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अनेकान्त स्व. शान्तिप्रसाद जैन भी मेरे इस शोध ग्रंथ लिखने समाप्त हो गया। के उत्साह से प्रभावित थे, इसलिए मैं दूने उत्साह से कार्य द्वितीय संस्करण भी संभवतः शीघ्र समाप्त हो करता रहा। अन्तत: २५००वें निर्वाणोत्सव के पावन जायेगा, किन्तु इस सफलता के बावजूद एक अजीब-सी अवसर पर "भगवान महावीर कथा" पर पी-एच.
कसक, कचोट हृदय को सालती है व टीस भरी हूक उठडी. की उपाधि मिल गई।
कर विह्वल कर देती है कि यदि साहजी या रमाजी होनी "भगवान महावीर कथा" शोध प्रबन्ध के प्रकाशन तो इस "महावीर कथा" को दुनिया के कोने-२ में पहुंचने के लिए मैं प्रत्यधिक माशान्वित था कि यह साहूजी की में मझे सफलता और अधिक मिलती। प्रसीम संघर्षों से कृपा से हो जायेगा। ज्ञानपीठ के मंत्री श्री लक्ष्मीचंदजी इसे इस मंजिल तक पहुंचाया है किन्तू साहू दम्पत्ति का जैन से भी २.३ बार मिला तथा साहू पालोक प्रकाश कृपा संबल इसे कहां पहुंचा देता। जैन के घर पर स्यय जाकर पाडुलिपि (प्रबन्ध को टकित प्राज साह श्रेयासप्रसादजी का प्राशीर्वाद व प्रेरणार प्रति) उन्हें दे दी कि इसे प्रकाशित कराने की कृपा पत्र भी मझे मिलता है कि मैं 'महावीर जीवन-दर्शन" करें। किन्तु सर्वत्र निराशा हो मुझे मिली अर्थात् प्रबन्ध विषय पर डी. लिट. का विशाल प्रथ लिखकर भगवान प्रकाशित न हो सका । तब श्रीमती रमारानी जैन व श्री महावीर विषयक विश्वस्तरीय सामग्री का इसमे समावेश साह शान्तिप्रसाद जैन का प्रभाव मझे अग्व रने लगा कि करूं जिसके लिए मैंने कार्य प्रारम्भ कर दिया है। यदि वे होते तो ...।
क्या महावीर पर विश्वस्तरीय सामग्री एकत्रित करने __ "भगवान महावीर कथा" को प्रततः स्वयं पाठक- के लिए साहजी की स्मृति मे साइट्रस्ट से सहगोग प्राप्त हो प्रकाशन, से प्रकाशित कर द्वितीय संस्करण की परिष्कृत सकता है । साहित्यकार को उनकी कितनी कृपा मिलती थी प्रति देश के कोने-कोने में पहुंचा रहा हूँ। "भगवान इसे शब्दों मे प्रांकना सभव नहीं। महावीर कथा" नेपाल, भूटान, सिक्किम व देश के सुदूर
मेघनगर (म. प्र.) भागों में पहुंच गई है। प्रथम संस्करण तो एक वर्ष मे ही
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(पृष्ठ ३६ का शेषाश) उन्हें मिला । जुट गए तन-मन-धन से वे जैन एकता, सग- गुणो से विभूषित अन्य अनेक व्यक्तित्व बौने से लगते है । ठन एव महावीर के उपदेशो मे प्रचार-प्रसार मे। जैन निष्काम समाजसेवा, धर्म परायणता, कला, साहित्य एव समाज एव धर्म जो मन्दिर की गलियो एवं शास्त्रो के संस्कृति प्रेम, कर्तव्य निष्ठा, सरलता, उदार एव परोपकार पन्नो मे विलुप्त था, प्रब राष्ट्रीय एव अन्तर्राष्ट्रीय जगत की वत्ति, व्यापक एवं उन्मुक्त दृष्टिकोण, मानव सम्मान, धरोहर एवं प्राकर्षण का विषय बन गया। जगत ने जाना प्राप्त साधनों एव अवसरो का समुचित सन्तुलित उपयोग, महावीर को एवं उनके अनुयायियो को। समाज एव गुण ग्राहकता तथा पात्म वैभव को पाने का निरन्तर संस्कृति कृत-कृत्य हो गई साहूजी के इस महान प्रयास सतत प्रयास, ये सब ऐसे गुण हैं जो स्व. श्री साहूजी से । दि. जैन महासमिति के गठन हेतु उन्होने वश नहीं को अमरत्व प्रदान करते है। बाह्य वैभव वो उनसे भी किया? उन्होने अश्रपूरित नेत्रों सहित समाज से जन अधिक बहतों को मिला था, मिला है और मिलेगा, किन्तु एकता हेतु मार्मिक प्रपीन तक की पौर जीवन का उत्सर्ग उक्त प्रात्मिक गुणों के सामने उनका क्या मूल्य ? समग्र उसी प्रयास में कर दिया । महासमिति उनके जीवन का रूप से, मेरी दृष्टि में, वे सच्चे जनस्व के जीवन्त प्रतीक मन्तिम किन्तु महत्वपूर्ण स्मारक है जिसका व्यापक गठन, थे, जो इस दष्टि से सदैव जैन जगत के प्रेरणा स्रोत बने विकास एवं रक्षा करना प्रत्येक जैन का परम कर्तव्य है। रहेंगे। यही उनके प्रति समाज की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
म. मोरियण्ट पेपर मिल्स, वस्तुतः उनके सर्वागीण व्यक्तित्व के भागे एक-एक
शाहगोल (म.प्र.) 000