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७२, वर्ष ३१, कि० ३.४
सकलकीति के सदश साहित्य-सजन में अग्रणी रहे। विविध चरित्र काव्य परक-४. अजित जिनेश्वर रास, ५. हनुविधामों मे रचित इनका विशाल साहित्य इन्हें सरस्वती मंत राम, ६. जीवंधर रास, ७. जंबूस्वामी रास, का वरद पुत्र सिद्ध करता है। प्राकृत, सस्कृत, गुजर.ती ८ यशोधर रास, ९ अम्बिकानो रास, १० सूकुमाल एवं राजस्थानी प्रादि भाषामों पर इनका प्रपना अषि
स्वामी रास, ११. गौतम स्वामी रास, १२. श्रेणिक रास, कार था तथापि लोकभाषा मरु गुर्जर से इनका विशेष अनु- १३. धन्मकुमार रास, १४. भविष्य दस रास, १५. श्रीपाल राग था । संस्कृत केवल विद्वानों के बोधगम्य थी। प्रतः
रास, १६ नागकुमार रास, १७. सुदर्शन रास, १८. जन सामान्य की दृष्टि से इन्होंने अपने समय की
भद्रबाहु रास, २६. चारुदत्त रास (णमोकार रास), २०. प्रचलित लोकभाषा मे (जिसमें कबीर एव मीरा का
नागश्री रास (गत्रिभोजन रास) २१ रोहिणी रास । साहित्य मिलता है) अपना ८० प्रतिशत साहित्य रचा।
प्रतिशत साहित्य रचा। पाख्यान परक काव्य-२२ समकित अष्टांग कथा रास, यही नही, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण एव जम्ब स्वामी चरित्र २३ सासर वामा को रास, २४ होली रास, २५. जैसे विशाल प्रथो का प्रणयन, संस्कृत में करने के पश्चात
महायक्ष विद्याधर कथा । पुनः उसी विशाल रूप से हिन्दी मे भी किया गया । देश
दानकथा काव्य ६ लुब्धदत्त विनयवती कथा, २७. भाषा में काव्य-रचना का कारण कवि ने "प्रादि पुराण
सूकात साह की कथा २८. धनपाल कथा राम । रास" के प्रारम्भ मे उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है।'
व्रतकथा काव्य--२६. सोलह कारण रास, ३.. दशपं० परमानन्द शास्त्री ने जैन सि० भा० मे कवि की ४६
लक्षण कथा गम, ३१. अक्षय दशमी गस, ३२. निर्दोष रचनामों का उल्लेख विया है।' डा. कस्तुरचन्द सप्तमी रास, ३३. मोड सप्तमी रास, ३४ चन्दन कासलीवाल ने इनकी सस्कृत की १२ एवं हिन्दी की ५५ षष्ठी कथा रास, ३५. आकाश पचमी कथा रास, कृतियो का उल्लेख किया है एव विशिष्ट कृतियो का
३६. पूष्पांजलि रास, ३७ रविव्रत कचा, ३८. अनन्त सक्षिप्त परिचय देकर इन्हे 'रास शिरोमणि' सिद्ध किया
व्रत रास । है। मुझे अपने अनसधान मे प्रभी तक इस कवि की कूल पूजाकथा काव्य-३६. पुरन्दर विधान कथा, ४०.ज्येष्ठ ८० कृतियों की उपलब्धि हुई है, जिनमे ६७ हिन्दी की व जिनवर पूजा कथा, ४१. मालिणी पूजा कथा, ४२. शेष सस्कृत की है। विषय-वस्तु को दृष्टि से हिन्दी-कृतियो मेडूकनी पूजा कथा । का वर्गीकरण निम्न प्रकार है :--
रूपक काध्य-४३. परमहस रास। ये सब प्रबन्धात्मक पुराण कास्य परक-१. प्रादि पुराण रास, २' रामरास
काव्य हैं। निम्नलिखित प्रगीतात्मक हैं :पद्मपुराण रास ३. हरिवश पुराण रास
सिद्धान्तपरक काव्य:- ४४. समदित मिथ्यात रास ४५.
१. भवीयण मावई सुणउ माज रास कहू मनोहर ।
मादि पुराण जोरकरी, कवित्त करूं मनोहर ॥१॥ बाल गोपाल जिम पढ़इ सुणइ, जाणे बहुभेद। जिन सासण गुण निरमला, मिथ्या मतछेद ॥२॥ कठिण नालीप ने दीजि माला हाथ, ते स्वाद न जाणे । छोल्या केल्या दाख देजे, ते गुण बहु माने ॥३॥ तीम ए प्रादि पुराण सार, देस भषा बखाणु । प्रकट गुण जीम वोस्तरे, जिन सासण वखाणु ॥४॥ रतन माणिक हीरा जगा जोति, पारखे मजाण न जाणे। तीम जिण सासण भेद गुण, भोला किम वरवाणि ॥५॥ तीह कारणि ए रास-चंग, करु' गुणवत । भवीयण मन संतोष यग, रीझे जयवंत ॥६॥
-पादि पुराण रास
२. जैन सिद्धान्तभास्कर, पारा (बिहार)
भाग-२५, किरण-१, पृष्ठ २६ । ३. राजस्थान के जैन सन्त :
व्यक्तित्व एव कृतित्व, पृ०-२४१२५ । ४. संस्कृत सास्त्र जोरकरी, सुगमि कीयो गुणमाल । बाल बोध अति रूबडो, प्रकट करे गुण विसाल ॥
-व० भ० रास ५. संस्कृत सलोक बंधए, कीघु हणमंत एसता । विस्तार से कथा जाणवीए, पद्मपुराण मझारिस ।। भवीयणनण संशोधवाए, राम की इमि चंगतु । अजणा गुण बहुवरणकाए, हनुमन्त सहित उतंगतु ।।
-हनुमन्त रास