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४४ वर्ष ३१, कि० ३-४
अनेकान्त
गौरवशाली कार्य सम्पन्न हुमा । साहूजी की मान्तरिक इच्छा
देखा और उन्हें जो सुझाव देना था देते गए। तनसुख थी कि समस्त जैन समाज एक झडे के नीचे पाए।
रायजी समाज के कर्मठ कार्यकर्ता थे जिन्होने विविध उम्होंने इस कार्य में प्रथक परिश्रम किया और दिगम्बर प्रकार से समाज की सेवा की। साहूजी के वे दाहिने जैन महासमिति का निर्माण किया गया।
हाथ थे । सैकड़ों कार्यकर्ता, या जिन्हे उनसे प्रोत्साहन महासमिति का दायित्व बहुत बड़ा है। उसके द्वारा मिलता था उनके बिना प्रभाव का अनुभव करने लगे। प्रषिक काम हो, सभी की प्रान्तरिक प्रेरण। इस बात में साहजी मे प्रात्म-कल्याण की महती भावना है। इसके कार्यकर्तामों का ध्यान एकांगी न हो; उनकी जागी। वे कई बार मुनि श्री शान्ति सागर जी सर्वाङ्गीण बुष्टि हो। यद्यपि राजनैतिक अधिकार हम महाराज के पास दर्शनार्थ पहुंचे और दीक्षा पालग से नहीं चाहते, पर इतना अवश्य चाहते हैं कि हमारी ग्रहण करने की अभिलाषा प्रकट की। प्राचीन काल धार्मिक संस्कतिके विकास में किसी प्रकार की बाघा न मे अमोघवर्ष जैसे प्रतापी राजा राज्यस्याग कर दीक्षा प्राए । समस्त जैन शिक्षण संस्थानो मे धर्म शिक्षा दी अंगीकार करते और स्वपर कल्याण में दत्तचित्त रहते थे। जातोयों को सुरक्षा हो। आसपास का वातावरण उनके द्वारा जैन शासन की महती प्रभावना होने वाली अहिंसात्मक बना रहे इसी प्रकार जैन समाज भारत के गाव. थी। साहजी के मन मे भोगों से उदासो और प्रात्मोद्धार गांव में फैला है। हमारा उनका सम्पर्क टूट गया न तो। की तीव्र माकांक्षा बलवती हुई। वे जानते थे कि हमारे उन्हें केन्द्र से प्रकाश मिलता है और न उनकी कठिनाइयो पूर्वज ऋषियो ने जो ज्ञाननिधि हमे सौपी है, कुछ लोग और समस्यामों को हल करने की समस्या हम मिल बैठ उससे न तो स्वयं लाभ उठाते है पौरन दूसरों को उठाने देते कर सलझाते है। इसलिए दूरी बढ़ती जाती है और मामी- है; क्यो न मै वीर शासन के सर्वोदय सिद्धान्तो का अधिक पता कम होती जाती है। प्रतः प्रावश्यक है कि प्रान्तो मे से अधिक प्रचार करू । वे अस्वस्थ हो गए । सर गगाराम दासमिति के कार्यालय हो और कतिपय विद्वान उपदेशक हास्पिटल में जब उन्हें देखने गया तो उनकी शारीरिक कसे जायें जो देश की धर्मप्राण जनता में धार्मिक स्थिति अच्छी न थी। चिकित्सा चल रही थी। परन्त
netm शातकोian Hi दुर्भाग्य एव काल के ऋर हाथो से समाज की अनुपम निधि देने की व्यवस्था प्रादि कार्यों में रुचि जगावें। मिशनरी ढग से युवको को कार्य करने की प्रेरणा दें। साहजी इस वे सच्चे अर्थों में भामाशाह थे। उनकी जितनी बात से अत्यधिक खिन्न थे कि नवयुवको मे उज्ज्वल प्रशंसा की जाय थोड़ी है। ऐसी दिव्य विभतियां कभीसंस्कार कम होते जाते है। उनमे किस प्रकार चरित्र कभी अवतरित होती है जिनके मन मे यह भावना होती निर्माण की सुरुचि जागृत हो, यह कार्य उत्तम शैली से दी गई धर्म शिक्षा से ही सम्भव है।
न तन सेवा न मन सेवा, न जीवन और धन सेवा । उनमे अपने कार्यकर्तामो के प्रति बड़ा स्नेह था। वे
मुझे है इष्ट जन सेवा, सदा सच्ची भुवन सेवा।।
मुझ है। श्री तनसुखराय स्मृति ग्रथ समिति के अध्यक्ष थे और मैं .
हमे विश्वास है कि उनके पुत्र रत्न उनके पदचिह्नों
पर चलेंगे। उसका संयोजक । उन्होने सारे लेख मंगवाकर एक-एक लेख
पाडव नगर, पटपड़गज, दिल्ली 000
लूट ली गई।