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पञ्चदशः सर्गः
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'यहां 'पूर्या' नामक एक नीची जाति का नोकर रहता था । वह एक बार नौकरी छोड़कर कहीं बाहर चला गया और योगी लोगों के सम्पर्क में आकर योगी बन गया । एक बार वह पूर्या योगियों के साथ घूमता- घूमता उसी नगर में चला आया जहां कि वह ठाकुर साहब के यहां नौकर था। ठाकुर साहब संतों के परम भक्त थे । उनके यह संकल्प था कि जो कोई भी संतमहात्मा उनके गांव में आए उन्हें भोजन कराना तथा उनके पैर धोकर चरणामृत लेना । अपने संकल्प के अनुसार नवागन्तुक योगियों का चरणामृत लेने के लिए उन्होंने क्रमशः एक-एक योगी के पैर धोने प्रारम्भ किये। ऐसा करते-करते क्रमश: जिस पंक्ति में पूर्या था उसकी भी बारी आयी और चरणामृत लेते हुए ठाकुर साहब ने जब उसके मुंह की ओर देखा तो चिरपरिचित होने के कारण वे उसे तुरन्त पहचान गए और सहसा बोल पड़े, 'अरे पूर्या तू है ? ' तब पूर्या ने मुस्कराते हुए योगी शिव्यों की जाति का रहस्योद्घाटन करते हुए कहा - 'महाराज ! क्या आप परिचित के ही लागू पड़ते हैं या किसी और के भी ? ये जितने भी हैं प्रायः सभी पूर्या ही पूर्या हैं। इस बात का मर्म तो साथ में रहने वाले ही जान सकते हैं न कि बाहर से देखने वाले । इसी तरह से प्रायः वेशधारी शुद्ध श्रद्धा व आचार के अभाव में शिथिलता को ही पुष्ट करने वाले हैं, पर इस तथ्य को ठाकुर साहब की तरह बाह्यरूपसंदर्शक नहीं समझ सकते, यह तो सिर्फ तत्त्वज्ञानियों के ही ज्ञान का विषय है ।
१९६. कान्ता कान्तमुवाच पश्य सबने चोराः समायान्त्य हो ! सोऽवग् वेद्मि तथा वचः प्रतिवचो जातं मिथो भूरिशः । a. किन्तु न चेष्टते सपदि तानुद्योगहीनो हि स, साक्षादित्थमकर्मको निजगृहं शक्येत कि रक्षितुम् ॥
[ कुछेक व्यक्तियों को धर्म की प्रेरणा देने पर वे कहते हैं, हां ठीक है, यह सब हमारे ध्यान में है और हम जानते हैं, पर वे पुरुषार्थ के नाम पर तनिक भी प्रयास नहीं करते। ऐसे व्यक्तियों की तुलना उस व्यक्ति के साथ की गई है जो कहने को तो कहता है कि हां मेरे ध्यान में है, पर करता कुछ नहीं । उस व्यक्ति को समय निकल जाने के बाद अनुताप के सिवाय और कुछ भी हस्तगत नहीं होता ।] आचार्य भिक्षु ने एक सुन्दर दृष्टान्त के माध्यम से कहा - 'किसी परिवार में पति-पत्नी मात्र दो ही सदस्य थे । पास में पुष्कल मात्रा में धन था। एक बार एक चोर चोरी के लिए उस घर में प्रविष्ट हुआ । घर में प्रवेश करते हुए चोर को पत्नी ने सहसा देख लिया और तत्काल पति से कहा- घर में चोर प्रवेश कर रहा है। पति ने उत्तर दिया- 'मैं जानता हूं, यह मेरे ध्यान में है । पर उसने किया कुछ भी नहीं ।