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अंतस् को सालती स्मृति
डा. शोभनाथ पाठक, मेघनगर श्री की समृद्धि और सरस्वती की पांडित्यपूर्ण प्रख• प्राघात लगा जो सदैव ही मेरे प्रतस को सालता रहता रता का समष्टिपूर्ण संयोग विरला ही देखने को मिलता है। है, किन्तु जहां लक्ष्मी का भरपूर वैभव उफन पडा हो. जैन धर्म के उद्धारक, स्व. साहजी का राष्ट्रव्यापी वहा सरस्वती की ज्ञान-गरिमा भी गुरुत्तर हो, उसे गौरवा- धार्मिक कार्य चिरस्मरणीय रहेगा जो विविध रूपो मे वित करने पर तुली हो, ऐसा प्रायः होता नही है । किन्तु उन की गरिमा को गाते नहीं मघाते। देश के कोने-कोमे स्व० साह शान्ति प्रसादजी जैन में इन दोनो देवियो को मे उन्होने जैन धर्म की ध्वजा को फहराया है। कृया समाहित थी । "सोने मे सुगध" की उक्ति को यथा- "भगवान महावीर कथा" शोध प्रबन्ध लिखते समय र्थता प्रदान करने वाला साह शान्ति प्रसाद जी जैन का स्व० साहजी से संपर्क हुमा था। देश के कोने-कोने से अनठा व्यक्तित्व एक कीर्तिमान स्थापित कर युग के लिए यह भगवान महावीर विषयक शोध सामग्री एकत्रित करने मे प्रादर्श प्रस्तुत करता है, कि इतनी प्रसीम सम्पत्ति के बाव जहा एलाचर्य मुनि विद्यानन्द जी का कृपा-सम्बल मुझे मद भी वे माहित्य, संस्कृति व धर्म के प्रति इतने अधिक प्रोत्साहित करता रहा वहीं, मझे स्व० साहजी को प्रथ ग्रास्थावान थे। स्व. रमारानी जैन भी विधाता की अनु- के प्रति निष्ठा भी निखार ला रही थी। प्रबन्ध की प्रेरणा पम देन थी जो स्व० माह जी के साथ धर्मपत्नी की विशि- उपाध्याय विद्यानन्दजी मुनि ने दो तो साहित्यिक थाती ष्टतम भूमिका निभाते हुए साहित्य व कला के क्षेत्र में का विशा। भण्डार प्राकृत शोध-संस्थान, वैशाली से मिला कीर्तिमान स्थापित कर च की है, जिसका अनुपम उदाह- जिरो साहूजी ने बनवाया है। रण है ज्ञानपीठ पुरस्कार योजना का सूत्रपात्र । ___"भगवान महावीर कथा" पी-एच० डी० प्रबन्ध
मामाजिक सचार, सांस्कृतिक विकास, नैतिक निरवार लिखते ममय साहजी के सम्पर्क मे पाने के पश्चात मझे व प्राध्यात्मिक उत्थान के प्रति सतत प्रयत्नशील उनी उनकी विशाल हृदयता, धर्मपरायणता तथा जन संस्कृति धार्मिक भावना, राष्ट्रीय निष्ठा व साहित्यिक सृजन को के प्रति अपार निष्ठा की अनुभूति हुई, जिसे शब्दो मे प्रोत्साहित करने की प्रवृत्ति से मैं बेहद प्रभावित था। व्यक्त करना सम्भव नही। प्रबन्ध लिखने में प्रोत्माहन इतने धनवान होते हुए भी साहूजी की धार्मिक प्रवृत्ति को का जो उफान था, वह बडी तीव्रता के साथ गतिशील था जितना भी सराहा जाए थोड़ा है। सर्वगुण सम्पन्न कि भगवान महावीर पर यह देश का प्रथम पी-एच. व्यक्तित्व वाले साहूजी की सहृदयता को प्राकना प्रासान डी० प्रबन्ध उपाधि के पश्चात् ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो नहीं है।
जायेगा । इसीलिए प्रबन्ध का कार्य में दिन-रात एक करके श्रावक शिरोमणि साहजी के इसी गुण से अभिभूत कठोर परिश्रम के साथ शीघ्र पूर्ण करने में लगा था। मैं मी आशान्वित रहा कि उनकी विशेष कृपा से मेरा पावा, वैशाची, कपिलवस्तु कुशीनगर, लुम्बिनी, गोरखपुर पी-एच. डी. शोध-प्रबन्ध 'भगवान महावीर कथा' कपिया, उपरा, सारनाथ, वाराणसी, हस्तिनापुर, दिल्ली ज्ञानपीठ से अथवा उनकी कृपा सम्बल से प्रकाशित हो आदि की यात्राएं कर मैंने महावीर विषयक विशेष भगवान महावीर के प्रादों, उपदेशो को जन-जन तक मामग्री एकत्रित की। यह सब सामग्री उपाध्याय विद्यानंद पहुंचायेगा, किन्तु उन दोनो (स्व. रमाजी तथा साहू जी मुनि को भी दिखाई व मेरठ चातुर्मास मे ७-८ दिनों शान्ति प्रसाद जैन) के असामयिक निधन से मुझे गहरा तक उनके पास रहकर मार्ग दर्शन लेता रहा ।