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जैन देवकुलमें यक्षी चक्रेश्वरी
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की सभी भुजाए सुरक्षित है। देवी की छह भुजामों में बारहवीं शती की एक चतुर्भुज मूर्ति कर्नाटक की कम्बड़ चक्र एव अन्य में शृखला से युक्त घण्ट, खेटक, वन, पहाड़ी स्थित शातिनाथ बस्ती के नवरग से मिली है। खड्ग, तूणीर, मुद्गर, गदा, व्याख्यान मुद्रा-अक्षमाला, गरुड़वाहना यक्षी ने अभयमुद्रा, चक्र, चक्र एव पद्म धारण परशु दण्ड, शख, घनुप, मर्प एवं शूल प्रदर्शित है। देवा किया है। होयसल कालीन एक षट्भुज मूति कर्नाटक के के शीपंभाग में तीन जिन मूर्तियां निरूपित है। बहुमुजी
जिननाथपुर स्थित जैन मन्दिर को दक्षिणी भित्ति पर चक्रेश्वरी को ग्यारहवीं शती को एक मनोजमूर्ति मध्य
है। यक्षी के करो मे वरमुदद्रा, वन, चक्र, चक्र, वन एवं प्रदेश के गोलकोट नामक स्थल से प्राप्त होती है।
पद्य प्रदर्शित हैं। बम्बई के सेण्ट जावियर कालेज के उड़ीसा को खण्डगिरि पहाड़ी (पुरी जिला) को नवमुनि गुफा में ग्यारहवी शती की दमभुजा चक्रेश्वरी को
इण्डियन हिस्टारिकल रिसर्च इन्स्टीटयूट सग्रहालय में एक मूर्ति है। जटामकुट से शोभित गरुड़वाहना यक्षो सुरक्षित ऋषभमूर्ति में चकेश्वरी द्वादशभुज है। त्रिभंग में योगासन मुद्रा में दोनो पर मोडकर बैठा है। चक्रेश्वरी खड़ी यक्षो की पाठ भुजामों में चक्र, दो मे वज्र एव एक के मात हाथो में चक्र, दो में खेटक, अक्षमाला एव एक में पत्र प्रदर्शित हैं । एक भुजा खण्डित है। द्वादशभुज चहाथ योगमुद्रा में गोद में स्थित है। उड़ीसा को खण्डगिरि श्वरी की एक अन्य मूर्ति एलोरा (महाराष्ट्र) को गफा पहाडी को वारभुजो गुफा मेद्वादशभुज चक्रेश्वरी की एक ३० में देखी जा सकती है। गरुड़वाहना चक्रेश्वरी के पाच मति है । गरुड़वाहना देवी की छह दक्षिणभुजाओ मे वरद- अवशिष्ट दक्षिण करो में पद्म, चक्र, शंख, चक्र एव गदा मुद्रा, वज्र, चक्र, चक्र, अक्षमाला एवं खड्ग है, और तान प्रदर्शित है। यक्षी की केवल एक ही वामभजा सुरवाममजामो मे खेटक, एवं सनाल पद्य है और तीन भुजाएं क्षित है, जिसमे खड्ग स्थित है। खण्डित है।
000 पश्चिम भारत के किसी स्थल से प्राप्त लगभग दसवी डो-५१/१६४बी, सूरजकुण्ड, वाराणसी-२२१००१(उ० प्र०) शती को एक अष्टभ ज मति राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली (क्रमाक ६७-१५२) मे सुरक्षित है। गरुड़वाहना यक्षी
सन्दर्भ सूची की ऊपर की छह भुजाम्रो म चक्र और अन्य दो मे वरद
१. शाह, यू। पी.---भाइकानोग्राफी माफ चक्रेश्वरी, दि मुद्रा एवं फल प्रदशित है। कुभारिया (बनासकाठा,
यक्षा प्राफ ऋषभनाथ, जनल प्राफ दि मोरिएण्टल गुजरात) के शातिनाथ एवं गहावीर मन्दिरो (११वी
इन्स्टीट्यूट माफ बड़ोदा, ख० २०, अ०३, मार्च शती) की छतो पर उत्कीण ऋषभनाथ के जीवन दृश्यों में भी चतु। वक्रटरी निरूपित है। शान्तिनाथ मन्दिर
१९७१, पृ० २८०-३११ । के उदाहरण म यक्षी वरदमुद्रा, चक्र, चक्र एव शख से युक्त
२. तिवारी' मारुतिनन्दन प्रसाद, दि प्राहकानोग्राफी है। महावीर मन्दिर के उदाहरण में "वैष्णवो देवी" के पाफ दि जैन यक्षी पश्वरा', श्रमण (वाराणसी), वर्ष नाम से सम्बोधित यक्षी के करो में वरदमुद्रा, गदा, २७, अ० १०, अगस्त १९७५, पृ० २४.३३ । सनालपन एवं शंख प्रशित है। गजरात एवं राजस्थान ३. शर्मा, बजेन्द्रनाथ -'मन्पब्लिश्ड जैन ब्रोन्जेज इन दि के श्वेताम्बर स्थलो की चक्रेश्वरी मति के सन्दर्भ में एक
नेशनल म्यूजियम', जर्नल पाफ दि मोरियन्टल इन्स्टी. प्रमुख बात यह है कि इस स्थलो पर यक्षो चक्र खरी पोर
ट्यूट, बड़ोदा, ख० १६, म० ३, मार्च १६७०, पाचवी महाविद्या अप्रतिचका के निरूपण में अत्यधिक
पृ० २७५-७६ । समानता प्राप्त होती है। इस कारण कभी-कभी यह निश्चित करना कठिन हा जाता है कि मूर्ति यक्षो की है
४. गुप्ता, एस० पी० तथा शर्मा, बी०एन० --"गघावल, या महाविद्या की। यद्यपि लाक्षणिक ग्रंथों में दोनों के
पोर जैन मतियां,' मनेकांत, खं० १६, अक १-२, लिए स्वतन्त्र विशेपताए वणित है, पर मूर्त अभिव्यक्तियो
अप्रैल-जून १९६६, पृ० १३० । में उनका निर्वाह नही किया गया ।
५. मित्रा, देबला-शासन देवीज इन दि खण्डगिरि दक्षिण भारत में यक्षो का चतुर्भुज, पद्मन, प्रष्ट भज
केन्स', जर्नल माफ दि एशियाटिक सोसायटी, ख. एवं द्वादशभुज स्वरूपा मे निरूपण हा है। ग्यारहवी. १,०२, १९५६, पृ० १२७-३३ ।