Book Title: Anekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 133
________________ ५४, वर्ष ३१, कि० ३-४ सहयोग से व जैन समाज की हर प्रकार की कोशिशों द्रोणगिर (म० प्र०), पपोरा, पाहार (टीकमगढ़) और से झांसी भ्यायालय ने अपराधियो को सजा के प्रादेश चित्तौडगढ़ किले का दि० जैन मंदिर कुल 9 क्षेत्रों का दिये। जीर्णोद्धार, यात्रियों की सुविधा के लिये नवीन सड़कों व साहजी ने म०प्र० व उ० प्र०के प्राचीन तीर्थक्षेत्रों देवगढ़ में मूर्तियो की सुरक्षा के लिये एक नवीन साह के मंदिरों के जीर्णोद्धार के कार्यों को कार्यान्वित जन संग्रहालय का निर्माण कराने की स्वीकृति दी। सब करने के वास्ते प्रपने दफ्तर "साह सीमेंट सविसेज", उपरोक्त क्षेत्रो का कार्य प्रोग्राम के मुताबिक श्री विशनचंद नई देहली से दिनाक 5 नवम्बर, 1959 ई. को श्री जैन प्रोवरसियर की देखरेख में कराया गया। ये सब कार्य मार० सी० पारिख ऐडीशनल चीफ इंजीनियर, श्री सन् 1960 से मार्च, सन् 1968 तक पूरे हुये। सब कार्यों बिशनचंद जेन प्रोवरसियर तथा श्री उलाल (फोटोग्राफर में लगभग 4 लाख रुपये व्यय हुये। टाईम्स माफ इंडिया नई देहली) से एक टेक्निकल साहूजी की यह भी योजना थी कि मूतियो की सुरक्षा पार्टी को प्राचीन क्षेत्रो का निरीक्षण और सर्वेक्षण करने के बास्ते एक-एक साहू जैन संग्रहालय ललितपुर, चन्देरी, के वास्ते ललितपुर भेजा । टेक्निकल पार्टी ने लगभग 11 खनियाधाना और खजुराहो मे भी निर्माण कराया जाये । महीने में बडी लगन के साथ रातदिन एक करके 51 लेकिन यह कार्य इस कारण से न हो सका कि इन क्षेत्रों प्राचीन क्षेत्रों का निरीक्षण और सर्वेक्षण किया । सब चीजो के सरकारी अधिकारियों ने क्षेत्रों को जैन समाज को वहाँ को नोट किया नको बनाये, जीर्णोद्धार व नवीन साह जैन की बिखरी हुई प्राचीन मूर्तियों को उठाने की इजाजत नहीं संग्रहालय प्रादि कार्यों की लागत के तख मीने (Estimates) दी। इसके अतिरिक्त, साहू जी इसी प्रकार दूसरे दि. बनाये, हर क्षे की मूर्तियों प्रादि के फोटो तैयार कराकर जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार के कार्यों के वास्ते दान देते हर क्षेत्र के अलग-अलग एलबम तैयार करवाये तथा रहते थे । समय-समय पर अपनी मौजूदगी मे देहली क्षेत्रों की रंगीन फिल्म तैयार करवाई जिनको साहूजी ने के चांदनी चौक के लाल किले के सामने के प्राचीन जैन बहुत पसन्द किया। इन फिल्मो को नई देहली मे मंदिर (जो लाल मदिर या उर्दू के जैन मदिर के नाम लाल मंदिर और पपोरा क्षेत्र प्रादि स्थानो पर दिखाया से प्रसिद्ध है) उसके लिये, हिक्षेत्र के जैन मंदिरों के लिये गया। तथा प्रयोध्याजी के जैन मंदिर भादि के जीर्णोद्धार के __उपरोक्त क्षेत्रों का निरीक्षण और सर्वेक्षण करने में लिये लाखों रुपये दान मे देते रहते थे जिससे वह पुण्य बडी-बड़ी कठिनाइयां उठानी पड़ी जबकि तमाम क्षेत्रो के के भागी बने। साहू जी जैनियो के सरताज थे। उनमे बहुत मार्ग व क्षेत्र भयानक जंगलों, वनो, झाडियो, नदी-नालों, से गुण थे। उनके गुणों का प्रादर करते हुये दिसम्बर, सन् पहाडों, खूखार जानवरों, (शेर ग्रादि जानवरो) और डाकुनों 1970 मे श्रीमान साहू शाति प्रसाद जो जन को देहली मे से घिरे हये थे तथा घोडो पर जाने-माने के मार्ग बड़े ही एक भव्य समारोह मे धावक-शिरोमणि की पदवी दी खराब, भयानक और खतरनाक थे। ऐसे स्थानो पर जाना गई । साहू जी का जैसा नाम था वैसे ही उनमे गुण भी थे। मोर पाना कोई मामूली काम न था। मौत और जिन्दगी वे शांतस्वभावी थे। जब कभी वह अपने नवीन भवन का का सवाल था। कई बार देवगढ़, पचराई, थोवनजी मोर निरीक्षण करते थे अकेले ही शाति के साथ करते थे और नैनागिर मादि क्षेत्रों पर खतरे की खबर मिलने पर पास उसकी अच्छाई और बुराई को देखते थे। के गाँवो मे भागना पड़ा था। भगवान के नाम और जिस प्रकार अक्सर बड़े-बड़े धनवान् कानों के कच्चे णमकार मत्र के जाप के द्वारा सब कार्य सिद्ध हुये। होते है, साहू जी कानो के कच्चे न थे । वह तो सच्चे प्रेमी उपरोक्त क्षेत्रो की सब रिपोर्ट साहूजी के सम्मुख रक्खी। और उसूलों के पाबन्द थे। जो व्यक्ति उनसे किसी की उन्होने कूल क्षेत्रों में से देवगढ, बानपुर (उ० प्र०), बुराई या चुगली करता था वे उस चुगलखोर और शिकाकन्धार हिल (घदेरी), पचराई (खनियाधाना), बोवनी, यत करने वाले की बातों का यकीन नही करते थे, जब

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