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वर्ण्यम् :
आचार्य भिक्ष के अनशन की बात सुनकर हजारों-हजारों श्रद्धालु जन सिरियारी में एकत्रित हुए। जो व्यक्ति आचार्य भिक्ष का सतत विरोध करते रहे, वे भी उस समय श्रद्धावनत होकर भिक्षु की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। वि० सं० १८६० । भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी का दिन । उस दिन लगभग डेढ प्रहर दिन बीतने पर आपने चार बातें कही- (१) पूरे नगर में त्याग-वैराग्य बढ़ाने का प्रयत्न करो। (२) शीघ्र सामने जाओ, साधु आ रहे हैं। (३) शीघ्र ही साध्वियां आ रही हैं । (४) चौथी बात अस्पष्ट थी। कुछ समय पश्चात् साधु-साध्वियां आ पहुंचीं। प्रतीत होता है कि आचार्य भिक्षु को अंतिम समय में अतीन्द्रियज्ञान (अवधिज्ञान) उत्पन्न हुआ हो। उसी दिन सायंकाल आपने पद्मासन में बैठेबैठे प्राण त्याग दिए । शोक-संतप्त लोगों ने और्वदेहिक क्रियाएं सम्पन्न की। आचार्य भिक्षु की इहलीला सानन्द सम्पन्न हो गई।