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भानपुरा संग्रहालय की जैन यक्ष-यक्षिणी प्रतिमाएँ
0 श्री रवीन्द्र भारद्वाज, एम. ए., उज्जैन
मंदसौर जिले को भानपुरा तहसील अपने अन्दर के निचले भाग में मान प्रश्वारोही दर्शाये गये हैं। प्राचीन शिल्प वैभव को समेटे हुए है।
एक अन्य अम्बिका की प्रतिमा हिग्लाजगढ़ से प्राप्त परमारो से राज्य में जिन छोटे-छोटे और प्रार्चालक हुई है । यह भानपुरा सग्रहालय की शिल्प कृतियों में से महत्त्व के कलाकेन्द्रो का विकास हुआ, उनमे मोड़ी एव एक है । हिग्लाजगढ़ का विशिष्ट स्थान है । मोटी तो भानपुरा से
इम क्षेत्र की प्रचिलिक शिल्प विशेषता यह रही है कि १२ कि. मी० पश्चिम में स्थित था और हिंगलाजगढ़ २२
प्रतिमाएं लघु स्तम्भो से निर्मित रथिका में बनाई गई है। कि. मी. की दूरी पर उत्तर पश्चिम में । यहाँ पश्चिमी अम्बिका की प्रतिमा भी रथिका में स्थित है जो कि लघमालवा शैली विकसित एव परिष्कृत हुई।
स्तम्मो के द्वारा निर्मित है। कार कलात्मक चैत्य परमार काल मे शव एव वैष्णव सम्प्रदायों के अतिरिक्त प्रलकरण है। यहाँ जैन धर्म का भी व्यापक प्रसार हमा। इस क्षेत्र के
किरीट मकुटधारिणी अम्बिका मव्यललितासन मे परमार कालीन सधारा, केथुली, कवना और नीमथर" ग्रामन क है। दाहिना हम्न पाम्रलुम्बि युक्त तथा वाम के जैन मन्दिर इसके प्रमाण है।
शिशु को सहारा दिये है। अन्य ब्राह्मण प्रतिमानो के परमारो के समय की प्राचीनतम अभिलिखित जैन सदृश ही अम्बिका की मुखाकृति गोलाई लिए सौम्य मद्रा यक्षिणी प्रच्युता को प्रतिमा सवत १०७५ (१०१८ ई.) में है। उभरी हुई ठुड्डी तथा पलको क अकन मे नुकीलायही हिंगलाजगढ़ से प्राप्त हुई है।
पन है। प्रतिमा के प्रोठ, वक्षस्थल तथा कटिप्रदेश के भानपुरा पुरातत्त्व सग्रहालय में यहा को जैन-मूर्ति
अकन में सुरुचिपूर्ण मृदुता, लावण्य और मासलता है । शिल्प धरोहर सुरक्षित है। पुरातत्त्व सग्राहलय मे हिंग
उन्नत और कठिन पयोधर पर कुचबन्धों का पालेखन लाजगढ को यक्ष-यक्षिणी प्रतिमाएं परमारकाल की कला
किया गया है। प्रतिमा का अनकरण दृष्टव्य है-किरीट का पूर्ण प्रतिनिधित्व करती है।
मुकुट, कुण्डल, ग्रेवेयक, स्तन पर मणिमाला, स्तनों के इनमे प्रमुख है परमारकालीन गोमेध यक्ष एव
मध्य झलता हिक्कामूत्र, स्कन्धमाला, केयूर, कटिसूत्र तथा अम्बिका की मूर्ति, जो कि भद्रपीठ पर प्रासनस्थ है। इस
मखला और पैर नपुरो से अलकृत है। प्रतिमा के ऊपरी प्रतिमा का प्राकार-ऊचाई ८२ से० मो०, चौड़ाई ४६
भाग में 'पासनक तीर्थ कर' प्रतिमा है। पाम्र वृक्ष का से० मी० तथा मोटाई ८ से० मा० है। गोमेव यक्ष तथा
प्रभामण्डल और नीचे अम्बिका का वाहन सिंह का अंकन अम्बिका क्रमश. वाम तथा सव्यललितासन में है। प्रतिमा है । यह प्रतिभा लाल सिकताश्म की बनी है। का प्रभामण्डल पाम्रवृक्ष का तथा नीच इनका वाहन इस प्रकार, भानपुरा क्षेत्र परमारकालीन जैन शिल्प सिह का अकन है। प्रतिमा के ऊपर प्रासनक मद्राम को दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। On7 पाश्वनाथ (?) तथा दोनों मोर स्थानक तीर्थंकर है।
पुरातत्त्व विभाग, विक्रम प्रतिमा के पार्श्व मे चॅवरघारी पुरुष का अकन है । प्रतिमा
विश्वविद्यालय, उज्जैन (म० प्र०) १. श्री गर्ग, प्रार. एस.-मोड़ी-मण्डल का शिल्प वैभव. ४. वही, पृ० ८३ (प्रोग्रेसिव रिपोर्ट माफ मार्केलाजिकल सर्वे, वेस्टर्न ५ भारद्वाज, रवीन्द्र, भानपुरा का अप्रकाशित जैन शिल्प, सकिल-वर्ष १९२०)।
वीरवाणी, वर्ष ३१, अक ६, पृ० १४६ । २. PRAS. WC,. P.८८-६१
६. श्रीगर्ग-मोड़ी-मण्डल का शिल्पवैभव-टंकितप्रति३. वही, पृ० ६२
प्रकाशनाधीन ।