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बीस सोलहवां सर्ग
१ आचार्य भिक्षु की महान् क्रांति । २-१३ विक्रम की १९वीं शताब्दी के साधु-संतों की स्थिति का वर्णन । १४,१५ आचार्य भिक्षु का शिथिलाचार के प्रति घोष ।
१६ विनयमूल धर्म । १७-२३ गुरु विषयक ऊहापोह ।
२४ हठाग्रही न होने का उपदेश । २५ शिथिलाचारी शिष्यों का परित्याग ।
२६ गुरु-शिष्य के संबंध-विषयक विचारणा । २७-२९ गुणयुक्त गुरु की पूजा-अर्चा । ३०-३८ स्वामीजी के घोष की परिणति ।
३९ मूर्ख का लक्षण है मौन । ४०-४३ स्वामीजी की गर्जना और उपदेश । ४४-५७ सम्यक्त्व कैसे आया ? ५८-६१ देव, गुरु और धर्म की यथार्थ पहचान । ६२-६६ श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र का लक्षण । ६७-६९ क्रांति का परिणाम। ७०-७४ वे तारने वाले कैसे हो सकते हैं ? ७५-७६ वैसे गुरु हेय हैं। ७७-७९ आराधनीय आचार्य और मुनि के लक्षण । ८०,८१ नियम और उपनियम की व्याख्या । ८२-८६ सौत्री और आचार्य की मर्यादा का पालन । ८७,८८ साधुता की पालना दुर्लभ । ८९,९० साक्षात् दृष्ट दोषों का कथन । ९१-११४ अकल्प्य, ओद्देशिक आदि दोषों का कथन । ११५-१२२ साधु-साध्वियों की एक गांव में रहने की मर्यादा आदि । १२३-१२६ ईर्यापथ का विवेक ।
१२७ अतिरिक्त उपधि का निषेध । १२८,१२९ आहार विषयक विवेक । १३०-१३५ प्रतिलेखन का विवेक । १३६,१३७ गृहस्थ के भाजन में खाने का निषेध । १३८-१४० पीठ, फलक की सीमा । १४१-१४९ दीक्षा देने का विवेक । १५०-१५३ समारोहों की मीमांसा ।