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फूल क्यों बोलते हैं! मैं बोलता हूं क्योंकि सूरज की किरणें क्यों बोलती हैं मैं बोलता हूं क्योंकि परमात्मा चारों तरफ बोल रहा है।
छठा प्रश्न :
कल रात मैंने एक स्वप्न देखा कि रजनीश और उनके संन्यासियों तथा सत्य साईंबाबा और उनके अनुयायियों के बीच युद्ध हो रहा है। और अंत में साईंबाबा स्वीकार
करते हैं कि रजनीश बड़े भगवान हैं। इस स्वप्न
का कारण और अर्थ बताने की कृपा करें।
न तो कुछ अर्थ है, न कोई बड़ा कारण का कारण है। या जो भी है वह बिलकुल साफ है, वह सीधा-सीधा है कि तुम रजनीश के अनुयायी हो। सत्य साईंबाबा के होते तो निष्कर्ष उल्टा होता। यह तुम्हारा अहंकार है। तुम मेरे अनुयायी हो इसलिए मेरी जीत होनी चाहिए, क्योंकि मेरी जीत में ही तुम्हारी जीत छिपी है। तुम मेरे अनुयायी हो तो मैं बड़ा महात्मा होना चाहिए, क्योंकि बड़े महात्मा के ही तुम शिष्य हो सकते हो, छोटे के तो नहीं। तुम जैसा शिष्य और छोटे महात्माओं का हो?
अपने अहंकार के खेलों को समझने की कोशिश करो । न तुम्हें रजनीश से कोई मतलब है, न तुम्हें सत्य साईंबाबा से कुछ मतलब है । यह तुम्हारा ही अहंकार है। तुम सोच रहे हो, कोई बहुत बड़ा तात्विक सपना देख लिया, कि कोई बहुत आध्यात्मिक घटना देख ली कि भविष्यवाणी तुम्हारे सपने में आ गई।
इस पागलपन में मत पडना । न कुछ अर्थ है, न कोई बड़ा कारण है। सिर्फ तुम्हारे अहंकार के रोग हैं। वे नये-नये ढंग लेते हैं। वे गुरु के पीछे भी खड़े हो जाते हैं। तुम्हें क्या प्रयोजन है? मैं हारू कि जीतू र तुम्हें क्या लेना-देना है? है। अगर तुम मेरे अनुयायी हो तो अड़चन है। तो मैं हारा तो तुम हारे। मैं जीता तो तुम जीते। तुम्हें फिक्र तुम्हारी जीत की है। मेरी हार-जीत की थोड़े ही फिक्र
है!
और मेरी हार-जीत होनी भी नहीं है । हो चुकी । जो होना था हो चुका। अब कुछ होने को नहीं है। यात्रा पूरी हो गई। मैं अपने घर वापिस लौट आया हूं। अब कोई युद्ध नहीं चल रहा है। तुम्हारी यात्रा अभी अधूरी है।