________________
११५
फिर पूछाताना माना
पञ्चदशः सर्गः
स्वामीजी ने पूछा- इनमें वंदना-भक्ति किन निक्षेपों की करनी चाहिए?
शांतिविजयजी बोले-चारों ही निक्षेपों की वंदना-भक्ति करनी चाहिए।
स्वामीजी बोले-एक भाव निक्षेप की हम भी वंदना-पूजा करते हैं। शेष तीन निक्षेपों की चर्चा रही। इनमें पहला नाम निक्षेप है । किसी कुम्हार का नाम भगवान रख दिया। उसे तुम वंदना करते हो या नहीं ? '
वे बोले - उसको क्या वन्दना करें। उसमें प्रभु के गुण नहीं हैं। स्वामीजी बोले-गुणवाले को तो हम भी वंदना करते हैं।
फिर स्वामीजी ने स्थापना निक्षेप के विषय में चर्चा शुरू की। उनको पूछा- रत्नों की प्रतिमा हो तो उसको वंदना करते हो या नहीं।
वे बोले-वंदना करते हैं। फिर पूछा-सोने की प्रतिमा हो तो? . वे बोले-वंदना करते हैं। चांदी की प्रतिमा हो तो? वंदना करते हैं। सर्वधातु की प्रतिमा हो तो? वंदना करते हैं। पाषाण की प्रतिमा हो तो? वंदना करते हैं।
गोबर की प्रतिमा हो तो वंदना करते हैं या नहीं ? तब क्षांतिविजयजी क्रोध में आकर बोले- 'तुमसे निक्षेपों की चर्चा नहीं करेंगे। तुम तो प्रभु की आशातना करते हो, वह हमें अच्छी नहीं लगती ? यह कह वे वहां से चले गये । स्वामीजी भी अपने स्थान पर आ गए।
एक दूसरे प्रसंग में क्षांतिविजयजी के साथ अंग-विषयक चर्चा हुई। आचारांग सूत्र की बात करते हुए आचार्य भिक्ष ने कहा
आचारांग सूत्र में ऐसा कहा है-'धर्म के निमित्त जीवों को मारने में दोष नहीं है, यह अनार्य वचन है ।' यह पाठ स्वामीजी ने दिखाया। तब क्षांतिविजयजी बोले-'यह पाठ अशुद्ध है।' उन्होंने अपने उपाश्रय से अपनी प्रति मंगाई।
__ स्वामीजी ने कहा-पढ़ो। उन्होंने परिषद् के बीच पढ़ने से आनाकानी की। उनके हाथ कांपने लगे।
___ तब स्वामीजी बोले-तुम्हारा हाथ क्यों कांप रहा है ? चार कारणों से हाथ कांपता है-(क) कंपन वायु से, (ख) क्रोधवश, (ग) चर्चा में पराजित हो जाने पर तथा (घ) मैथुन के आवेश में ।