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फुलान की अप्रकाशित जैन प्रतिमाएं
डा. सुरेन्द्र कुमार प्रार्य, उज्जैन
उज्जैन से २ विलो मीटर पश्चिम दिशा में नागदा- ५ फुट ५ इंच चौडा है। पादपीठ पर संवत ११७८ इदौर बस मार्ग पर फुलान ग्राम स्थित है। यह उज्जैन का शिलालेख है । लेख की ४ पंक्तियां हैं पर इतना भग्न जिले की बड़मगर तहसील में प्राता है। यहाँ पर विक्रम है कि केवल संवत ११७८ ही पढ़ा जा सकता है। पादविश्वविद्यालय, उज्जैन व मध्य प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग पीठ पर शेर बना हुआ है । अतः शेर-वाहन वाली यह के सयुस. तत्वावधान में पुरातात्विक सर्वेक्षण किया गया है। महावीर प्रतिमा हो सकती है। यह सर्वेक्षण दंगवाड़ा-उत्खनन वर्ष १६७६ के कार्य का ही एक अन्य खंडित प्रतिमा हनुमान मन्दिर के पास एक अंग था। डा० वि० श्री वाव णकर के मार्गदर्शन में प्रोटले पर रग्बी हुई है जो पार्श्वनाथ की खड्गासन में है यह सर्वेक्षण किया यगा था: नरसिंगा ग्राम से २ कि० मी० और निश्चय ही १०वी शताब्दी के शिल्प में निर्मित है। पूर्व की ओर फलान ग्राम स्थित है। यहा पर मौर्यकाल, तीसरी प्रतिमा माताजो के प्रोटले (चबतरे) पर नक युग व गुप्तकाल के शेष मिलते है और टोल पर बसा जडीई है । इसमें जैन देवी पद्मावती गरुड़वाहन पर हुप्रा जो प्राचीन ग्राम का स्थान है, वह सब उजाड़ है। प्रासीन है. व ऊपर तीर्थकर प्रतिमा पद्मासन में है। देव. इस टीले पर सर्वेक्षण के दौरान तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व गण रक्ष, किन्नर व वाद्यवाद हर्ष से पुष्प वर्षा कर रहे की ताम्र पाहत मुद्राएं मिली है। साथ ही जीवदामन व हैं। रद्रदायन की व ताम्र मद्राएं मिली है। यह एक सम्पन्न चौथी व पाचवी तीर्थकर प्रतिमायें भग्न है व केवल
थल था जहां पर मौर्य युग से शक काल नक पर्याप्त पादपीठ ही शेष है। एक अन्य प्रतिमा पर चरणचिह्न ही जनावास था। यही पर जन प्रतिभाए मिली है जिनका शेष है और सब भग्न है । फलानग्राग में यह जन प्रतिभायें विवरण निम्नलिखित है :
स्पष्ट करती है कि यहा पर परमार काल में कोई विशाल ग्राम को घेरता हा एक भेर है, नाला उसके किनारे पर देवालय रहा होगा। परमार काल की एक तीर्थक र प्रतिमा मिली है जिसका शीर्ष
२२, भक्त नगर, दशहरा मैदान, भग्न है। प्रतिमा पद्मासन में है और माकार ६ फुट ऊंचा
उज्जैन-४५६००१ 000
(पृष्ठ ७६ का शेषांश) जबकि जैनधर्मानुसार अहिंसा को परमधर्म माना गया इसमे जैन धर्मावलम्बी अविवर्ष ने रामगुप्त वी पालोचना है इसलिए रामगुप्त ने हिसा से बचने हेतु अथवा यू कहिए न करके उमके स्थान पर द्वितीय चन्द्रगुप्त के प्रति घृणा कि जैन धर्म के सिद्धान्तों की रक्षा हेतु अपनी पत्नी ध्रव प्रकट की है। यहां हम डा० उदयनारायण राय के मत से देवी को शकाधिपति को देना स्वीकार किया था। अतः पूर्णतया सहमत है कि जिस प्रकार उत्तरकाल मे बुद्धगुप्त, हमे रामगुप्त को एक कायर नरेश नही अपितु कट्टर जैन बालादिस्य एव वञ्च प्रादि नरेशी न बौद्धधर्म का अनुसरण धर्मावलम्बी नरेश के रूप में स्वीकार करना चाहिए। किया उमी भाति पूर्वकाल मे समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी रामगुप्त के जैन होने की पुष्टि का सूक्ष्म सकेत राष्ट्रकूट रामगुप्त ने जैनधर्म का अवलम्बन कर लिया था।" नरेश अमोघवर्ष के सजन ताम्रपत्र में भी मिलता है। इतिहास विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय, जोधपुर (राज.)
000 १३. गुप्त, पूर्वो० पृ. ४६ । १४. राम, उदयनारायण-गुप्त सम्राट् और उनका काल, पृ० १७८ ।