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माधुनिक भामाशाह
विद्यावारिधि डा. महेन्द्र सागर प्रचंडिया, मलोगढ
जिस प्रकार वाणी चरित्र की प्रतिध्वनि होती है, उसी तीय सांस्कृतिक सम्पदा को सुरक्षित रखने को प्रति प्रकार व्यक्ति के क्रिया-कलाप उसके व्यक्तित्व के परिचा. का परिचायक है। यक हप्रा करते है। साइजी मनसा, वाचा और कर्मणा शुद्ध उनके द्वारा भारतीय जन समाज गर्वित है पौर महू जी थे । साकार प्रनन्वय प्रलंकार ।
गौरवान्वित है जनेतर समाज । राष्ट्रीय भावना कोई दिन-दिनांक ठीक से स्मरण नहीं. परन्तु परेड ग्राउड
उनसे सीखता, वे विशुद्ध राष्ट्रवादी थे। वे मात्र मानव दिल्ली मे जैन मित्र मंडल के तत्वावधान में पायोजित
ही नही थे अपितु मानवता के सच्चे समर्थक भी थे । था। महावीर जयती महोत्सव के अवसर पर श्री सत साहू
राष्ट्रीय सकटकाल में उन्होने उदारतापूर्वक प्राधिक जो उस विशाल सभा के सम्माननीय सभापति थे और
सहयोग देने वालो में अपना स्थान सुरक्षित रखा। वे अन्य पनेक वक्तामों की भाति मझे भी प्रामन्त्रित किया पर
बीस वस्तुत माधुनिक भामाशाह थे। मया था। पैतालीस मिनट उन्होंने मुझे पूरी तन्म
पच्चीससौदें भ. महावीर निर्वाण महोत्सव में उन्होंने यता के थाथ सुना था भोर तब मुझे महसूस हा कि सम्पूर्ण भारतीय जैन बन्धुषों को एक संगठन में व्यववे प्रवचन सुनकर प्रानन्दित हुए थे। उन्होने साघवाद स्थित किया । श्वेताम्बर पोर दिगम्बर सम्प्रदायों को एकदेते हए मेरी पीठ पर अपना वरदहस्त रखा हा कदाचिन सूत्र मधिने का श्रेय साह जी का मिला था। ये साम्यउनसे मेरा यह प्रथम निकटतम सम्पर्क था। वे धार्मिक वादी दृष्टिकोण के उन्नायक थे। थे और धर्म के मर्म को सामाजिक शैली में व्यक्त करने जैन परिवार के अगणित होनहार युवकको वेजोड क्षमता रखते थे।
युवतियो ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज, समुदाय विशाल भारत का प्रौद्योगिक उत्कर्ष दशाब्दियों पर्यन्त और देश प्रदेश को गौरवान्वित किया है। उनके द्वारा कल ता में समलंकृत रहा और साहू जी का वहाँ अपना देश के अनेक साहित्यकार निगकुल हुए है। देश को पत्र. स्थान था। उनके द्वारा अनेक प्रौद्योगिक प्रतिष्ठानो कारिता के उन्नयन में साहू जी का सहयाग सर्व या उल्ले की स्थापना हुई। फलस्वरूप वे स्वयं बने और खनीय रहा है। इस प्रकार, साहू जी की सामाजिक, देश का बनाने के निखित निमित्त बने । उन्होंने राष्ट्रीय तथा धार्मिक सेवाभो पे मारा समुदाय और ममान साहित्यिक क्षेत्र में 7 अद्वितीय उद्योग किया। भारतीय उकृत रहेगा। ज्ञानपीठ प्रकशा इम दृष्टि से प्रकाशन प्रतिष्ठानो मे प्राज शारीरिक रूप में साह जी वाहे हमारे बीच में उल्लेखनीय है। भारत का नोबुल पुरस्कार --भारतीय उठ गए हो किन्तु वे पाने काम काज म, नी । नपुप ये, ज्ञानपीठ पुकार साहू जी की बेन नीर प्रेरणा है। धर्म-कर्म से प्राज हो नही प्रन पग्नियो तक बैठे रहेगे। भारतीय मामानिक मास्कृतिक तथा धार्मिक निर्माण योज. उनकी सेवाये उनका शाश्वत स्मारक बन गई है। उनकी नामो की पाधा नक्तियों में साहू जी की सहयोगी भूमिका मामाजिक सेवापों ने मन्मार्ग का माहल म्योन स्थापित किग उल्लेखनीय रही है । तीर्थोद्वार, जिन मंदिरों की संरच. है । माहू जी साधारणत. मसाधारण व्यक्तित्व के महापुरुष नाए, विद्या-केन्द्रों की स्थापना मानो साहू जी की भार- थे, महान थे। un