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युग के भामाशाह
0 श्री लक्ष्मीचन्द्र 'सरोज', जावरा
युग के भामाशाह एक तुम, साह शान्ति प्रसाद । देश तथा समाज यह कह कर, तुम्हे करेगा याद ।
नोबल पुरस्कार से कुछ कम, प्रर्थ भावमय नाद ।
ज्ञानपीठ का पुरस्कार सच, मानवता का वाद । सत्य रमापति सफल हए तुम, कर निधि का उपयोग। लक्ष्मी-सरस्वती का तुम में, था मणि-कांचन योग ।।
श्रीमानों प्रो विद्वानों के, केन्द्रविन्दु तुम शान्ति ।
सामाजिक प्रो धार्मिक मानव, केन्द्रविन्दु तुम शान्ति ।। जीवन के उत्थान-पतन में, रखा न हर्ष-विषाद । एक मंच, ध्वज, प्रतीक, पागम, लेकर बने प्रसाद ।।
जनगण मन के माने अनुपम, अनभिषिक्त सम्राट् ।
संसति-जीवन-कृतित्व तेरा, था बहुमूल्य विराट ।। व्यापारी विद्वान् नेक तुम, करके नहीं विवाद । जिज्ञासू बन सत्य शोधते, करने धर्म-निनाद ।।
जैन धर्म जन धर्म बने मो, श्रमण संस्कृति-भाव ।
भले जग-जन ऋजनाल, भव-भ्रमण-संस्कृति-गव । लौकिक होकर सत्य अलौकिक, अनपम अमित ललाम । कार्य-संस्थानों से रवि-शशि, सदश अमर सुनाम ।।
तेरे जीवन को गाथा का, जो सुन ले सवाद ।
निरभिमान हे परोपकारी ! पढ़ भूले अवसाद ।। साहस-शोर्य बुद्धि-विधा ले, मतिशय परम उदार . अपने जीवन से सिखलाया, सुखद समाज-सुधार ॥
जन जगत के अनुपम राजा, किए सहस्रों काम ।
श्रद्धांजलि लो कहें सहस्रों, शत-शत बार प्रणाम ॥ मर कर भी तुम अमर हो गए, साह शान्ति प्रसाद । अपने यश-शरीर से जीवित, साहू शान्तिप्रसाद ।।
बजाज खाना, जावरा (म०प्र०)