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उनके नेतृत्व का फल
श्री मिश्रीलाल पाटनी
साहू शान्तिप्रसादजी का जन्म उत्तर प्रदेश के नजीबा
जाबा. बहुत व्यापक अनुभवों के कारण प्रापको पं. जवाहरलाल बाद नगर मे सन् १९११ मे अग्रवाल जैन परिवार में
र म नेहरू द्वारा गठिन पहली राष्ट्रीय सीमित मे देश के तरुण हमा । मारके पिताजी का नाम श्री साह दीवान चन्दजी
प्रौद्योगिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए सदस्य तथा माता का नाप श्रीमती मूनिदेवीजी था। प्रापने
मनोनीत किया गया। देश में अनेक प्रौद्योगिक सस्थानों प्रारभिक शिक्षा वही प्राप्त की थी। तत्पश्चात् उच्च
की व्यवस्था हेतु अध्यक्षपद पर रहकर, उत्तम व्यवस्था शिक्षा प्राप्त करने हेतु कार्श. विश्वविद्यालय एवं पागरा
करके कार्य संचालन करते रहे, जिनमें से कुछ वरिष्ठ विश्वविद्यालय में गये । वहा प्रत्येक विषय की शिक्षा
संस्थानों के नाम उल्लेखित किये जाते है : भारतीय प्राप्त की। प्रत्येक शिक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होत
वाणिज्य उद्योग मण्डल संघ, इण्डियन चेम्बर प्राफ
कामर्स, इण्डियन शुगर मिल्स एसोसिएशन, इण्डियन पेपर प्राविधिक विषय क्षेत्र में विदेशो मे गवेषणाएँ
शा म गवषणाए मिल्स एसोसिएशन, बिहार चेम्बर प्राफ कामर्स; एवं वगके ब्रिटन, प्रमेरिका जर्मनी, रूस प्रादि देशो में प्रापने लगातार चार वर्ष तक प्राल इण्डिया प्रारगेनाइजेशन परिभ्रमण कर वहा से प्रौद्योगिक व्यवसायी कारखानो में साफ इण्डस्ट्रियल एम्पलाईयर्स के भी अध्यक्ष रहे। जाकर वहां के कार्यों को दृष्टिगोचर कर मनन करते प्रतिवर्ष सैकड़ों इजीनियरिंग विद्यार्थी तथा वाणिज्य रहे। भारतीय प्रौद्योगिक प्रतिनिधि के रूप मे प्राप सन् विद्यार्थी, पत्रकार संपादन कला शिक्षा एव अनेक शिक्षाओं १६३६ मे डच इण्डस्ट्रीज, सन् १९४५ मे मास्ट्रेलिया, के गरीब इच्छक घिद्याथियो के पठन-पाठन कार्य हेतु अपने सन् १९५४ में सोवियत रूस गये। वहां मे पाने पर भारत उपाजित द्रव्य मे से रुपये देकर सहयोग प्रदान करते रहे। मे पापने विभिन्न प्रकार के उद्योग-धन्धो के कारखाने
साह जैन संस्थानों के माध्यम से व्यावहारिक प्रशिक्षण, निर्माण किये और कुशल नेतृत्व कर उनमे निरन्तर कार्य
अनेक व्याधि, शारीरिक रक्षा, विवाह शादी खर्च हेतु निर्धन वृद्धि करके वस्तुप्रो का उत्पादन कर वाणिज्य-व्यवसाय
महानुभावों की माग पर अथवा स्वय दष्टिगोचर होने पर करने मे अग्रसर होते रहे। प्रापका विज्ञान प्रत्यन्त विशाल
उनको द्रव्य देकर उनकी सहायता करते रहते थे। तथा व्यापक दृष्टि में था। मापने कागज, चीनी, वन- अनेक प्राचीन जैन तीथों के जैन मन्दिरों का जीर्णोस्पति, सीमेन्ट, एमबेस्टाज निमित वस्तुएं', भारी द्वार करने हेतु लाखो रुपयो का दान देकर तीर्थ सुरक्षित रसायन, कृषि उपयोग मे मानेवाला माईट्रोजन खाद, पावर कराये । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, एलकोहल, प्लाईवुड, साइकिल, कोयले की खाने, लाईट बम्बई व महिमा प्रचार समिति, कलकत्ता के अध्यक्ष पद रेल्वे, इंजीनियरिंग कारखाने, हिन्दी, प्रग्रेजी, गुजराती, पर राकर अनेक छात्रावासों की स्थापना अनेक स्थानों मराठी भाषा मे दैनिक नवभारत टाइम्स व साप्ताहिक पर करके, कई लाख का दान देकर उन्हें सचालित कराया। पत्र प्रकाशन, सास्कृतिक तथा साहित्यिक एवं धार्मिक वैशाली के स्नातकोचर प्राकृत जैन एवं पहिसा शोष पुस्तक प्रकाशन कार्य हेतु ज्ञानपीठ सस्था स्थापित की जो संस्थान की स्थापना के लिए प्रापने लाखो रुपये देकर एक लाख रुपया उच्च विद्वानो को प्रतिवर्ष पुरस्कार भेट मटकी। अनेक शिक्षण सस्थामों को अनेक स्थानों पर रूप में प्रदान करती हैं। प्रापकी विशिष्ट प्रतिभा तथा
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