________________
पञ्चदशः सर्गः
१५३
हमने तो सोचा-रावजी की मां मर गई है ।' तब कर्मचारियों ने किसानों से कहा-जयपुर, जोधपुर, उदयपुर वालों के पास पालकी है । इसलिए रावजी के पालका बनाया था अतः रावजी यहां हवा खाने के लिए आये हैं । तब किसान बोले--'इसे 'डोल' (रथी या बैकुंठी) जैसा क्यों बनाया ? स्वामीजी बोले-जैसा सिरोही रावजी का पालका, वैसा ही इनके नए साधुपन का स्वीकार । किन्तु श्रद्धा मिथ्या है । इनमें सम्यक्त्व और चारित्र-दोनों में से एक भी नही।"
१०३. भूतानागतकालयोरयिमुने ! वृत्तं भवान् दर्शयेत्,
तत् करीक्षितमाह तं मुनिपतिस्त्वत्पूर्वजज्ञः कथम् । सोऽप्याख्यन् मम पुस्तकात् कुलगुरोः स्वाम्याह तावत् तथा, सद्भिः सल्लिखितात् प्रभोः सुसमयान् व्याख्याम्यऽदृष्टं ह्यपि ॥
किसी समय केलवा में ठाकर मोखमसिंहजी ने आचार्य भिक्षु से पूछा-आप भविष्य और अतीत का लेखा, जोखा बतलाते हैं। वह किसने देखा है ?
स्वामीजी बोले-'तुम्हारे बाप, दादे और परदादे हुए । तुम उन पीढ़ियों के नाम और उनकी पुरानी बातें जानते हो, वे सब किसने देखी
. तब ठाकुर बोले-'बही भाटों की पोथियों में पुरखों के नाम और बातें लिखी हुई हैं। उनके आधार पर हम जानते हैं।'
तब स्वामीजी बोले-बही भाटों के झूठ बोलने का त्याग नहीं है। उनकी लिखी हुई बातों को भी तुम सच मानते हो, तब फिर ज्ञानी पुरुषों द्वारा लिखे गए शास्त्र असत्य कैसे होंगे ? वे सत्य ही हैं।
यह सुनकर ठाकुर बहुत प्रसन्न हुए और बोले-आपने बहुत अच्छा समाधान किया।
१०४. पूःशास्तारमुवाच निर्गमय तं भिडं पुरात् सोऽवद
दीदग् दुर्णयता कदापि न भवेत् स प्रोज्म्य तालीः स्थितः। मोत्याख्यर्षभवाहकस्य विजयप्रासिंहभूपस्य च, दृष्टान्तप्रतिपादनात् प्रतिगतः प्रोत्थाप्य ताः कुञ्चिकाः ॥
१. भिदृ०७। २. वही, ८८ । ३. ऋषभवाहक:-बनजारा ।