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अग्रवालों की उत्पत्ति
पं. परमानन्द जैन, शास्त्री
(समूची वैश्य जाति प्रर्थात अग्रवाल जैन एवं जैनेतर, खंडेलवाल, प्रोसवाल. वर्णवाल, माहेश्वरी रस्तोगी, राजवंशी, परमार (परवार), जायसवान, पल्लीवाल, लम्बेच, पोरवाड, गोलालारे, गोल-सिंगारे, गोलापूर्व एवं देश भर में फैली हुई अनेकानेक इतर वैश्य उपजातियो के सम्बन्ध मे तथा उनके उत्पत्ति स्थलों के सम्बन्ध मे प्रानुश्रुतिक, पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक शोध कार्य करने तथा प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत करने के प्रयास सदैव होते रहे है जिनमें 'प्रनेकान्त' का भी प्रपना समुचित योगदान रहा है।
_ विद्वान लेखक का प्रस्तुत गवेषणापूर्ण लेख इसी दिशा में एक सराहनीय प्रयास है। -सम्पादक)
'अग्रवाल' शब्द का अर्थ होता है, पन या प्राग्रेय प्राचीन माहत मुद्रा का नमूना भी मिला है। प्राचीन जनपद का निवासी । प्राचीन समय मे अग्र गण अथवा नगर के अवशेषो के साथ यूनानी सिक्के और ५१ चौखुटे प्रग्रेय जनपद समद्धशाली नगर था। उसी का परिवर्तित तांबे के सिक्के भी मिले है, जो इतिहास की दृष्टि से म प्रयोहा जान पडता है। प्रमोदक भी उसका नाम महत्वपूर्ण है । ताबे के सिक्को के सामने की पोर वृषभ तथा है, इससे जान पड़ता है कि वहाँ कोई सुन्दर विशाल पीछे की ओर सिंह या चैत्य वृक्ष की मूर्ति अकित है, जो तालाब था, इसी से उसका नाम अग्रोदक ख्यात हुप्रा है। जैन मान्यता की मोर सकेत करती है।' सिक्को के पीछे पर स्थान हरियाणा में हिसार नगर से १३ मील की बाली अक्षरो मे अगोद के प्रगच-जनपदस, शिलालेख भी दूरी पर दिल्ली-सिरसा सड़क पर अवस्थित है पोर इम अंकित है, जिसका प्रथं प्रमोदक में प्रगघ जनपद का समय वह उजड़ा हपा एक छोटा-सा गांव है। प्राचीन सिक्का होता है। उक्त प्राग्रेय जनपद का ही नाम अग्रोहा काल में वह एक विशाल एव प्रत्यन्त सम्पन्न नगर था। प्रचलित हमा है पोर राजधानी का नाम 'अग्रोदक' सिक्कों इसका प्रमाण वे वसावशेष है, जो उसके निकट सात सौ पर उत्कीर्ण है। एकर भूमि मे फैले हुए है। उमको समृद्धि का इसग भी इडियन एण्टोक्वेरी, भाग १५, पृ० ३४३ पर प्रमोदक अनुमान होता है कि वहां के निवामी सवा लाख व्यक्ति वैश्य का वर्णन दिया गया है, जिससे ज्ञात होता है कि लोहाचार्य के उपदेश से जैन धर्म के धारक श्रावक बने थे। वहाँ अग्रवाल वैश्यो का खासा जमघट रहा है। अन्य इससे नगर की विशालता का भी पता चलता है । यह जातियो की अपेक्षा वहाँ अग्रवाल वैश्यो की संख्या एक प्राचीन ऐतिहासिक नगर रहा प्रतीत होता है। यहाँ अधिक रही है और वे वहाँ अच्छे सम्पन्न एवं वैभवशाली एक टीला ६० फुट ऊँचा था, जो फतेहगढ़ जाने वाली रहे है। वे अग्रवाल देशभक्त और वीर जान पड़ते हैं, सड़क के दक्षिण की पोर प्रवस्थित है। इस टीले से तीन क्योकि उन्होने अपने देश की रक्षार्थ यूनानी, शक, कुषाण, प्राचीन नगरो के अवशेष मिलत है, जिनका समय दूसरी हण और मुसलमान प्रादि विदेशी प्राक्रमणकारियो से शताब्दी मे पूर्व और दसवी शताब्दी मे बाद का जमकर लोहा लिया थ । मुहम्मद गौरी के समय पहाँ अनुमानित किया जाता है, जिसकी खुदाई सन् १९३६- के निवासी अग्रवाल राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली ४० मे हुई थी। उसमें अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई थी। प्रादि इधर-उधर के प्रान्तो मे बस गये थे । इस जाति मे भी उसी से यह भी ज्ञात हुप्रा था कि वहां अनेक विशाल अनेक प्रतिष्ठित, वीर, पराक्रमी एव पोज-तेज से सम्पन्न भवन भी बने हुए थे । २६ फुट के नीचे सबसे अधिक व्यक्ति हुए हैं, जिन्होने समय-समय पर महत्वपूर्ण कार्यों
१, एपिमाफिया इडिका, जिल्द २, पृष्ठ २४४ । २. एपिग्राफिमा इडिका, जिल्द १, पृष्ठ ६३-६४ ।