________________
१५४
श्रीभिक्षुमहाकाव्यम्
स्वामीजी ने पाली में चातुर्मास किया। उस समय एक व्यक्ति ने दुकान के मालिक से कहा-तुम्हें दुगुना किराया देंगे, तुम यह दुकान हमें दो। उस ने कहा-अभी तो यहां स्वामीजी ठहरे हुए हैं। यदि तुम पूरी दुकान को रुपयों से पाट दो तो भी मैं वह तुम्हें नहीं दूंगा । स्वामीजी के विहार कर जाने के बाद भले तुम ले लेना।' फिर वह हाकिम जेठमलजी के पास जा अपने घर की चाबियां उनके सामने डाल दी और कहा, या तो यहां भीखणजी रहेंगे या हम रहेंगे ।
तब हाकिम बोले-ऐसा अन्याय तो हम नहीं करेंगे । बस्ती में वेश्या और कसाई रहते हैं उन्हें भी हम नहीं निकालते तब भीखणजी को हम कैस निकालेंगे?
हाकिम ने दृष्टांत दिया-'विजयसिंहजी के राज्य में मोती नाम का बनजारा था उसके लाख बैल थे, इसलिए वह 'लक्खी बनजारा' कहलाता था । वह नमक लेने के लिए मारवाड़ में आता था । वह लोगों के खेतों को उजाड़ देता । तब राजाजी ने मोती बनजारे से कहा-'जाटों के खेतों को मत उजाड़ो।' मोती बोला-'मैं तो आऊंगा तब ऐसे ही होगा।'
राजाजी ने कहा- 'ऐसे ही होगा तो हमारे देश में मत आना । यदि हमारे पास नमक है तो दूसरे बहुत बनजारे आयेंगे । हम किसी को अन्याय नहीं करने देंगे।' इस दृष्टांत के आधार पर हाकिम ने कहा-तुम चले जाओगे तो दूसरे व्यापारियों को लाकर बसा देंगे, किन्तु साधुओं को निकालने का अन्याय नहीं करेंगे । तब वे अपनी चाबियां ले घर चले गए।'
१०५. यूयं भो कतिमूर्तयो मुनिपतिः पप्रच्छ वेषोखर
मुक्त्या सोऽपि समीयिवान्निजपदं भिन्नोपहास्यं गतः । प्रत्यावृत्त्य तथान्वयुग् व्रतिपति स्वामी हसित्वाभ्यधाद्, वेला सा तु गता वयन्त्विह मुदेयन्तो' हि सन्तः शुभाः॥
स्वामीजी ने अन्य संप्रदाय के साधुओं के स्थान पर पूछा-तुम कितनी मूर्तियां हो? तब उन्होंने कहा-हम इतनी मूर्तियां हैं । स्वामीजी अपने स्थान पर आ गए। पीछे से किमी ने उन साधुओं से कहा-तुम्हें तो भीखणजी ने 'भगत' बना दिया । तब उस अन्य संप्रदाय के साधु ने स्वामीजी के पास आकर पूछा-आप कितनी मूर्तियां हैं ?
१. भिदृ० ९५ । २. भिन्नोपहास्यं-अन्यः पुरुषरुपहास्यम् । ३. मुदेयन्तः-मुदा+इयन्तः ।