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पञ्चदशः सर्गः
१६१ (ग) किसी ने पूछा-आपके और अमुक संप्रदाय वालों में क्या अन्तर है ? स्वामीजी बोले-एक अक्षर का अन्तर है, एक अकार का अन्तर
११६. देवारम्बरिवीतचक्षुरववत् कश्चित् कुलालो ह्यम,
गेहस्यं हृतभूषणस्य कुरुते कस्मिश्च शङ्का भवान् । तेनोक्ताऽह्वयलः सुराश्रिततया शाठयप्रकाशस्तत, आत्ताख्यो जटिलस्य कस्यचिदनः सोऽभून् मजन्यामिधः॥
भीखणजी घर में थे तब उनके गांव कंटालिया में कोई चोर किसी का गहना चुराकर ले गया तब बोरनदी गांव से एक अन्धे कुम्हार को बुलाया । उसके शरीर में देवता आता है, ऐसा कहा जाता था। इस दृष्टि से उसे चोरी किए गए गहने का पता लगाने के लिए बुलाया। उस कुम्हार ने स्वामीजी से पूछा-भीखणजी ! यहां किस पर बहम किया जाता है? तब स्वामीजी ने उसकी ठगाईको प्रकट करने के लिए कहा-'बहम तो मजनूं पर किया जा रहा है।' रात का समय हुआ। अन्धे कुम्हार ने अपने शरीर में देवता का प्रवेश कराया। बहुत लोगों के सामने वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-'डाल दे, डाल दे रे गहना।' लोग बोले-'चोर का नाम बताओ।' तब वह बोला -'ओ ! ओ ! मजनूं रे मजनूं ! गहना मजनूं ने लिया है। वहां एक अतीत (संन्य सी) बैठा था। वह अपना घोटा लेकर उठा और बोला-'मजनूं तो मेरे बकरे का नाम है । उस पर तुम चोरी का आरोप लगाते हो? तब लोगों ने जान लिया, यह ठगी है स्वामीजी ने लोगों से कहा -'तुम आंख वालों ने तो गहना खोया और अन्धे से निकलवाना चाहते हो, तब वह गहना कहां से आएगा ?"
११७. पीपाराख्यपुरेऽभ्यधान्मुनिवरं काचिद् रुचिर्भक्षवी,
ह्याता चामुकया ततोऽत्र विधवा जाताऽथ तां व्याहरत् । त्वं बाला त्वतिनिन्दिका तव धवः कस्मान्मृतो वाच्यतामन्याभिविदिता स एष इति सा म्लानानना लज्जिता ॥
पीपाड़ में स्वामीजी गोचरी पधारे । एक बहिन ने कहा-'अमुक बहिन ने भीखणजी की मान्यता स्वीकार की, उससे उसका पति मर गया ।'
तब स्वामीजी बोले-'बहिन ! तू भी अवस्था में छोटी लगती है। १. भिदृ० २१५। २. तेनोक्तमाह्वयः लातीति-तेनोक्ता ह्वयलः । ३. भिदृ. १०९।