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पञ्चदशः सर्गः
१४३ से वह रम्य या अरम्य नहीं बन जाती। रम्य अथवा अरम्य का निर्णय वीतराग के कथन के आधार पर होता है। ८८. दीप्ताग्निशमनेऽल्पपापमधिका स्यान्निर्जरा चेत्तदा,
सिंहव्यालववाग्निदायकचमूहिसकादीनपि । हन्यात्तत्परिवध्यमानकरुणावांस्तत्प्रकारेण हि, स्यात्तत्रापि तथैव किं यदि भवेद विश्वे महाविप्लवः॥
कुछेक व्यक्तियों की यह धारणा है कि जलती हुई अग्नि बुझाने में अल्प जीवों की हिंसा व अनेक जीवों की सुरक्षा होती है, अतः अल्पपाप बहुनिर्जरा होती है। अल्प जीवों की हिंसा व बहु जीवों की सुरक्षा जहां होती है वहां अल्पपाप बहुनिर्जरा होती है-इस सिद्धान्त को मानने वालों को इन निम्नोक्त सभी प्रसंगों में भी 'अल्पपाप बहुनिर्जरा' मानने के लिए विवश होना पड़ेगा । जैसे सिंह, व्याघ्र, वन में अग्नि लगाने वाले, सेनापति तथा सभी प्रकार के हिंसक जीवों को मारने में भी थोड़े जीवों की हिंसा व इनसे मारे जाने वाले अनेकों की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए अल्पपाप बहुनिर्जरा माननी होगी। इसी प्रकार सिंह, व्याल आदि पर दया लाकर, जिनके द्वारा ये मारे जा रहे हैं, उनको मारने में भी जलती हुई अग्नि के विध्यापन की तरह ही अल्पपाप बहुनिर्जरा माननी पड़ेगी। अगर ऐसी ही क्रियान्विति होती रहे तो दुनिया में महाविप्लव की स्थिति संभव है।
८९. मार्जारान् यदि मूषकाऽवनतया धर्मादिकं स्यात् तवा,
मूलादेः परिरक्षणेऽपि च तथा धेन्वादिकः कि नहि। लोकानां प्रियगोचरेषु सुकृतं तत् प्रातिकुल्येन किं, पर्याप्तं जनरञ्जनेन जगतां तत्त्वावधानं वरम् ॥
बिल्ली चूहे पर झपट रही है। उसे डरा कर चूहे को बचाना धर्मपुण्य होता है तब अन्यान्य स्थानों में भी वैसा मानना पड़ेगा। इसको स्पष्ट करने के लिए आचार्य भिक्ष ने सात दृष्टान्त दिए
(१) एक स्थान पर सड़े-गले धान्यों का ढेर है। बकरे वहां उस धान्य को खाने आ रहे हैं। यदि बकरों को हटा दिया जाए तो धान्य के जीव तथा तदाश्रित अन्य जीवों का बचाव हो सकता है।
(२) एक गाड़ी मूला, गाजर आदि से भरी है। एक सांड उनको खाने आता है। उसको रोकने से वनस्पति के जीव बच सकते हैं।
(३) चूहे को खाने के लिए आने वाली बिल्ली को रोकने से चूहा बच सकता है। १. भिदृ०, १३०।