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प्राधुनिक खारवेल
0 श्री बिशन चन्द जैन, शिकारपुर
श्री साह शान्ति प्रसाद जी जैन से मेरा बहुत सुपरिचय उ० प्र० मे एक ऐसे प्रतिष्ठित जैन परिवार में हुअा था जो था। जिस समय मैं सन् 1920 मे लगभग 35 वर्ष तक देश की भलाई और अपनी उदारता के लिये विख्यात था। बराबर “जैन मित्र मंडल देहली" का सभामद् व वे श्री साहू दीवानचन्द जी जैन के तेजस्वी व होनहार पुत्र मंत्री रह कर हर प्रकार से देश-विदेशों में जैन धर्म थे। उनकी माता का नाम श्रीमती मूर्ति देवी था। साह प्रचार का कार्य कर रहा था व भा० दि. जैन परिपद शान्तिप्रसाद जी जैन ने नजीबाबाद में अपनी शुरू की प्रादि अन्य जैन संस्थानों का भी सभासद और मंत्री शिक्षा पूरी करने के बाद आगरा विश्वविद्यालय से रह कर धार्मिक और सामाजिक कार्य कर रहा था, बी० एस-सी० की परीक्षा प्रथम श्रेणी मे पास कर उन्होने उस समय रिटायर होने के बाद दिनांक 14 मई, 1959 साहित्यिक, धार्मिक ग्रादि पुस्तकों का अध्ययन कर योग्यता को साहजी के दफ्तर "साहू सीमेट सरविसेज़, नई देहली' प्राप्त की। उन्होने अपनी सूझ-बूझ से व्यापार में उन्नति में मुझे प्रोवरसियर के पद पर नियुक्त किया गया और करने के विचार से विकसित देशों का दौरा किया। वहाँ दिनाक 5 नवम्बर, 1959 में मार्च, 1969 (10 वर्ष) तक जाकर उन्होंने भारत में बिकने वाली चीजों तथा वहाँ की साहू जी की पोर से म०प्र०, उ० प्र० और राजस्थान चीनी, कागज, वनस्पति, पटसन, रसायन, खाद, सीमेट के कुछ प्राचीन दि जेन तीर्थक्षेत्रो के मदिरो के जीर्णोद्धार प्रादि की फैक्ट्रियों का भी अध्ययन किया। भारत मे के कार्यों तथा “साह जैन संग्रहालय" प्रादि के निमःण पाकर उन्होंने अपनी सूझबूभ. से भारत के कुछ शहरो मे कार्य को, नई देहलो मे 6 सरदार पटेल रोड पर साहनी रोहतास इंडस्ट्रीज, जूट मिल्स, साहू केमिकल, रमायन की कोठी और नजीबाबाद मे साहूजी के भवन के निर्माण खाद, श्री कृष्णा ज्ञान उदय, चीनी, अशोक सीमेट, अशोक प्रादि के कार्यों को अपनी देखरेख में कराता रहा । म स्टील, दी जयपुर उद्योग लि०, बगाल कोट सीमेंट, कारण साहू जी के प्रति मेरी और अधिक जानकारी बढ़ गई, कोलाईज कम्पनी नाम की फैक्ट्रियो का निर्माण किया प्रौर उनसे मेरा बराबर पत्र-व्यवहार होता रहता था। और उनके द्वारा चीजें तैयार करा-करा कर उनको मार्कीट
श्री साह शान्ति प्रसाद जी जैन एक माने हुए नागी- मे पहुंचाया तथा इस प्रकार विपुल धन पैदा किया, जिससे गिरामी, भारतवर्ष की दि. जैन समाज के धार्मिक व्यक्ति वह उद्योगपति बड़े बने । यह कोई मामूली काम न था थे। वे जैनियो के सरताज थे। उनका 66 वर्ष की आयु हर एक व्यक्ति के बूते का वाम न था। इससे उन्होने में ता0 22 अक्तूबर, 1977 (गुरुवार) को नई देहली में अपने को और अपने परिवार को ऊंचा उठाते हुए अपना इस नाशवान संसार से निधन हो गया । जिस समय उनके और अपने पुरुखों का नाम संसार में रोशन किया। निधन के समाचार समाचार पत्रों (अग्य वारों) मे पढे । ये, खारवेल अपनी मूझ-बूझ से उन्नति करते-करते महासंसार के कोने-कोने मे शोक की लहरे फैल गई । हृदय को राजा खारवेल की पदवी प्राप्त कर गरीब परवर, दयालु प्रत्यन्त दुःख हमा और उनके प्रेम तथा उनके कार्यों की कहलाये तथा अपनी 35 हजार सेना प्रादि की तकलीफो बराबर याद माती रही । स्थान-स्थानपर उनके निधन पर का ध्यान रखते हुये उनकी सहायता करते रहे और नवीनशोक सभाये होने लगी।
नवीन मदिरो के निर्माण कराने की अपेक्षा वे पुराने उनका जन्म सन 1911 ई. मे नजीवावाद (विजनोर) पुरखो के निर्माण कराये हुये प्राचीन मदिरो के जीर्णो