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कलचुरिकालीन जैन शिल्प-सम्पदा
- डॉ. शिवकुमार नामदेव
राजनीतिक दृष्टिकोण से प्राचीन भारतीय इतिहास मे माएँ मिली है। इनमें प्रादिनाथ की प्रतिमाएं सर्वाधिक
र नरेशो का वैशिष्टयपूर्ण स्थान है। छठी शती ई० है। ये कारीतलाई, तेवर, मल्लार, रतनपूर मादि से से लेकर अठारहवी शती ई० तक इन नरेशो ने भारत के प्राप्त हुई है। उत्तर प्रथवा दक्षिण किसी न किसी भू-भाग पर शासन आदिनाथ की ६ फुट ऊँची एक प्रतिमा कातिलाई किया। भारतीय इतिहास के अतीत को गौरवयुक्त बनाने से प्राप्त हुई है। यह १०-११वी सदी ई० की है। इसे मे इन नरेशों ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इस काल एक उच्च चौकी पर पदमासन में ध्यानस्थ अवस्था में की हिन्दु बौद्ध एवं जन देवी-देवतानों तथा सुर-सुन्दरियो दिखाया गया है। दुर्भाग्य से इस प्रतिमा का मस्तक दक्षिण की मूर्तिया कलापूर्ण है।
हस्त एवं वायाँ घुटना खंडित है । हृदय पर श्रीवत्स का यद्यपि अधिकाश कलचुरि शासक शैव मतानुयायी थे, प्रतीय एवं मस्तक के पीछे प्रभावमण्डल है। प्रभावमण्डल परन्तु उन्होने एक आदर्श हिन्दू नृपति की भॉति धार्मिक के ऊपर एक सुन्दर विच है। उसके दोनों पाश्चों में स्वतंत्रता की नीति का अनुगमन किया। उनके उदार एक-एक महावतयुक्न हस्ति उत्कीर्ण है। उनके पर एवं लोकोन्मुखी दृष्टिकोण से राज्य मे हिन्दू, बौद्ध एवं दुन्दुभिक एवं हस्तियों के नीचे युगल विद्याधर हैं, जो जैन धर्म स्वतंत्र रूप मे पल्लवित हुए। यही कारण है कि नभमार्ग से पुष्पवृष्टि कर रहे हैं । विद्याधरो के नीचे दोनो जहाँ कलचुरि नरेशो द्वारा संरक्षित धर्म की मूर्तियाँ एवं पाश्वों में भगवान् के परिचारक सौधर्मेन्द्र एवं ईशानेन्द द्वाथों देवालय प्राप्त होते है वहाँ जनधर्म की प्रतिमानों का भी में चँवर लिये खडे है। बाहुल्य है।
प्रतिमा की अलंकृत चौकी पर भगवान् ऋषभनाथ विवेच्य युगीन जैन शिल्पकला से सम्बन्धित सुन्दर का लाछन वृपभ चित्रित है। वृषभ के नीचे और चौकी एवं भावयुक्त मूर्तियों मध्यप्रदेश के जबलपुर, विलासपूर,
के ठीक मध्य में धर्मचक्र तथा उसके दोनों ओर एक-एक
सिंह है। सिंहासन के दाहिने पार्व में शासनदेव गोमुख रायपुर, रीवा, शहडोल मादि जिलों से उपलब्ध हुई है।
एव वाम पार्श्व में शासनदेवी चक्रेश्वरी ललितासन मुद्रा में ये प्रतिमाएं इस बात की साक्षी है कि विवेच्य काल में इन भूभागो पर जैनधर्म का व्यापक प्रभाव था।
इसी स्थल से प्राप्त ऋषभनाथ की अन्य प्रतिमाएं कलचुरिकालीन जन प्रतिमामों को हम प्रतिमाशास्त्रीय
उपरिवणित प्रतिमा की ही माँति है । एक प्रतिमा ३ फुट अध्ययन के दृष्टिकोण से चार भागो मे विभक्त कर सकते
६ इंच ऊंची है और उसके सिंहासन पर सिंहों के जोड़े हैं-(१) तीर्थकर प्रतिमाएँ, (२) शासनदेवियों, (३) श्रुत
के साथ हस्तियों का भी एक जोड़ा प्रदर्शित किया गया है। देवियां, (४) अन्य चित्रण ।
कारीतलाई की ऋषभनाथ की ये प्रतिमाएँ श्वेत बलूये तीर्थकर प्रतिमाएँ
प्रस्तर की है। कलचरि काल की उपलब्ध तीर्थकर प्रतिमाएं प्रासन जबलपुर के हनुमानताल के किनारे स्थित दिगम्बर एवं स्थानक दोनों मुद्रामों में है। तीर्थंकरों की स्वतन्त्र जैन मंदिर में ऋषभदेव की एक प्रतीव सुन्दर प्रतिमा प्रतिमानों के अतिरिक्त द्वितीथिक प्रतिमाएं भी मिली है। सुरक्षित है। यह मूति त्रिपुरी से लाई गई है। प्रादिनाथ
प्रासन मतियां-तीर्थंकरों की प्रासन प्रतिमाओं में की यह प्रतिमा पद्मासनस्थ है । यह परिकर युक्त है तथा मादिनाथ, चन्द्रप्रभ, शांतिनाथ एवं महावीर की ही प्रति- इसको प्रभामण्डल की रेखाएं प्रति सूक्ष्म हैं। प्रभामण्डल