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जैन पुराणों में समता
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विका के आधार पर हुमा है। यही कारण है कि जैन कियो को भी समस्त विद्याप्रो एवं कलानों की शिक्षा देने पुराणों में लोगों को अपनी-अपनी माजीविका सम्यक् ढंग की व्यवस्था की है। जिनसेन ने पिना को सम्पत्ति में से प्रतिपादित करने की व्यवस्था की गई है। यदि कोई पुत्री को बराबर भाम का अधिकारी बताया है। ऐसा नही करता था तो उसे दण्ड देने की भी व्यवस्था स्त्रियों को समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा की गई है, ताकि इससे वर्ण-संकरता को रोका जा सके।' जाता था और उनके साथ समता का व्यवहार होता था।
जैनाचार्यों ने सभी को समानता के माधार पर रखा स्त्रियो के साथ दुर्व्यवहार की प्राचार्यों ने कट पालोचना है। उन्होने सभी के साथ समान न्याय की व्यवस्था की की है। इसीलिए स्त्रियों को भी पुरुष के समान स्वर्ग है। यही कारण है कि ब्राह्मणो को जो विशेषाधिकार का अधिकार दिया है।" मिला था, उसका पतन हुमा और समानता के आधार पर जैनाचार्यों ने परिवार में पति-पत्नी मे परस्पर समासमाज का पुनर्गठन किया गया। यदि ब्राह्मण चोरी करते नता के आधार पर सौहार्दता स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण हुए पकड़ा जाता था तो उसे देश से निकाल देने की भूमिका निभायी है । जीवनरूपी नौका पति-पत्नी के सहव्यवस्था की गई थी।
योग से चलती है । किसी को कम या अधिक समझने पर उस समय कन्याओं का जन्म माता-पिता के लिए जीवन-नौका भंवर मे पड़कर दुर्गति को प्राप्त होती है। अभिशाप था, परन्तु जन पूराणों में सामाजिक समता के इसीलिए हमारे मनीषियो ने दोनो मे समानता स्थापित आधार पर उनको ऊपर उठाया गया है । इस कारण करने का प्रयास किया है। पद्मपुराण में कहा गया है कि उन्होने (जिनसेन ने) व्यवस्था की है कि कन्याओ का स्त्री-पुरुष का जोड़ा साथ ही साथ उत्पन्न होता था और जन्म प्रीति का कारण होता है। इसी प्रकार का विचार प्रायु व्यतीत करके प्रेम-बन्धन मे प्राबद्ध रहते हए साथ कालिदास ने भी व्यक्त किया है। उन्होंने अपने ग्रन्थ ही साथ मृत्यु को प्राप्त होता था। एक पोर पत्नी को कमारसम्भव मे कन्या को कुल का प्राण कहा है। जैना- पति को प्रधांगिनी" कहा गया है, तो दूसरी ओर उसे चार्यों ने पत्र एव पूत्री को समान माना है। इसीलिए पति का विश्वास-पात्र मंत्री, मित्र एव प्रिय शिष्या यताया पिता दोनों को समान रूप से पढ़ाते थे। उस समय बिना गया है। भेद भाव के लड़के और लड़कियां साथ-साथ अध्ययन किया पत्नी के बिना घर को शून्य ५ एवं जंगल बताया करते थे। जैनाचार्य जिनसेन ने लड़को के समान लड़ गया है । मनु ने तो यहाँ तक कह डाला है कि जहाँ पर १. महापुगण, ३८ ४६; पद्मपुराण, ११.२०१; हरिवश- पुण्यश्च सविभागार्हाः सम पुत्र. समाशकः । पुराण, ७.१०३-१०५; तुलनीय-विष्णुपुराण, १.६. -- महापुराण, ३८.१५४; तुलनीय --प्रावश्यकणि, ३-५; वायुपुराण, १.१६०-१६५।
२३२; उत्तराध्ययनसूत्र २, पृ० ८६ । २. हरिवशपुराण, १४.७; महापुराण, १६.२४८ । १०. हरिवंशपुराण, १६.१६; पद्मपुराण, १५.१७३ । ३. महापुराण, ७०१५५; तुलनीय-हरिवशपुराण, ११. पद्मपुराण, ८०.१४७; महापुराण, १७.१६६ । २७.२३-४१।
१२. युग्ममुत्पद्यते तत्र पल्यानां त्रयमायुपा । ४ महापुराण, ६.८३ ।
प्रेमबन्धनबद्धश्च म्रियते युगलं समम् ।। ५. भगवतशरण उपाध्याय, गुप्तकाल का सांस्कृतिक
- पद्मपुराण, ३५१। इतिहास, वाराणसी १६६६, पृ. २२१ ।
१३. तैत्तिरीयसंहिता, ६.१.८.५; ऐतरेय ब्राह्मण, १.२.५%) ६. महापुराण, २६.११८ ।
शतपथ ब्राह्मण, ५२.१.१० । ७. पद्मपुराण, २६.५.६; तुलनीप-- बृहदारण्यकोपनिषद्, १४. गहिणी सचिव: सखी मित्र: प्रिय शिष्या ललित कला६.२.१, छान्दोग्योपनिषद्, ५.३ ।
___कलाविधौ ।-रघुवंश, ८८७ । ८. महापुराण, १६.१०२ ।
१५. महाभारत, १२.१४४.४ । १६. वही १२.१४४.६ ।