Book Title: Anekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 207
________________ १२२, वर्षे ३१, कि० ३-४ अनेकान्त स्त्रियों की पूजा होती है वहां पर देवता निवास करते और उन इच्छाओं की पूर्ति के साधन अत्यल्प है। प्रतएवं हैं। इसीलिए महापुराण में कहा गया है कि पति-पत्नी समस्त इच्छात्रों की पूर्ति होना असम्भव है। इसलिए से सुशोभित होता है। अत्यन्त आवश्यक प्रावश्यकतानो की पूर्ति करके ही जैनाचार्यों ने वेश्यामों को सामाजिक धारा से जोड़ने सन्तोष करना चाहिए । पत: विवेक एवं न्यायपूर्वक चयन का प्रयास किया है। समाज में वेश्याओं को हीन दृष्टि से किये गये धन से इच्छापूर्ति करनी चाहिए। जैनाचार्यों देखा जाता था, परन्तु समाज मे सुधार करके उन्होने ने कहा है कि यदि कोई मनुष्य अपनी इच्छापूर्ति मन्यायइनकी स्थिति में परिवर्तन किया। इस परिवर्तन के परि- मार्ग का प्राश्रय लेकर करता है तो उसे महान् कष्ट णामस्वरूप वसन्तसेना नामक वेश्या ने अपना पेशा छोड़. उठाना पड़ता है। अतएव न्यायपूर्वक धनार्जन करना ही कर विवाह किया और अपनी मां के घर से पति के यहाँ जीवन को सुखी एवं सन्तुष्ट बनाने का एकमात्र मार्ग पाकर अपनी सास की सेवा करते हुए प्रणवतो का पालन है।' कामनानों की पूर्ति का साधन अर्थ है और मथं धर्म करने लगी।' वेश्यायें विवाह करके गृहस्थी बसाने लगी से मिलता है। इसलिए धर्मोचित अर्थ-अर्जन से इच्छाऔर सामाजिक धारा में योगदान देने लगीं। वेश्याओं के नुसार सुख की प्राप्ति होती है तथा इससे मनुष्य प्रसन्न साथ विवाह करने पर किसी को समाज से बहिष्कृत नही रहते हैं । अतएव धर्म का उल्लघन न कर धन कमाना, किया जाता था। इससे यह ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों उसकी रक्षा करना तथा योग्य पात्र को देना ही मुख्य ने वेश्यापों की स्थिति सुधारने और उन्हे समाज मे लक्ष्य होना चाहिए।' सम्मानजनक स्थान दिलाने तथा उनके साथ विवाह करने जैनाचार्य जिनसेन ने समाज मे वर्ग-संघर्ष को रोकने को प्रोत्साहन दिया। जिस प्रकार आज कल हरिजन कन्या के लिए श्रम का विभाजन किया है। उन्होने ऐमी के साथ विवाह करने पर सरकार की पोर से विभिन्न ___ व्यवस्था की थी कि सभी अपने-अपने पेशे मे लगकर प्रकार का प्रात्साहन दिया जाता है, सम्भवतः उम समय कुशलता का परिचय दें और कार्य में निपुणता लाकर भी वेश्यापो के साथ विवाह करने पर इसी तरह का कोई देश को आगे बढ़ावे। इसीलिए महापुराण में एक दूसरे प्रोत्साहन दिया जाता रहा होगा। की आजीविका मे हस्तक्षेप का निषेध किया गया है।' जनाचार्यों ने समाज में प्रायिक असमानता को दूर त. हम देखते है कि जैनाचार्यों ने जैन पुराणों के करने के लिए समानता स्थापित करने का प्रयास किया माध्यम से समाज के विभिन्न क्षेत्रो मे समता स्थापित है। जैन पुराणों के अनुशीलन मे यह तथ्य प्रकाश में करने का प्रयास किया है। समाज से विशेषाधिकारों एवं पाता है कि उप समय सभी को न्यायपूर्वक आजीविका असमानतामो को दूर करके समन्वय की धारा प्रवाहित करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता था। जिनसेनाचार्य की है। ने कहा है कि इस ससार में मनुष्य की इच्छायें अनन्त है U00 १ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । ५. .."वृत्तिश्च न्यायो लोकोत्तरो मतः । तत्रौतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। -- महापुराण, ४२.१४; __ -- मनुस्मृति, ३.५६; तुलनीय-गरुडपुराण, १.२०५.६८ । तुलनीय-जायसो यत्र पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। ६. धर्मादिष्टार्थसम्पत्तिस्ततः कामसुखोदयः । यत्र तास्तु पूज्यन्ते विनक्ष्यस्वाक्षुतद्गृहम् ।। सच संप्रीतये पुसा धर्मात् संषा परम्परा ॥ -महापुराण, ५.१५ । -भविष्यपुराण, ४.११७.४ । ७. स तु न्यायोऽनतिक्रान्त्या धर्मस्यार्थसमर्जनम् । २. महापुराण, ६.५६ । ३. हरिवंशपुराण, २१.१७६ । रक्षणं वर्घनं चास्य पात्रे च विनियोजनम् ॥ ४. न्यायोपाजितवित्तकामघटन:। -महापुराण, ४२.१३ । -महापुराण, ४१.१५८ । ८. महापुराण, २६.२६ । ६. वही, १६. १८७ ।

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