________________
भारतीय मूर्ति शिल्प की अद्भुत कृति कुण्डलपुर के बड़े बाबा : भगवान आदिनाथ
। डा० भागचन्द 'भागेन्दु', दमोह
कंडलपुर मध्यप्रदेश के दमोह जिले में अवस्थित है। बडे बाबा : यह मध्य रेलवे के बीना-कटनी मार्ग के दमोह स्टेशन से कुण्डलपुर के मन्दिर मख्या ११ में अवस्थित १२ फूट ईशान कोण मे ३५ किलोमीटर दमोह-पटेरा-कुंडलपुर मार्ग ६ इंच ऊची तथा ११ फुट ३ इच चोडी विशाल पद्मासन पर स्थित है। कुण्डलपुर समुद्री सतह से तीन हजार फीट मूर्ति इग क्षेत्र की गांधिक प्रसिद्ध प्रौर दर्शको के मन को मंत्री पर्वत श्रेणियों में घिरा हुआ है। यहां की पर्वत- गहज ही मोह लेने वालो निमिति है। इस मूति का निर्माण धेोणियां कुण्डलाकार है, कदाचिन् इसलिए गह स्थान देशी भूरे रंग के पापाण से हुग्रा है । इस मूर्ति के मुख पर "कुण्डलपुर" कहलाया।
सौम्यता, भव्यता और दिव्य स्मिति है। यदि हम इम प्रकृति सूपमा सम्पन्न, उत्तर भारत की महनीय मूर्ति को ध्यानपूर्वक कुछ समय तक देखते रहे तो इसके तीर्थस्थली कुण्डलपुर का महत्व धार्मिक और मास्कृतिक मुख पर अद्भुत लावण, अलोकिक तेजस्विता और दिव्य दृष्टि से तो है ही, कला और पुरातत्व की दृष्टि से भी आकर्षण के दर्शन प्राप्त करेंगे। मूर्ति के वक्षस्थल पर उल्लेखनीय है। भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से श्रीवत्स का चिन्ह सुशोभित है। कन्धो पर जटामो की दोजैन संस्कृति, कला तथा पुरातत्व के विकास में कुण्डलपुर दो लटें दोनो ओर लटक रही है। मूर्ति के सिंहासन के का योगदान अत्यन्त भव्य और प्रशस्थ है। यहाँ ईसा को नीचे दो सिह उत्कीर्ण है । ये सिंह ग्रासन से सम्बन्वित है, छठी शताब्दी में लेकर परवर्ती सोलहवी-सत्रहवी शताब्दी तीर्थ कर लाछन नही है । मूर्ति के पादपीठ के नीचे गोमुख तक का मूतिशिल्प पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है। यक्ष और चक्रेश्वरी यशी अंकित है। यहां कुल ६० जैन मन्दिर है-४० पर्वत के ऊपर और इस मूति को प्राग जनता में भगवान महावीर' की
० अधित्यका मे । अधित्यका के मन्दिरों और पर्वतमाला मूर्ति के रूप मान्यता प्राप्त है। यह धारणा शताब्दियों के बीचों-बीच निर्मल जल से भरा "वर्धमान सागर" से चली आ रही है, किन्तु नवीन शोध-मोज के प्राधार नामक विशाल सरोवर है।
पर वास्तव में यह मूर्ति जैन धर्म के प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभयद्यपि कुण्डलपुर में मूर्ति और वस्तुशिल्प के अनेक नाथ की प्रमाणित होती है। बेजोड़ नमूने उपलब्ध है, तथापि इन पक्तियों मे हम कुंडल- मैंने अपने विगत कुण्डलपुर प्रवाम मे शोध मोज की पुर की उस भव्य और सौम्य मूर्ति से प्रापका परिचय दष्टि से 'बड़े वाता' को इग सातिशय मनोज मूर्ति के सूक्ष्म करा रहे है, जो छठवीं शताब्दी की निमिति ताहे हो, रीति म पुनः पून. दर्शन किय पोर उन सभी प्राचारों पर सौन्दर्य की सृष्टि तथा विशालता की दृष्टि में भारतीय गम्भीरतापूर्वक विचार किया जिनके कारण बडे बाबा को पद्मासन मूर्तिकला के इतिहास मे अनुपम भी है। यह मूर्ति यह मूनि महावीर स्वामी के रूप में विख्यात हुई, तथा "बड़े बाबा" के नाम से सम्बोधित होती है। कुछ व्यक्तियों वस्तुस्थिति, प्रतिमाविज्ञान, पुगतात्त्विक माक्ष्य प्रादि के की भ्रामक धारणा है कि यह मूर्ति श्री महावीर स्वामी प्राधार पर मुझे उन्हें ऋषभनाथ' का मूर्ति स्वीकार करने की है । इसीलिए वस्तु-स्थिति पर नये सिरे से पूर्ण विचार मे जो औचित्य प्रतीत हुआ है, उग सम्पूर्ण चिन्तन के कर इस निबन्ध में तथ्य प्रस्तुत किये जा रहे है। निष्कर्ष अनिखित पक्तियों में प्रस्तुत है:--