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७६, बर्वे १२, कि० ३-४
अनेकाव
चित्रण बहुत नियमित नहीं रहा है। साथ ही, भुजाबों में पोर शख से युक्त है । शख और गदा का प्रदर्शन भी दुर्लभ रहा है । इस क्षेत्र में देवगढ़ में चक्रेश्वरी का चतुर्भुज स्वरूप सर्वाधिक यक्षी की भुजामों में चक्र, वन एव पद्म के प्रदर्शन में लोकप्रिय रहा है । पर यक्षी को षड्भुज, प्रष्टभुज, दशभूज नियमितता प्राप्त होती है।
एवं विशतिभुज स्वरूपों में भी अभिव्यक्त किया गया। चक्रेश्वरी को प्राचीनतम स्वतन्त्र मूर्ति उत्तर प्रदेश उल्लेखनीय है कि नवीं (८६२ ई.) से बारहवी शती के के ललितपुर जिले में स्थित देवगढ़ (दिगम्बर) के मंदिर मध्य की चक्रेश्वरी की सर्वाधिक स्वतन्त्र मतिया देवगढ़ १२ को भित्ति से प्राप्त होती है। ८६२ ई० मे निर्मित से ही प्राप्त हुई हैं। अधिकांश उदाहरणों में किरीटमकुट मन्दिर स० १२ (शान्तिनाथ मन्दिर) की भित्ति पर जैन से अलंकृत गरुड़वाहन यक्षी के हाथों में चक्र, शख एव देवकुल की सभी २४ यक्षियों का प्रकन प्राप्त होता है, गदा है। बहुमुजी मतियो मे चक्र, शख, गदा के अतिरिक्त जो २४ यक्षियों के सामहिक चित्रण का प्रारम्भिकतम खेटक, खड्ग, परशु एवं वज्र का प्रदर्शन लोकप्रिय रहा उदाहरण है । त्रिभग में खड़ी चतुर्भुज चक्रेश्वरी की सभी है ।चतुर्भुज यक्षी की द्विभग मे खड़ी एक मूर्ति मन्दिर भजात्रों में चक्र है । गरुड़वाहन दाहिने पार्श्व में नमस्कार १२ के प्रधंमण्डप के स्तम्भ पर उत्कीर्ण है । यक्षी के करो मुद्रा में खड़ा है। मतिलेख मे यक्षी का नाम 'चक्रेश्वरी' मे वरदमुद्रा, गदा, शंख एव चक्र प्रदर्शित है। षट मज उत्कीर्ण है । यक्षी के निरूपण में जैन देवकूल की पांचवी चक्रेश्वरी की एक मूति (११वी शती ई०) मदिर १२ महाविद्या प्रतिचक्रा के स्वरूप का अनुकरण किया गया की दक्षिणी चहारदोबारी पर उत्कीणं है। यक्षी वरदमुद्रा, है, जिसकी सभी भुजामों में चक्र के प्रदर्शन का विधान खड्ग, चक्र, चक्र, गदा एवं शंख से युक्त है। मष्टभुज रहा है । महाविद्या की धारणा यक्षी चक्रेश्वरी की अपेक्षा चक्रेश्वरी की तीन मूर्तियां है । ग्यारहवी शती को एक मति प्राचीन रही है।
मन्दिर स०१ के मानस्तम्भ पर उत्कीर्ण है, जिसमे यक्षी प्रारम्भिक दसवी शती को दो प्रष्टभुज मूर्तिया की भुजाम्रो मे वरदमुद्रा, गदा, वाण, छल्ला, छल्ला, वज्र, मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में स्थित ग्यारसपुर के माला- चाप एवं शख है मंदिर १४ की बारहवी शती ई० को देवी मन्दिर के शिखर पर उत्कीर्ण है। इनमे पक्षी के एक मूर्ति में तीन हाथो मे चक्र और शेष मे दण्ड, खडग, प्रवशिष्ट करो मे छल्ला, वज्र, चक्र, चक्र, चक्र और शंख अभयमुद्रा, परशु एव शख प्रदर्शित है । प्रदर्शित है । दसवी गती को एक दशभुजा चक्रेश्वरी मति दशभुजा यक्षी को एक मूर्ति मन्दिर ११ के समक्ष पुरातात्विक संग्रहालय, मथुरा (क्रमाक.०० डी-६) मे के मानस्तम्भ (१०५६ ई.) पर उत्कोण है ! यक्षी वरदसुरक्षित है। पद्मासन पर समभग मे खड़ी यक्षी की नो मृद्रा, वाण, गदा, खड्ग चक्र, चक्र, खेटक, वज्र, धनुष एव सुरक्षित मजामों मे चक्रस्थित है। दो सेविकाग्रो से सेवित शख से युक्त है। वितिमुज चक्रेश्वरी को ग्यारहवी शती देवी के शीर्षभाग मे लघु जिन प्राकृति उत्कीर्ण है । दिगबर की तीन मतिया प्राप्त होती है, जिनमें से दो स्थानीय स्थल खजुराहो (छतरपुर, मध्य प्रदेश) से यक्षी की दसवी साह जन संग्रहालय में सुरक्षित है। साहू जैन संग्रहालय से बारहवी शती के मध्य चार से दस भुजाम्रो वाली कई की एक विशिष्ट मूर्ति मे चक्रेश्वरी के साथ दो उपासको, मतिया मिली है। यहा की चतुर्भुज मूर्तियों में गदा, चक्र, चामरचारिणी सेविकामो, पप धारण करने वाली पुरुष शंख और प्रभयमुदा (या पध) प्रदर्शित है । घण्ट ई मन्दिर प्राकृतियो, उड्डीयमान मालाघरो एवं ऊपर की भोर (१०वी शती) के प्रवेश द्वार पर चक्रेश्वरी की मष्टभुज जैन यक्षी पथावती और सरस्वती को भी मामतित किया मति निरूपित है। यक्षी के हाथों में फल, घण्ट, चक्र, गया है। चक्रेश्वरी की केवल सात ही भुजाए सुरक्षित है, चक्र, चक्र, चक्र, धनुष एवं कलश है। पार्श्वनाथ मन्दिर जिन में चार मे चक्र पोर पन्य में वरदाक्ष, खेटक भौर शख (८५४ ई.) के प्रवेश द्वार की मूर्ति मे दशभुजा यक्षी प्रदर्शित है। संग्रहालय की दूसरी मूर्ति मे चामरघारिणी बरद, खड्ग, गदा, चक्र, पप, चक्र, धनुष, फलक, गदा सेविकामों एवं उड्डीयमान मालाधरों से युक्त चक्रेश्वरी