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चन्द्रावती की जैन प्रतिमाएं : एक परिचयात्मक सर्वेक्षण
10 श्री विनोद राय
भारतीय कला के क्षेत्र में जैन साहित्य व कला का फोटोग्राफ एवं उन पर क्रमांक डालने का कार्य राजस्थान प्रमुख स्थान है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जैन पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, जयपुर द्वारा पूर्ण हो यति व विद्वान् प्रारम्भ से ही भारतीय कला व संस्कृति चुका है। यहां पर शव, शाक्त, वैष्णव, जन प्रतिमायें को पाषाणों, चित्रकला व साहित्य मे मूर्त रूप दे कर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हुई हैं। अभी और उत्खनन की परिष्कृत समाज की रचना मे अभूतपूर्व योगदान किये हैं। प्रावश्यकता है जिससे अनेक खण्डहरों मे दबी हुई प्रतिभारत के प्रत्येक क्षेत्र, ग्राम, तहसील व जिलेवार सर्वेक्षण माएँ अज्ञान भूगर्भ से बाहर अावेगी जो जैन वास्तुकला, की मावश्यकता है जिससे कि जैन संस्कृति व कला के मूर्तिकला के प्रभतपूर्व नमुने होगे। जैन ग्रंथ 'तीर्थमाला' प्रज्ञात मार्ग में समा रहे नवीनतम स्रोतों--शिलालेख, के अनुसार यहाँ पर १८०० जैन मन्दिर थे । चन्द्रावती के ताम्रपत्र, साहित्य का पता लगाया जा सके। इससे न सम्बन्ध में कतिपय विद्वानो ने वहुत ही शोधपूर्ण ऐतिकेवल जैन कला, साहित्य व संस्कृति को ही जीवन प्राप्त हासिक सामग्री का संकलन व सम्पादन किया है जिसमे होगा बल्कि मारतीय कला व साहित्य के इतिहास मे कर्नल टाड, गोरीशकर हीराचन्द्र प्रोझा, एच. पी. भी नवीन पायाम जुड़ेंगे । यद्यपि राजस्थान सरकार अपने शास्त्री, यू० पी० शाह, दशरथ शर्मा, ठाकुर भगत सिंह, विशेष प्रयासों से इस दिशा मे किये जा रहे कार्यों को श्री विजय शक र श्रीवास्तव इत्यादि के नाम प्रमख है। प्रोत्साहन दे रही है तथा राजस्थान के प्रत्येक संग्रहालय में यहाँ पर कतिपय जैन प्रतिमानो का परिचय उदाहरणार्थ महावीर कक्ष को स्थापना की गई है, लेकिन फिर भी इस दिया जा रहा है। प्राशा है कि शोध विद्यार्थी इस मोर प्रकार के सांस्कृतिक इतिहास व पुरातत्त्व से सम्बन्धित विशेष ध्यान देंगे । ये प्रतिमायें मध्य काल की है। कार्यों के सर्वेक्षण हेतु एक विशेष प्रकोष्ठ की स्थापना की १. पंजीयन क्रमाक सी.६ जैन चतुर्विशति तीर्थकर जानी चाहिए और इस हेतु एक मण्डल की स्थापना होनी -- इस प्रतिमा मे चौबीस तीर्थङ्करों को उत्कीर्ण किया चाहिए तथा एक निश्चित धनराशि की भी व्यवस्था की गया है। यह ११वी-१२वी शताब्दी की है। सफेद संगजानी चाहिए। इससे शोधार्थी प्रोत्साहित होंगे मौर शोध मरमर से निर्मित इस प्रतिमा का साइज २४ इंच १५ के क्षेत्र में नये-नये अध्याय जुडते रहेंगे। विश्व के कला इच है । इतिहास मे जैन वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला एवं
२. पंजीयन क्रमाक सी-७६, मस्तक विहीन जैन साहित्य का प्रमुख स्थान है।
तीर्थकर प्रतिमा- इसके वक्ष पर श्रीवत्स चिह्न विद्यमान
है। इसकी पहचान शीतलनाथ से की जाती है। यह लेखक ई. सन् १९६८ से १९७२ तक राजकीय सफेद संगमरमर की है। इसका साइज २२ इंच ४२४ संग्रहालय, माउण्ट माबू में कार्यरत रहा । आबू रोड रेलवे इंच है । निगेटिव नम्बर ४६७२ (पी-२)। स्टेशन से ६ कि.मी. दूर भाब रोड-महमदाबाद रेलवे लाइन ३. पजीयन क्रमांक सी-७८, जैन प्रतिमा का सिंहापर स्थित जिला सिरोही, तहसील पाबू रोड में चन्द्रावती सन-सिंहासन पर सिंह व गज अंकित है। इस पर नामक प्राचीन ग्राम है जिसके खण्डहर प्राज भी विद्यमान ११वी-१२वी शताब्दी का देवनागरी लिपि में लेख भी है। खण्डहरों में स्थित प्रतिमामों की सूची बनाने का उत्कीर्ण है। इसका साइज १६ इच X१३ इच है। निगेसौभाग्य मुझे प्राप्त हुमा है। अधिकाश प्रतिमामों के टिव नम्बर ४६७० (पी २)।