मया न्ययोजि, नितान्तनिष्पक्षतया पदत्वे । मणिर्मणीकारविचक्षणेन, नियुज्यते किं न हि नायकत्वे ॥

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